अमित शाह जम्मू-कश्मीर दौरे पर हैं लेकिन हुर्रियत वालों ने बंद का ऐलान नहीं किया

अमित शाह जम्मू-कश्मीर

PC: .intoday

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर हैं। बतौर गृह मंत्री यह उनका पहला दौरा है। इस बीच कश्मीर घाटी में आतंकवाद के तीन दशकों के बीच ऐसा पहली बार हुआ है कि अलगाववादी संगठनों ने किसी गृह मंत्री के दौरे के समय बंद की अपील नहीं की है। इस दौरान अमित शाह सुरक्षा और विकास से जुड़ी परियोजनाओं के सिलसिले में कई बैठकों की अध्यक्षता की।

आखिर क्या बात है कि जो लगातार पिछले 30 सालो से होता आया है, इस बार ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। 30 सालों से उत्पात करने वाले ये अलगाववादी आज शांत पड़े हैं और यह कोई एक दिन में संभव नहीं हुआ हो। यह मोदी सरकार की आंतरिक मामलों और जम्मू कश्मीर पर नीतियों का ही परिणाम है कि पत्थरबाज़ी करवाने वाले हुर्रियत नेता आज बातचीत के संदेश भेज रहे है। पीएम मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की नीति कश्मीर के संवेदनशील मुद्दे पर स्पष्ट रही है। मोदी सरकार ने दो सूत्रो पर काम किया, पहला तो इन अलगावादियों के वित्तीय स्रोतों पर लगाम लगाना और दूसरा  बातचीत करने के लिए सही लोगों से संपर्क स्थापित करना।  

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अपने आप को ऐसे पेश करता है जैसे वही कश्मीर की आवाज है। लेकिन क्या यह सच है? या उनका पाकिस्तान के आईएसआई से कोई लिंक है जिसकी आड़ में आतंकियों को बढ़ावा देते हैं ? सच क्या है सभी जानते हैं लेकिन 2017 से पहले इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गयी थी। इस बात को केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने ANI को दिये गए इंटरव्यू के दौरान कहा भी कि ‘नैशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की टीम ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) सहित पाकिस्तानी स्रोतों से फंडिंग, अशांति फैलाने और कश्मीर घाटी में आतंक फैलाने के मामले में हुर्रियत नेताओं से पूछताछ की गयी ।‘ जिसमें फंडिंग से जुड़े कई खुलासे हुए। उन्होंने आगे बताया कि “अलगाववाद और तथाकथित अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान की धरती से फंडिंग मिलती है।”

गौरतलब है कि, पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने आतंकवाद और आतंक के वित्तपोषण पर कड़ी कार्रवाई की है। एनआईए ने मई 2017 में जमात-उद दावा, दुख्तेरान-ए-मिलात, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल-मुजाहिदीन और अन्य अलगाववादी नेताओं के खिलाफ फंड इक्कठा कर राज्य में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के मामले में केस दर्ज किया था। इसमें जमात-उद-दावा के नेता हाफिज मोहम्मद सईद, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन, सात अलगाववादी नेता, दो हवाला कारोबारी और कुछ पत्थरबाज शामिल हैं।

बता दें कि 2017 में जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की 1,261 घटनाये हुईं थीं, जो 2016 में 2,808 घटनाओं की तुलना में काफी कम है। 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद सेना के खिलाफ पत्थरबाजी की घटनाओं में वृद्धि हुई थी। हालांकि, जुलाई 2018 में, तत्कालीन पुलिस प्रमुख एस पी वैद ने कहा कि ‘पथराव की घटनाओं में लगभग 90 प्रतिशत की गिरावट आई है। 2017 के बाद से इस तरह की घटनाओं में लगातार आई गिरावट के कई कारण हैं। पहला, वर्ष 2016 में लागू नोटबंदी और दूसरा प्रवर्तन निदेशालय और एनआईए का कश्मीर में अलगाववादियों और पाकिस्तान के साथ उनके जुड़ाव का खुलासा करना है।‘

इसकी शुरुआत तब हुई जब प्रवर्तन निदेशालय ने सैयद अली गिलानी के हुर्रियत कांफ्रेंस के सदस्य फिरदौस अहमद शाह के खिलाफ वर्ष 2015 में चार्जशीट बनाई थी। इसके बाद इसी वर्ष मार्च में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के तहत 14.40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। जम्मू-कश्मीर बैंक में भ्रष्टाचार के मामले के खुलासे ने हुर्रियत नेताओं की कमर तोड़ दी है, जिन्होंने बैंक के भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर अवैध लेन-देन किया था।

इसके अलावा आतंकी फंडिंग के मामले में पिछले साल कश्मीरी व्यापारी जाहूर वटाली को भी गिरफ्तार किया गया था। वटाली उन मुख्य हवाला कारोबारियों में से एक है जिसे पाकिस्तान, आईएसआई, यूएई से फंडिंग मिलती थी और इन फंडों का इस्तेमाल वो कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने, हिंसक आंदोलन और भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए करता था। इतना ही नहीं, अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एचसी) के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक को 22 मार्च को घर में नजरबंद कर दिया गया था।

पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेते हुए कई अलगाववादियों पर तेजी से शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। इसी दौरान कश्मीर में सक्रिय बड़े अलगाववादी नेता यासीन मालिक को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक को भी जम्मू जेल से तिहाड़ जेल में स्थानांतरित किया गया था। एनआईए को जब जांच में पाकिस्तान, यूएई के व्यवसायियों, आईएसआई और दिल्ली में पाकिस्तान के उच्चायोग के जरिए धन एकत्र करने से संबंधित सबूत मिले हैं। एजेंसी ने चार जून को यासीन मलिक, आसिया अंद्राबी और शब्बीर शाह को अपनी हिरासत में लिया था।

पूछताछ में मलिक ने एजेंसी को बताया कि उसने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के धड़ों को साथ लाने में मदद की थी। साथ ही ज्वाइंट रेसिसटेंस लीडरशिप (जेआरएल) का गठन किया था जिसने वर्ष 2016 में कश्मीर घाटी में हिंसक आंदोलन की अगुवाई की थी।

कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी सरकार कट्टरपंथी आतंकवाद से निपटने के लिए कमर कस चुकी है। संयुक्त सुरक्षा बलों ने कश्मीर के लोगों के साथ मिलकर इन कट्टरपंथियो को कड़ा सबक सिखाया है। पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों ने सैकड़ों खतरनाक आतंकवादियों को निष्प्रभावी कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार सेना ने पिछले तीन साल में 733 आतंकवादियों को मार गिराया है।

अब इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि गृह मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, अमित शाह ने नई दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल, सत्य पाल मलिक से मुलाकात की थी। सत्य पाल मलिक ने अमित शाह को जम्मू और कश्मीर राज्य में सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर को लेकर ये संकेत भी दे दिए हैं कि कोई भी देश विरोधी गतिविधि बर्दाश्त नहीं की जाएगी साथ ही कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए भी वो प्रयासरत हैं। अमित शाह का रुख आतंक और देश विरोधी गतिविधियों के खिलाफ इतना सख्त है कि वो सीधे एक्शन लेते हैं और अपने इसी अंदाज की वजह से वो मशहूर भी हैं। उनके इसी अंदाज की वजह से जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत के नेताओं में डर का होना लाजमी है।

ये दर्शाता है कि मोदी सरकार के प्रयास जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर सही दिशा में प्रयासरत हैं और इन्हीं प्रयासों की वजह से जल्द ही कश्मीर के भटके हुए युवा भी मुख्यधारा से जुड़ने के लिए आगे आ रहे हैं। अब गृह मंत्री अमित शाह के प्रयासों ने मोदी सरकार के प्रयासों को और ज्यादा गति दे दी है। यही वजह है कि कश्मीर के भाड़े के ‘पत्थरबाज’ से डरे हुए हैं, हुर्रियत का नेतृत्व करने वाला भी जेल में है।। गृह मंत्री के दौरे के दौरान भी कश्मीर शांत नजर आ रहा है। हुर्रियत नेताओं को कोई और रास्ता नहीं दिखाई दे रहा ..अब उनके पास या तो आत्मसमर्पण कर देश विरोधी गतिविधियों को रोकने या जेल में चक्की पीसने का विकल्प ही बचा है। यही वजह है कि मजबूरन अब केंद्र सरकार से बातचीत करने की मंशा जाहिर की है। और यही वजह है कि कश्मीर घाटी में अलगाववादी संगठनों ने किसी गृह मंत्री के दौरे के वक्त बंद की अपील नहीं की है।

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