जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 58 नवनिर्वाचित सांसदों के साथ नए केन्द्रीय मंत्रिमंडल की शपथ ली, तो राष्ट्रपति भवन का प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से सबसे ज़्यादा तब गूंजा, जब सादे कपड़ों में एक व्यक्ति ने अपने पद के लिए शपथ ली। ये व्यक्ति हैं ओडिशा से भाजपा सांसद प्रताप चंद्र सारंगी जिन्हें ‘ओडिशा के मोदी’ के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान सरकार में उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय में राज्य मंत्री, पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय में राज्य मंत्री का दायित्व सौंपा गया है। चूंकि वो आरएसएस से जुड़े हैं तो इनकी आलोचना होना कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसे में जब इस बार उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिली तो लेफ्ट-लिबरल खेमा सक्रिय हो गया और उन्हें निशाना बनाने लगा। ऐसा करने के पीछे क्या वजह हैं और कैसे ये सारंगी के लिए फायदेमंद भी है इसपर चर्चा करने से पहले हम उनके बारे में जान लेते हैं।
फकीरीपन प्रताप चंद्र सारंगी के स्वभाव का हिस्सा है। जो बातें उनके बारे में मशहूर हैं वो है साधारण कपड़े पहनना, बिखरे बाल, लंबी दाढ़ी रखना, विनम्रता और उनके स्वतंत्र विचार। सारंगी का जन्म नीलिगिरी से सटे गोपीनाथपुर गांव के एक गरीब परिवार में 4 जनवरी 1955 में हुआ था। पीएम मोदी की तरह सारंगी भी युवावस्था में संन्यासी बनने की राह पर निकल पड़े थे। इसी वजह से लोग उन्हें ”ओडिशा का मोदी” भी कहते हैं। वो दो बार ओडिशा विधानसभा भी पहुंच चुके हैं। साल 2004 में बीजेपी के टिकट से, तो साल 2009 में बालासोर लोकसभा क्षेत्र में आने वाले नीलिगिरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी चुने गए थे। प्रताप सारंगी, हिंदी-ओड़िया-संस्कृत भाषा में निपुण हैं। सारंगी स्थानीय स्तर पर कई सामाजिक कार्यों जैसे शिक्षा और शराब विरोधी अभियान से जुड़े रहे हैं। उन्होंने अपने विधायक के तौर पर मिलने वाले वेतन से बालासोर और मयूरभंज जिलों में आदिवासी बच्चों के लिए गण शिक्षा मंदिर योजना के तहत संस्कार केंद्र भी खुलवाए हैं। अक्सर साइकिल से चलने वाले प्रताप सारंगी अपने चुनाव प्रचार के लिए ऑटो रिक्शा को किराये पर लेने के लिए भी विख्यात हैं। सारंगी लंबे समय तक आरएसएस से जुड़े रहे हैं और लोकसभा चुनाव 2019 में वो ओडिशा के बालासोर से पहली बार सांसद चुनकर आए हैं। उन्होंने बालासोर संसदीय सीट से बीजद प्रत्याशी रबींद्र कुमार जेना को 12,956 मतों से हराया है।
जहां एक तरफ उनकी इस सादगी को देख पूरा देश उनका कायल हो गया है, वहीं देश के लेफ्ट-लिबरल मीडिया को अब इनकी सादगी भी खटक रही है। मोदी सरकार के किसी भी सदस्य को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाले लेफ्ट-लिबरल ने थोड़ी जांच पड़ताल के बाद प्रताप सारंगी के विरुद्ध दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। इनके अनुसार, प्रताप सारंगी पर 7 आपराधिक मामले दर्ज हैं, और साथ ही साथ ये आस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस के हत्यारों को भड़काने के भी ‘दोषी’ हैं। जबकि इस मामले की हकीकत कुछ और ही है।
लेफ्ट-लिबरल के दुष्प्रचार की अगुवाई एक बार फिर विवादित पत्रकार राणा अय्यूब ने की, जिनहोंने प्रताप सारंगी के खिलाफ ग्राहम स्टेंस मामले के संबंध पर कुछ ‘गंभीर सवाल’ उठाने का प्रयास किया:
New Union Minister in Modi's cabinet, Pratap Sarangi was Bajrang Dal chief when missionary Graham Staines and his children were burnt alive. Sarangi propagated the evil designs of the Catholic church and instigated the attacks. https://t.co/qkheujKC6w
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) May 31, 2019
Mr. Modi's Union minister #PratapSarangi was also arrested on charges of rioting, arson, assault and damaging government property after a 2002 attack on the Orissa state assembly by Hindu rightwing groups, including the Bajrang Dal. https://t.co/95lTvsM9iI
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) May 31, 2019
राणा अय्यूब के समर्थन में विवादित पत्रकार निखिल वागले ने भी प्रताप सारंगी के खिलाफ दुष्प्रचार करते हुए यह ट्वीट किया –
Pratap Sarangi: India social media hero minister's dubious past – BBC News https://t.co/ggGpUyE2qI
— nikhil wagle (@waglenikhil) May 31, 2019
https://twitter.com/ashoswai/status/1134345051331600384
अब ऐसे में हमारे परम प्रिय मित्र ‘द वायर’ कैसे पीछे रहता? इनहोंने तो प्रताप चंद्र सारंगी को अप्रत्यक्ष रूप से दोषी करार देते हुए एक पूरा लेख ही छाप दिया। इनके सुर में सुर मिलाते हुए कांग्रेसी मुखपत्र ‘नेशनल हेराल्ड’ ने भी प्रताप चंद्र सारंगीको कटघरे में खड़े करते हुए ये लेख प्रकाशित किया –
अब जब लेफ्ट लिबरल मीडिया हमारे सारंगी जी के लिए इतने मधुर वचन निकाल ही रहे हैं, तो लगे हाथों तथ्यों की भी बात हो जाये? यह सत्य है कि प्रताप चंद्र सारंगी आरएसएस से काफी समय तक जुड़े रहे हैं, और इसी नाते धर्म परिवर्तन के धुर विरोधी भी रहे हैं। ये भी सत्य है कि ग्राहम स्टेंस हत्याकांड में इनका नाम भी उछाला गया था, पर उन्हें साल 2007 में ओडिशा हाई कोर्ट ने निर्दोष करार दिया था।
इसके साथ ही साथ ये बात भी सामने आई है कि प्रताप चंद्र सारंगी एक वक़्त रामकृष्ण मठ का हिस्सा बनना चाहते थे, और यदि ये सत्य है, तो कोई व्यक्ति एक समय पर रामकृष्ण मठ और बजरंग दल जैसे विपरीत विचारधारा के संगठनों का सदस्य कैसे हो सकता है? क्या हमारे लेफ्ट-लिबरल मित्र इसे समझाने का कष्ट करेंगे?
वैसे भी, हमारे लेफ्ट-लिबरल मित्रों के रवैये से देखकर तो यही प्रतीत होता है कि हमसे ज़्यादा ये लोग मोदी सरकार को बारंबार सत्ता में देखना चाहते हैं क्योंकि ये इन सभी का विरोध ही है जिसने देश को कई बेहतरीन नेता दिए हैं। पहले इस गैंग ने 2002 का राग अलापते हुए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचाया। जब उतने से भी मन नहीं भरा तो हिंदुत्व छवि का राग अलापते हुए योगी आदित्यनाथ के हाथ में उत्तर प्रदेश की सत्ता थमा दी।
इतने से भी संतुष्ट नहीं हुए कथित ‘हिन्दू आतंकवाद’ का राग अलापते हुए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को संसद तक पहुंचा दिया और ‘फर्जी एनकाउंटर’ का राग अलाप कर अमित शाह को गृह मंत्री पद तक पहुंचा दिया। अब लगता है इन बुद्धिजीवियों के पास प्रताप चंद्र सारंगी के लिए बड़ी नेक योजनायें है क्योंकि जिस तरह से ये वर्ग उनकी आलोचना कर रहा है.. देश की जनता उतना ही सारंगी के बारे में जानने को उत्सुक हो रही है। ऐसे में जो सारंगी से नहीं भी परिचित होगा वो भी इस नेता को जान गया होगा। इसके बाद जनता काम और व्यवहार को देखते हुए अगर भविष्य में प्रताप सारंगी को ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में चुनती है या केंद्र सरकार में वो किसी बड़े ओहदे तक पहुंचते हैं, तो इसका पूरा पूरा श्रेय हमारे लेफ्ट-लिबरल खेमे को ही जाएगा।