फिल्म आर्टिक्ल 15 की ईमानदार समीक्षा

फिल्म आयुष्मान खुराना

PC: Deccan Herald

यदि अनुभव सिन्हा ने आर्टिक्ल 15 इस भावना से बनाई थी कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और जातिवाद के स्याह पहलू को उजागर करेंगे, तो क्षमा करें, वे इसमें तो असफल रहे। पर यदि उनका इरादा अपने विषैले एजेंडे को बढ़ावा देना चाहते the जिसमें वो जातिवाद का वैमनस्य फैलाते हैं, तो मुबारक हो अनुभव सिन्हा, आपको प्रोपगैंडा हुआ है।

हाल ही में मैंने देखी आर्टिक्ल 15. अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित यह मूवी कथित तौर से बदायूं दुष्कर्म कांड और ऊना में कुछ पिछड़े जाति के लड़कों की पिटाई जैसे कई मामलों पर आधारित है। इसमें प्रमुख कलाकार हैं आयुष्मान खुराना, मनोज पाहवा, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, एम नासर, आशीष वर्मा, सुशील पांडे, सुब्रज्योति भरत इत्यादि।

कहानी है उत्तर प्रदेश के लालगांव जिले की, जहां तीन लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है, और उनमें से दो लड़कियों की हत्या कर उन्हें पेड़ से लटका दिया जाता है। हालांकि, तीसरी लड़की गायब हो जाती है और इस अपराध की जांच पड़ताल के लिए अपर पुलिस अधीक्षक, एसपी अयान रंजन को बुलाया जाता है, जो स्वभाव से काफी आदर्शवादी है। कैसे अयान इस मामले की जड़ों तक जाता है, और फिर कैसे वे जातिवाद की समस्या से लड़ते हुए न्याय की तरफ़ एक सार्थक कदम बढ़ाते हैं, ये पूरी फिल्म इसी के बारे में है।

सर्वप्रथम इसके गुणों की बात करते हैं। यदि आपको गटर की बजबजाते गंदगी से निकलता इंसान देख असहजता लगे, यदि आप पेड़ पर लटकते उन लड़कियों को देख कर अंदर तक हिल जाये, तो समझ जाइए की इस फिल्म की सिनेमाटोग्राफी उच्चतम स्तर की है। इवान मुलिगन निस्संदेह अपनी सिनेमाटोग्राफी के लिए बधाई के पात्र हैं।
अभिनय को लेकर इस फिल्म पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता। चाहे अयान रंजन के तौर पर आयुष्मान खुराना हो, या फिर सब इंस्पेक्टर जाटव के रोल में कुमुद मिश्रा, या फिर इंस्पेक्टर ब्रह्मानन्द सिंह की भूमिका में मनोज पाहवा हो, सभी ने अपना काम बखूबी किया है!। सयानी गुप्ता गौरा के रूप में और सुब्रज्योति भरत हवलदार चंद्रभान सिंह के रूप में सहज दिखे हैं। हालांकि, इस फिल्म में नई अभिनेत्री ईशा तलवार की कोई खास आवश्यकता नहीं थी, और कई जगह उनका काम काफी निरर्थक लगा।

खामियां 
अब यदि बात करें दोष की, इसपर कुछ भी बोलने से पहले आपसे एक छोटा सा सवाल। आर्टिक्ल 15 का मतलब क्या है ? आर्टिक्ल 15 का मतलब है भारतीय संविधान के मूलभूत अधिकारों का वह भाग, जिसके अंतर्गत देश के हर नागरिक को बराबर माना गया है और उसके साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव को अपराध माना गया है।

निस्संदेह जातिवाद एक सामाजिक कुप्रथा है जिसका जड़ से विनाश करना आवश्यक है, पर क्या इसका अर्थ यह है कि एक प्रकार की जातिवाद को खत्म करने के लिए दूसरे प्रकार के जातिवाद को बढ़ावा दिया जाए? यदि अनुभव सिन्हा के चश्मे से देखा जाये, तो आर्टिकल 15 बिलकुल ऐसे ही जातिवाद को बढ़ावा दिया जाता है। छुआछूत से कोई इनकार नहीं कर सकता, पर उसकी आतंकवाद से तुलना कर आतंकवाद की समस्या को कमतर आंकना? ये कहाँ की समझदारी है भाई?

ये तो कुछ भी नहीं है, अभी तो बस शुरुआत हुई है। ट्रेलर में दिखाये गए दृश्यों के मुक़ाबले ये फिल्म प्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मण विरोधी नहीं है। परंतु यदि पूरी फिल्म को ध्यान से देखा जाये, तो सच्चाई कुछ और होने के बावजूद एक बार फिर अगड़ी जाति के लोगों को जानबूझकर नकारात्मक रूप में दिखाने का घटिया प्रयास किया गया है।

इतना ही नहीं, इस फिल्म को योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध प्रोपगैंडा फैलाने के हथियार के तौर पर उपयोग किया गया है। इस फिल्म के माध्यम से ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि कैसे हिन्दुत्व भारत के लिए विष समान है, और कैसे यह भारत को और पीछे धकेलना चाहते हैं। रोचक बात तो यह है कि जवाबदेही से बचने के लिए ये लोग अक्सर कहानी को काल्पनिक कहकर बच निकलते थे। कभी यह कहते हैं कि फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं, और फिर फिल्म शुरू होने से पहले डिस्क्लेमर लगाते हैं की कथा काल्पनिक है। वाह क्या हाइपोक्रिसी है।

और तो और, मोहम्मद जीशान अय्यूब का इस फिल्म में जो किरदार है, वो सीधा सीधा सहारनपुर में दंगे करवाने के दोषी चन्द्रशेखर रावण की तरह लगता है। जहां चन्द्रशेखर रावण ने अपनी हरकतों से पूरे यूपी में हार्दिक पटेल की तर्ज पर अराजकता फैला रखी थी, तो वहीं इस फिल्म में उनसे प्रेरित किरदार को ऐसे दिखाया गया है, मानो वो कोई गुंडा नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी हो। अब यह प्रोपगैंडा नहीं है तो क्या है?

मुल्क जैसी निकृष्ट फिल्म से अनुभव सिन्हा ने कोई सबक न लेते हुए एक और निकृष्ट फिल्म ‘आर्टिक्ल 15’ से अपने विषैले एजेंडा को बढ़ावा देने का घटिया प्रयास किया है। आर्टिक्ल 15 बुरे उद्देश्य से निस्संदेह नहीं बनाई गयी, पर जिस तरह उसे प्रदर्शित किया गया, वो अपने आप में निंदनीय है, और अपना एजेंडा को चलाने के एवज में फिल्म मूल उद्देश्य से भटकी हुई लगती है।

यूं तो ऐसी विकृत फिल्मों पर अक्सर इसके बहिष्कार की मांग उठती रही है, परंतु आर्टिक्ल 15 को बायकॉट करने की मांग मैं नहीं करूंगा। उल्टा मैं आपको कहूंगा, कि जाकर देखिये की कोई व्यक्ति कितना निकृष्ट हो सकता है जो अपने एजेंडा को साधने के लिए किसी घटना का इतना घटिया राजनीतिकरण कर सकता है। मेरी तरफ से इसे मिलने चाहिए 5 में से 2 स्टार।

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