जैसे मुठ्ठी से रेत फिसलती है ठीक वैसे ही पिछले 10 दिनों में ममता के हाथ से फिसला है पश्चिम बंगाल

ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल

PC : glibs.in

जिस तरह बंद मुठ्ठी से रेत फिसलती है, ठीक उसी तरह पिछले एक सप्ताह में ममता बनर्जी के हाथ से पश्चिम बंगाल फिसल गया है। यदि हम पिछले तीन दिनों के घटनाक्रमों को देखें तो पाएंगे कि किस तरह ममता बनर्जी अपने किले को बचाने के लिए राजनीति के निम्नतम स्तर तक पहुंच चुकी है। ममता बनर्जी और उनके समर्थक पश्चिम बंगाल में अपने विरोधियों पर इस कदर हिंसक हुए हैं कि, पश्चिम बंगाल के लोगों में ममता बनर्जी की छवि एक हिंसावादी नेता के रूप में बन गई है और अब सूबे के लोग अपने राज्य को गुंडाराज से मुक्ति दिलाने की ठान चुके हैं। ममता बनर्जी की लाख कोशिशों के बावजूद प्रदेश की जनता भाजपा को दूसरे विकल्प के तौर पर देख रही है। 

बता दें कि, लोकसभा चुनावों से पहले ही ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण की राजनीति कर दी थी। उन्होंने सीधे चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा था कि, ऐसे महीने में चुनाव का आयोजन किया गया है जिस समय मौसम बहुत गर्म रहता है, इससे वोटर्स को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। वहीं टीएमसी के नेता व कोलकाता से मेयर फिरहद हकीम ने चुनावों के समय पर सवाल उठाते हुए कहा था कि, ”चुनावों को जानबूझकर रमजान के समय करवाया जा रहा है ताकि मुस्लिम वोटर्स अपना वोट ना डाल पाएं।” तब से लेकर अब तक 6 चरणों के चुनाव भी हो चुकें हैं। इसके साथ ही ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति अब राजनीतिक हिंसा में बदल गयी है जो लोकतंत्र का गला घोंट रही है।

वैसे तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में हमेशा ही लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाती रही हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से तो बंगाल में लोकतंत्र लगातार दम तोड़ता नज़र आ रहा है। ममता सरकार पूरे राजकीय तंत्र को अपनी हिटलरशाही की विचारधारा को बढ़ावा देने में इस्तेमाल कर रही है। उनके कार्यकर्ताओं के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वे सरेआम अपनी विरोधी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं पर हमला करने से भी नहीं हिचक रहे हैं। मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के एक रोड शो के दौरान टीएमसी के छात्र विंग के कुछ सदस्यों ने जमकर गुंडागर्दी की थी और कई गाड़ियों में आग लगा दी थी। इसके अलावा पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा दिल्ली से भाजपा नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा को भी हिरासत में ले लिया गया था। हालांकि, जब कोई सबूत कोलकाता पुलिस को नहीं मिले तो उन्हें बग्गा को छोड़ना पड़ा था। जिस तरह की हिंसा और आगजनी अमित शाह के चुनाव प्रचार में हुई थी उसे पूरे देश ने देखा। इसी के साथ सभी को ममता बनर्जी के तानाशाही का वो रूप भी देखने को मिला जो पहले कभी खुलकर सामने नहीं आया था। सभी ने देखा किस तरह से सत्ता खोने का डर ममता में इतना बढ़ गया है कि वो हर हथकंडा अपना रही हैं वो चाहे संविधान के खिलाफ ही क्यों न हो।

ममता सरकार की असहिष्णुता का एक और उदाहरण हमें पिछले ही दिनों तब देखने को मिला था जब सिर्फ एक मीम को शेयर करने पर पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा भाजपा की युवा नेता प्रियंका शर्मा को हिरासत में ले लिए गया था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट कोर्ट के आदेश के बाद प्रियंका शर्मा को रिहा कर दिया गया था। सच कहूं तो राज्य में कानून व्यवस्था का जिस तरह से ममता बनर्जी अपने हित के लिए इस्तेमाल कर रही थीं वो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली में खुलकर सामने आ गया। अमित शाह ने कहा भी था कि “कल भाजपा का रोड शो था और तीन घंटे पहले जो पोस्टर-बैनर लगाए थे उसे हटाए जाने का काम शुरू हुआ और पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही. बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने शांति बनाई रखी। रोड शो शुरू हुआ तो उसमें भाजपा को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा था। इस दौरान तीन हमले हुए। तीसरे हमले में आगजनी, पथराव और पेट्रोल बम फेंकने की घटना हुई। इस तरह की अफ़वाहें थीं कि कॉलेज के बंदे आकर दंगा करेंगे लेकिन पुलिस ने पहले से कोई कार्रवाई नहीं की।” यही नहीं हमले के दौरान शाह को अगर किसी ने बचाया था तो वो सीआरपीएफ़ के जवान थे। इससे साफ़ है कि पश्चिम बंगाल में जब जनता ने भाजपा का समर्थन किया तो डरी हुई ममता ने कानून की ही धज्जियां उड़ा दीं। नतीजा ये हुआ कि चुनाव आयोग द्वारा निष्पक्ष चुनाव करवाना भी अब एक बड़ी चुनौती बन गई है। पूरे देश भर में राजनीतिक हिंसा की खबरें अगर किसी राज्य से आ रही हैं, तो वह पश्चिम बंगाल ही है। इसी के चलते उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने  राज्य में राष्ट्रपति शासन तक लगाने की मांग भी की थी।

आखिरी चरण के मतदान से पहले बंगाल में जारी इस राजनीतिक हिंसा के तांडव के बीच चुनाव आयोग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए आखिरी चरण के चुनावी प्रचार को 16 मई रात 10 बजे तक सीमित रखने का आदेश जारी कर दिया। इसके लिए आयोग ने पहली बार संविधान की धारा 324 का इस्तेमाल किया। इसके अलावा आयोग ने बड़ा प्रशासनिक फेरबदल भी किया। आयोग ने राज्य के गृह सचिव अत्री भट्टाचार्य और सीआईडी के एडीजी राजीव कुमार को उनके पद से हटा दिया। बता दें कि, सातवें चरण में बंगाल की 9 सीटों पर मतदान होना है और इस सातवें चरण में बीजेपी को भारी बढ़त मिलती भी दिखाई दे रही है। बंगाल आज ममता के गुंडाराज से त्रस्त हो गया है और यही कारण है कि, यह राज्य अब ममता बनर्जी के हाथ से फिसलता दिख रहा है।

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