कांग्रेस पार्टी को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए एक और बलि का बकरा मिल गया है

(PC: Janam TV)

लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद जिस कांग्रेस पार्टी को आत्मचिंतन करने की सख्त जरूरत थी, उस पार्टी के नेता नतीजों के बाद से ही एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने में लगे हैं। पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी तक, कोई हार की ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं दिखाई देता। नतीजे सामने आने के बाद पहली ही बैठक में राहुल गांधी ने अपनी भड़ास कमलनाथ और अशोक गहलोत जैसे नेताओं पर निकाली। राहुल गांधी ने यह आरोप लगाया था कि इन नेताओं ने पार्टी से पहले अपने पुत्रों को प्राथमिकता दी जिसकी वजह से कांग्रेस को मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद इसी महीने 13 जून को यह खबर आई कि प्रियंका गांधी ने पार्टी के बुरे प्रदर्शन को लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं को इसका दोषी बताया है। अब लगता है कांग्रेस पार्टी को अपनी जबर्दस्त हार का ठीकरा फोड़ने के लिए एक और बली का बकरा मिल गया है, और उनका नाम है प्रवीण चक्रवर्ती। ये वहीं प्रवीण चक्रवर्ती हैं जिनको कांग्रेस पार्टी द्वारा डेटा विश्लेषण विभाग का प्रमुख बनाया गया था।

प्रवीण चक्रवर्ती को लेकर हाल ही के दिनों में दो बड़े लेख आ चुके हैं, जो पूरी तरह कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सूत्रों पर आधारित हैं। इनमें से एक लेख में जहां चक्रवती को कांग्रेस के दफ्तर में भाजपा के एजेंट के तौर पर दिखाया गया है, तो वहीं दूसरे लेख में भी चक्रवर्ती के डेटा विश्लेषक होने के नाते उनकी कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। इकनॉमिक टाइम्स में छपे एक लेख के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सूत्रों ने बताया कि इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी के डेटा विश्लेषक के तौर पर प्रवीण चक्रवर्ती ने कांग्रेस अध्यक्ष को पूरी तरह गुमराह किया। कांग्रेस पार्टी के नेताओं के मुताबिक पार्टी में उनका कद इस तरह बढ़ गया कि उन्हें पार्टी में कुछ नेताओं द्वारा ‘सुपर प्रेज़ीडेन्ट’ की उपाधि दी गई थी।

दरअसल, वर्ष 2018 में कांग्रेस पार्टी द्वारा आंतरिक सूचना साझा करने के लिए एक डिजिटल प्लैटफॉर्म बनाया गया जिसको ‘शक्ति’ नाम दिया गया। इस प्लेटफॉर्म का मकसद पार्टी के हाईकमान को बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ जोड़ना था ताकि जमीनी स्तर के हालातों को बेहतर ढंग से समझा जा सके। यह पूरा कार्यक्रम कांग्रेस के डेटा विश्लेषण विभाग के अंतर्गत चलाया गया जिसके प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती ही थे। हालांकि, कांग्रेस पार्टी के एक कार्यकर्ता के मुताबिक ‘शक्ति’ कार्यक्रम इस वजह से पूरी तरफ फ्लॉप साबित हुआ क्योंकि प्रवीण चक्रवती कभी अपने डेटा को किसी के साथ साझा किया ही नहीं। इसके अलावा ‘शक्ति’ के तहत काम करने वाले कार्यकर्ताओं को यह ही नहीं पता होता था कि कौन क्या काम कर रहा है, या किसकी क्या ज़िम्मेदारी है! यानि कुल मिलाकर कांग्रेस के इन नेताओं और अधिकारियों ने यह जताने की कोशिश की है कि इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ इसलिए हार मिली क्योंकि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को उनके डेटा विश्लेषण विभाग के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती से सही जानकारी नहीं मिल रही थी।

कांग्रेस के नेताओं ने यह तक बताया कि राफेल मुद्दे पर प्रवीण चक्रवर्ती ने राहुल गांधी को यह यकीन दिलाने की कोशिश की, कि लोगों के मन में इस डील को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं, और यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के बाकी नेता जहां अपने भाषणों में राफेल डील का ज़िक्र करने से बच रहे थे, तो वहीं राहुल गांधी बार-बार उसी का ज़िक्र कर रहे थे। इसी तरह डेटा विश्लेषण विभाग ने राहुल गांधी तक यह  भी जानकारी पहुंचाई कि लोगों पर बालाकोट एयर स्ट्राइक का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, जबकि जमीनी स्तर की सच्चाई इससे परे थी।

पार्टी के नेताओं के इन बयानों से यह स्पष्ट है कि पार्टी के नेता यह बिल्कुल नहीं चाहते कि पार्टी के अध्यक्ष और हाईकमान पर किसी तरह की कोई आंच आए। इन पार्टी के नेताओं को अब प्रवीण चक्रवर्ती के रूप में एक नया बली का बकरा बना है ताकि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर कोई ज़िम्मेदारी ना आ सके। इकनॉमिक टाइम्स के इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए चक्रवर्ती ने लिखा है कि इस लेख की एक-एक लाइन पूरी तरह बकवास है और उसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। चक्रवर्ती ने यह आरोप लगाया है कि मीडिया जान-बूझकर उनके खिलाफ एजेंडा चला रही है जबकि सच्चाई यह है कि खुद कांग्रेस के नेता ही चक्रवर्ती को कांग्रेस की हार का जिम्मेदार बताने पर तुले हैं। इससे एक बात साफ है कि कांग्रेस पार्टी का कोई नेता नहीं चाहता कि कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार के प्रभुत्व पर किसी तरह का खतरा आए। इस वजह से पार्टी की हार के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष द्वारा अपना इस्तीफा पेश करने का ढोंग तो बखूबी किया गया लेकिन पार्टी में सुधार के प्रति किसी ने सकारात्मक रुख नहीं दिखाया। अगर सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस सत्ता पाने के लिए नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ते नज़र आ रही होगी।

Exit mobile version