भारत के पुरुष विरोधी कानून को निष्पक्ष बनाने की आवश्यकता है

रेप

महिला और पुरुष एकसमान हैं ..उनमें भेदभाव बंद करो .. महिला सशक्तिकरण की बात करो ..इसपर काम भी हो रहा है. देश के कानून व्यवस्था से लेकर कई क्षेत्रों में महिलाओं को मजबूत बनाने पर काम भी रहा है. लेकिन इन सबके बीच कुछ घटनाओं ने पुरुष के साथ हो रहे भेदभाव से जुड़े सवाल को खड़ा कर दिया है जिसपर आज के समय में न ज्यादा बात होती है और न ही किसी का ध्यान जाता है. न्यायिक तंत्र का एक मूल सिद्धान्त होता है कि जब तक किसी आरोपी पर दोष साबित नहीं होते हैं, तो उसे पूरी तरह बेकसूर माना जाता है। ऐसे में जब यौन उत्पीड़न के मामले में पुरुष अपराधी होता है तो उसकी पहचान से लेकर उसकी जीवनी को जनता के सामने रख दिया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब टीआरपी की भूखी देश के एजेंडावादी मीडिया अपने हित के लिए इसका इस्तेमाल करती है लेकिन जब उस पुरुष की बजाय आरोप लगाने वाली महिला ही दोषी साबित होती है, तब सभी के मुंह पर ताला लग जाता है। यहां तक कि हमारा कानून भी महिला की पहचान को छुपाता है ताकि महिला के सम्मान पर कोई आंच न आये। अब सवाल ये है कि क्या पुरुषों का कोई आत्मसम्मान नहीं होता? क्या उन्हें समाज के ताने सुनने को नहीं मिलते? जब तक आरोप साबित न हो तब तक क्यों किसी पुरुष की पहचान को सभी के सामने खोलकर रख दिया जाता है लेकिन अगर कोई महिला दोषी हो तो उसकी पहचान को छुपा दिया जाता है?

अभिनेता करण ओबेरॉय पर लगे कथित ‘रेप’ के मामले में भी हमें कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। करण ओबेरॉय के खिलाफ दर्ज़ कराये गए कथित रेप केस की सच्चाई सामने आने के बाद एक बार फिर देश में समान लैंगिक कानूनों को लेकर बहस गरमा गई है। दरअसल, जिस महिला ने करण ओबेरॉय पर यौन उत्पीड़न करने के आरोप लगाए थे अब वही मामला शक के घेरे में हैं.

पिछले कुछ समय में कुछ ऐसे मामले सामने आये हैं जिससे रेप से संबंधित क़ानून का इस्तेमाल ब्लैकमेल करने के लिए भी करते हुए पाया गया है, और कानून इतने सख्त हैं कि अपने आप को निर्दोष साबित करने की सारी ज़िम्मेदारी पुरुषों पर ही आ जाती है, जो न्यायिक तंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है। वर्ष 2012 के निर्भया रेप केस के बाद देश की संसद पर यौन शोषण और रेप के खिलाफ कड़े कानून बनाने का दबाव बना और तब आईपीसी, एविडेंस एक्ट, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर जैसे कानूनों में बड़े बदलाव किए गए। उस समय कानून धारा 354 IPC में बदलाव करके 4 भाग बनाये गये जोकि IPC की धारा 354-ए, 354-बी, 354-सी और 354-डी है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के कानून में बदलाव के बाद महिलाओं के लिए पुरुषों के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज करना आसान हो गया. चूंकि इस नियम के तहत महिलाओं की पहचान को उजागर नहीं किया जाता है.

वास्तव में इन बदलावों में ‘बलात्कार’ की परिभाषा को विस्तृत रूप देना और रेप के मामलों में न्यायाधीशों को असहमति की धारणा बनाने की शक्ति देना शामिल था। विशेषज्ञ भी इस बात को मानते हैं कि निर्भया रेप केस के बाद देश की संसद ने जल्दबाज़ी में क़ानूनों में बदलाव किए और कई अहम पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

इसी बात का उदाहरण हमें करण ओबेरॉय केस में देखने को मिला है। एक महिला ने करण ओबेरॉय पर शादी का झांसा देकर रेप करने का आरोप लगाया और 6 मई को उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी कर लिया गया। महिला ने अपनी शिकायत में अभिनेता पर रेप और वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था। इसी महिला ने कुछ दिनों बाद पुलिस से एक और शिकायत की और बताया कि उनपर दो अज्ञात लोगों ने चाकू से हमला किया और धमकी दी कि वो अपना केस जल्द वापस ले लें। दो दिन बाद सीसीटीवी फुटेज की मदद से पुलिस ने उन हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया, इसके बाद  यह बात सामने आई कि उनमें से एक हमलावर वकील का ही भाई था और महिला ने वकील के साथ मिलकर अपने ऊपर हमला कराया। अब इस बात का संदेह और बढ़ जाता है कि कहीं उस महिला ने जान-बूझकर करण ओबेरॉय के खिलाफ दूसरा झूठा केस बनाया ताकि करण पर लगाये गये आरोपों को बल मिल सके लेकिन महिला की ये कोशिश नाकाम रही। इससे तो यही लगता कि महिला ने शायद  कानून की धारा 354 IPC का दुरूपयोग करने की कोशिश की है. जिसके तहत उसकी पहचान सामने नहीं आई और वो अपने मकसद में कामयाब भी हो जाये. हालांकि, इसमें कितनी सच्चाई है ये आने वाले समय में पता चल जायेगा.

हालांकि, करण पर लगाया गया यौन उत्पीड़न का आरोप अभी तक साबित नहीं हुआ है वो फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। करण ओबेरॉय पर लगे आरोप सही है या नहीं ये तो आने वाले समय में पता चल रही जायेगा। यदि कल को करण यौन उत्पीड़न मामले में निर्दोष साबित हो भी जातें तब भी महिला की पहचान सामने नहीं आएगी लेकिन करण के सम्मान पर जो दाग लगा और जो उन्हें इस दौरान झेलना पड़ा उसकी भरपाई नहीं होगी. झूठे आरोप लगाने वाली महिला फिर भी सम्मान की जिंदगी जीएगी. अब करण दोषी है या नहीं ये फैसला अदालत करेगी पर हमारे समाज में कानून का दुरूपयोग करना सच में चिंता का विषय है.

बता दें कि सिर्फ यौन उत्पीड़न ही नहीं और इनसे जुड़ी कानून की धाराओं 376 (बलात्कार) व 498A (दहेज़ उत्पीड़न) को कुछ महिलाएं हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। वर्ष 2014 में प्रकाशित दिल्ली कमीशन फॉर वुमन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में रिपोर्ट किए गए 53% रेप के मामले झूठे थे।

सच कहूं तो आज समाज में कानून का गलत इस्तेमाल कुछ महिलाएं और लड़कियां व्यक्तिगत दुश्मनी या सबक सिखाने के लिए कर रही हैं। इसकी वजह से बेगुनाहों को जेल काटनी पड़ रही है।

ऐसे पक्षपाती व्यवहार को देश में बदलने की जरूरत है। ऐसे मामलों को लेकर बनाये गये कानून में संशोधन करने की जरूरत है। ताकि भविष्य में इस क़ानूनों से समाज में लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा न मिले और लोगों का न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास बना रहे जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

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