पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में तीन दिन पहले आतंकवाद के विरुद्ध कड़े कदम लेने के दावे हवाई तीर साबित हो गये। एससीओ की बैठक के चार दिन बाद ही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने यह पाया है कि आतंकवाद रोकने के लिए पाकिस्तान आवश्यक 27 बिंदुओं के एक्शन प्लान में से 25 को पूरा करने में असफल रहा। यह संस्था दुनिया भर में आतंकी संगठनों को दी जाने वाली अवैध सहायता पर नजर रखती है। एससीओ की बैठक मे इमरान खान ने विश्व के सामने बयान दिया था कि पाकिस्तान सभी रूपों में आतंकवाद की निंदा करता है। पीएम इमरान ने कहा था, “हम उन कुछ देशों में से हैं, जिन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सफलता हासिल की है, पाकिस्तान आतंकवाद से मुकाबले में अपने अनुभव और विशेषज्ञता को साझा करने के लिए तैयार है। हम एससीओ के आतंकवाद निरोधी प्रयासों में भी सक्रिय रूप से लगे रहेंगे।”
लेकिन बाद में ये बयानबाजी का सच चार दिन मे ही सामने आ गया। आतंकी संगठनों के अवैध स्रोत पर निगरानी करने वाले संगठन एफ़एटीएफ़ ने पाकिस्तान से पूछा है कि आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा ,जैश-ए-मोहम्मद, जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फ़ाउंडेशन आदि द्वारा संचालित स्कूलों, मदरसों के लिए आवंटित $7 मिलियन की जांच क्यों नहीं की। इनमे से कुछ की स्थापना अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी तथा भारत पर कई हमलों के जिम्मेदार हाफिज़ सईद ने की है।
एफएटीएफ ने कहा कि पाकिस्तान को 27 बिंदुओं का जो एक्शन प्लान दिया गया था, वह उसे 15 महीनों में पूरा करना था। इसकी समय सीमा आगामी अक्तूबर माह में खत्म हो जाएगी। अगर पाकिस्तान इन बिन्दुओं पर कारवाई नहीं करता है तो उसे 36 सदस्य वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ब्लैक लिस्ट में डाल सकती है, जिसका प्रभाव उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के सामने पदावनति के रूप में होगा, जिससे उसे भविष्य में ऋण मिलने में समस्या आएगी। एफएटीएफ अगर पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट कर देता है तो उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मिलने वाले 6 अरब डॉलर के कर्ज पर भी रोक लग सकती है। साथ ही पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की भारत की नीति के लिए भी ये एक बड़ी सफलता होगी।
पिछले कई महीनों से आर्थिक तंगी झेल रहे पाक के लिए यह और भी बड़ी समस्या होगी। जून 2018 में, पाकिस्तान को ‘ग्रे’ सूची में डाला गया और एफएटीएफ द्वारा पाकिस्तान को 27 अंकों की कार्य योजना दी गई थी। अक्टूबर 2018 में आखिरी प्लेनरी मीटिंग में इस योजना की समीक्षा की गई और इस साल फरवरी में एफ़एटीएफ़ द्वारा यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में ही बरकरार रहेगा। आपको बता दें कि इस साल फरवरी में पाकिस्तान-आधारित आतंकियों ने पुलवामा हमले को अंजाम दिया था जिसको लेकर भारत ने एफ़एटीएफ़ के समक्ष कड़ी आपत्ति जताई थी।
पाकिस्तान लगातार खुद को आतंक मुक्त होने का दावा करता है लेकिन हर बार उसे मुँह की खानी पड़ती है। हाल के शंघाई सहयोग संगठन में प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को कोई तवज्जो नहीं देकर यह साफ कर दिया था, कि बिना आतंकवाद के खात्मे से पहले पड़ोसी देश के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू नहीं किया जाएगा । भारत एफएटीएफ और एशिया पेसिफिक ग्रुप का एक वोटिंग सदस्य है, और संयुक्त समूह का सह-अध्यक्ष भी है। हालांकि, अब देखने वाली ये बात होगी कि चीन पाकिस्तान के ब्लैकलिस्ट होने का समर्थन करता है या प्रस्ताव का विरोध करता है।