भारतीय राजनीति में वंशवाद की बड़ी पुरानी परंपरा रही है जहां सरकार के बड़े पदों पर नियुक्ति के लिए अक्सर बड़े राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि, इस मामले में भाजपा थोड़ी अलग है। भाजपा में किसी नेता के सरनेम से पहले उसकी योग्यता को देखा जाता है, और यही कारण है कि वर्ष 2014 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में देवेन्द्र फडणवीस के नाम पर मोहर लगी। मुख्यमंत्री बनने से पहले उन्हें सिर्फ नागपुर के मेयर पद की ज़िम्मेदारी संभालने का ही अनुभव था। महाराष्ट्र अर्थव्यवस्था के मामले में भारत का सबसे बड़ा राज्य है और भारत के आर्थिक विकास में इसका बहुत बड़ा योगदान है। ऐसे में हर कोई फडणवीस की काबिलियत को लेकर संदेह में था लेकिन पिछले पांच सालों में उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता से सभी आलोचकों का मुंह बंद किया है। इंडिया टुडे के संपादक राज चेंगप्पा को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी प्रशासनिक कामयाबी के कुछ फ़ॉर्मूले पेश किये।
1) युद्धस्तर पर योजना निर्माण : फडणवीस ने अपने इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने सभी समस्याओं के समाधान के लिए युद्धस्तर पर योजनाओं का निर्माण किया और सभी फैसलों में सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखा। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में मराठा आरक्षण आंदोलन, भीमा कोरेगांव हिंसा और साथी दल शिवसेना की नाराजगी जैसी कई बड़ी मुश्किलें सामने आई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने इस सभी मुश्किलों को अपनी इसी योजना से सफलतापूर्वक हल किया।
2) बातचीत को जारी रखना: फडणवीस ने अपने आगे बताया कि वे प्रतिकूल स्थिति में भी बातचीत को जारी रखने में विश्वास रखते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें मराठा आरक्षण आंदोलन के समय देखने को मिला जब महाराष्ट्र सरकार ने शांतिपूर्ण ढंग से सभी प्रदर्शनकारियों को यह यकीन दिलाया कि सरकार उनकी मांगों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। फडणवीस ने अपनी सरकार की सराहना करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने बिना कोई लाठीचार्ज करवाए, या बिना किसी बल का प्रयोग किए लोगों को शांत करवाया।
3) बड़े फैसले लेने में सक्षम: मुख्यमंत्री फडणवीस की एक और खास बात है कि वे बड़े फैसले से लेने से नहीं घबराते और अपनी बातों को स्पष्ट रूप से सबके सामने रखते हैं। इस वर्ष चुनावों से पहले जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मुंबई एटीएस के पूर्व अध्यक्ष और शहीद हेमंत करकरे को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया था तो फडणवीस ने स्पष्ट रूप से उनके बयान की निंदा की थी। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भाजपा की नेता होने के साथ-साथ भाजपा की ओर से चुनावी मैदान में भी थी, लेकिन तब भी फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से उनकी आलोचना की।
4) संतुलित नेता: फडणवीस एक बेहद संतुलित नेता हैं और वे अपनी हर कही बात का अनुसरण करने में विश्वास रखते हैं। पिछले पांच सालों के दौरान भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में बड़ा तनाव देखने को मिला था लेकिन फडणवीस के नेतृत्व में दोनों पार्टियों का गठबंधन अंत तक बरकरार रहा। इन लोकसभा चुनावों के दौरान दोनों पार्टियों ने सीट बंटवारे को लेकर एक दूसरे की जरूरतों को समझा और राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 25 जबकि शिव सेना ने 23 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारने का निश्चय किया। इन सभी सीटों में से एनडीए को 41 सीटों पर विजय मिली। राज्य में भाजपा की स्थिति बेहद मजबूत है, लेकिन इस स्थिति में भी आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा और शिवसेना ने 135-135 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है जबकि बाकी 18 सीटें अन्य साथी दलों के लिए छोड़ी जाएंगी।
5) लगातार सीखते हैं: आमतौर पर नेता बड़े पद पर पहुंचने के बाद नई चीज़ें सीखना बंद कर देते हैं, और धीरे-धीरे उनका प्रभुत्व कम होता जाता है, लेकिन फडणवीस ऐसे नेताओं में से नहीं हैं। वे हमेश कड़े फैसले लेते हैं और जब भी कोई उनके फैसलों पर कोई सवाल उठाता है तो वे उसे अपने विश्वास में लेने की कोशिश करते हैं।
6) हमेशा धैर्य रखते हैं: फडणवीस ने अपनी एक और खूबी बताई कि प्रतिकूल स्थिति में भी वे कभी अपना धैर्य नहीं खोते हैं। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके सामने कई बड़ी मुश्किलें पेश आई लेकिन उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं खोया और सभी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया।
देवेन्द्र फडणवीस एक जमीन से जुड़े नेता हैं और पिछले पांच सालों में उन्होंने महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य का बखूबी नेतृत्व किया है। उनके ये सफलता के मंत्र किसी भी नेता द्वारा प्रयोग में लाए जा सकते हैं। उन्होंने पिछले पांच सालों में अपनी काबिलियत को दर्शाया है। हमें उम्मीद है कि आगे भी वे अपने कुशल मार्गदर्शन से इसी तरह महाराष्ट्र के विकास के लिए निरंतर परिश्रम करते रहेंगे।