इन कारणों की वजह से उत्तर प्रदेश में हारा सपा-बसपा का महागठबंधन

PC: Firstpost Hindi

लोकसभा चुनावों के नतीजों की स्थिति अब लगभग स्पष्ट हो गई है। भाजपा वर्ष 2014 के मुक़ाबले बेहतर परफ़ोर्म करते हुए 297 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है, जिसके बाद भाजपा अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सफल हो पाएगी। भाजपा की इस बंपर जीत में राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ी भूमिका रही है। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 63 सीटों पर बढ़त हासिल है जबकि सपा-बसपा के महागठबंधन को सिर्फ 16 सीट हासिल हो सकती है। चुनावों से ठीक पहले कुछ राजनीतिक पंडित जातीय समीकरणों के भाजपा के खिलाफ होने की बात कहकर महागठबंधन के अच्छे प्रदर्शन का अनुमान लगा रहे थे लेकिन इन चुनावों से यह स्पष्ट हो गया है कि लोगों ने जातिवाद की राजनीति को पीछे छोड़ विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया है।

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के साथ आने के बाद कई राजनीतिक विश्लेषक अपने काल्पनिक वोटगणित के आधार पर महागठबंधन को भारी बहुमत मिलते दिखा रहे थे। ऐतिहासिक तौर पर समाजवादी पार्टी को राज्य के लगभग 9 फीसदी यादव वोटर्स का समर्थन मिलता आया है, इसके अलावा सपा को राज्य के लगभग 19 फीसदी मुस्लिम वोटर्स के एक बड़े हिस्से का समर्थन हासिल होता आया है। दूसरी तरफ राज्य के दलित वोटर्स बहुजन समाज पार्टी के लिए वोट करते आए हैं। इन दोनों पार्टियों के साथ आने के बाद यह माना जा रहा था कि अब तो महागठबंधन राज्य में क्लीन स्वीप कर देगा और भाजपा को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। लेकिन नतीजों के विश्लेषण से एक बात साफ होती है कि दोनों पार्टियों के परंपरागत वोटर्स ने जातीय राजनीति से ऊपर उठकर भाजपा के उम्मीदवारों पर अपना भरोसा जताया है।

इसके अलावा दोनों पार्टियों के साथ आने के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों की नाराजगी भी देखने को मिली थी। कभी अपने भाषणों में अखिलेश पर अराजक सरकार चलाने का आरोप मढ़ने वाली मायावती ने ठीक चुनावों से पहले उसी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। ऐसे में दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता भी असमंजस में आ गए थे। कार्यकर्ताओं को भी यह बात समझ में आ गयी कि सिर्फ वोट पाने के लिए, और सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने के लिए ये नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। यही कारण ही कि इन चुनावों में कार्यकर्ताओ का गुस्सा इस कदर खुलकर सामने आया कि सरे-आम रैलियों में एक दूसरे के कार्यकर्ताओं पीटा गया। आज के नतीजों से यह स्पष्ट हो गया है कि गठबंधन में आने के बावजूद दोनों में से किसी पार्टी को कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपना गठबंधन करके दोनों पार्टियों के जनाधार को मजबूत करने की योजना बनाई होगी।, हालांकि जमीनी स्तर पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ । दरअसल, गठबंधन होने की वजह से दोनों पार्टी के आधे उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिल पाया, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में दोनों पार्टियों के नेताओं ने अपनी पार्टी को छोड़ भाजपा या अन्य पार्टियों का दामन थाम लिया था। यही कारण है कि आज महागठबंधन को उत्तर प्रदेश में करारी हार का मुंह देखना पड़ा है।

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