अक्सर महाभारत और रामायण पर सवाल खड़े करने वाले लोग आज बद्रीनाथ की आरती की मान्यताओ को सच मान रहे हैं। अब सवाल ये है कि सालों पहले जो मान्यता शुरू कर दी गयी उसे सच मानना चाहिए या कार्बन डेटिंग से साबित पाण्डुलिपि को ? सालों से यही मान्यता चली रही है कि चमोली में नंदप्रयाग के एक पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 के दशक में यह आरती लिखी जो भगवान बदरी के भक्त थे और लोग बाद में उन्हें ‘बदरुद्दीन’ बुलाने लगे थे। लेकिन अगस्त 2018 में एक स्थानीय लेखक स्व. धन सिंह बर्तवाल द्वारा रचित पडुलिपि के मिलने के बाद इस मान्यता पर सवाल खड़े हो गए थे।
दरअसल, मामला ये है कि अगस्त 2018 में धन सिंह बर्तवाल के परपोते महेंद्र सिंह बर्थवाल प्रशासन के पास आरती की हस्तलिपि को पहुंचे थे। उसके बाद इसका कार्बन डेटिंग टेस्ट किया गया। बद्रीनाथ आरती पर यूसैक की मुहर पहले ही लग गई थी। कार्बन डेटिंग से स्पष्ट हो गया कि श्री बद्रीनाथ जी की आरती स्व. धन सिंह बर्तवाल द्वारा संवत 1938 (सन 1881) में लिखित है। वह रुद्रप्रयाग जिले में तल्ला नागपुर पट्टी के सतेरा स्यूपुरी के विजरवाणा के निवासी थे। उनकी पांडुलिपि आज भी मौजूद है तथा इसके अंत में लिखी सूचना के मुताबिक ये माघ माह 10 गते (सन् 1881) को स्व. ठाकुर धन सिंह बर्तवाल द्वारा लिखी गयी है। इस पाण्डुलिपि में वर्तमान आरती का प्रथम पद यानी ‘’पवन मंद सुगन्ध शीतल” इस आरती का पांचवा पद है तथा गढ़वाली भाषा के शब्दों का प्रयोग भी है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने भी अपनी जांच के बाद बद्रीनाथ जी की आरती की पांडुलिपियों को सही पाया है। जांच में ये भी पाया गया कि बद्रीनाथ जी की आरती 137 साल पहले रुद्रप्रयाग जिले में तल्ला नागपुर पट्टी के सतेरा स्यूपुरी के विजरवाणा के रहने वाले धन सिंह बर्तवाल ने ही लिखी है।
इसी प्रकार के एक ओर प्रकरण में अमरनाथ गुफा के बारे में भी मिथक थी कि इस पवित्र गुफा की खोज सबसे पहले बूटा मलिक नाम का एक चरवाहे ने किया था। इस मिथक के बारे में हमने अपनी वेबसाइट के एक लेख में विस्तार से बताया था कि इस गुफा के बारे में जानकारी पहले से थी और इसके कई प्रमाण मिलते है कि श्रद्धालु वहां जाते थे।
सोचने वाली बात ये है कि बदरुद्दीन के पक्ष में अभी तक कोई भी सबूत नहीं पाया गया है। हालांकि, 1889 में प्रकाशित एक किताब में यह आरती है और बदरुद्दीन के रिश्तेदार को इसका संरक्षक बताया गया है। यह किताब अल्मोड़ा के एक संग्रहालय में रखी है। लेकिन इस किताब से ये सिद्ध नहीं होता कि बद्रीनाथ जी की आरती की रचना फखरुद्दीन सिद्दीकी उर्फ बदरुद्दीन ने ही की थी।