वामपंथी पोर्टल ‘द क्विंट’ के संस्थापक को बड़ा झटका, ईडी ने की बड़ी कार्रवाई

राघव बहल

भारत का लेफ्ट लिबरल मीडिया दोहरे चरित्र का जीता जगता उदहारण है। चाहे महिला सशक्तिकरण पर व्याख्यान देना हो, या फिर छेड़खानी के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठानी हो, या फिर उद्योग में पारदर्शिता लानी हो, कैमरे के समक्ष ये लोग नैतिकता की दुहाई देते फिरते हैं, पर जब इन्हीं सिद्धांतों का उन्हें अपनी निजी जीवन या कार्यालय में क्रियान्वयन करना होता है, तो इनके पसीने छूटने लगते हैं।

अभी हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘द क्विंट’ के संस्थापक एवं प्रोमोटर राघव बहल के विरुद्ध आयकर विभाग की वर्तमान चार्जशीट के आधार पर केस दर्ज किया है। राघव बहल पर ब्लैक मनी [अघोषित विदेशी आय एवं संपत्ति] एक्ट के तहत लंदन में 2.73 लाख पाउंड [लगभग 2.45 करोड़ रुपये] की संपत्ति के बारे में जानकारी नहीं देने का आरोप है। सीधे सीधे बोले तो राघव बहल पर कर चोरी के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

पिछली बार महज नोएडा कार्यालय पर छापा पड़ने भर पर सरकार को गिराने की धमकियाँ देने वाले राघव बहल इस बार मौन साधे बैठे हैं। हो भी क्यों न, इस बार इनपर लगाए आरोप कोई हंसी मज़ाक थोड़े ही हैं। राघव बहल पर कर चोरी एवं धन के गबन के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जब पिछली बार छापा पड़ा था तो अपने उत्तर में राघव बहल ने केंद्र सरकार का उपहास उड़ाते हुए कहा था कि उन्हें उक्त छापे में कुछ नहीं मिला। लेकिन इस बार मनी लांड्रिंग का जो मामला आपके के खिलाफ दर्ज हुआ है वो निराधार तो बिलकुल नहीं होगी, है न राघव साहब?

आपको बता दें कि पिछले वर्ष अक्टूबर में आयकर विभाग ने राघव बहल के नोएडा कार्यालय पर छापा मारा था। राघव बहल के कार्यालय पर ये छापा कर चोरी और फर्जी लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) दिखाने के आरोप में किया गया था।

राघव बहल, द क्विंट चलाने वाली ‘क्विंटिलियन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड’ के संस्थापक और प्रोमोटर दोनों हैं. उन्होंने 3.03 करोड़ के निवेश के आधार पर 114 करोड़ कमाए हैं। आयकर विभाग को जानकारी मिली कि राघव बहल ने अपने ही शेयर लगभग 15 हजार गुना अधिक दाम पर वापिस खरीदा था।

ऐसा आरोप है कि राघव बहल ने इस लाभ को अर्जित करने के लिए ‘शेल कंपनियों’ का उपयोग किया था, जिनमें से कई कंपनियां केवल नाम के लिए ही बनी थी। कई कंपनियों ने तो वर्षों से द क्विंट की किसी भी प्रकार की आर्थिक गतिवधियों में हिस्सा ही नहीं लिया है। सेबी ने इनमें से तीन कम्पनियों [इकॉनमी सप्लायर्स प्राइवेट लिमिटेड, सीबर्ड रीटेल्स प्राइवेट लिमिटेड, एवं सीबर्ड डिस्ट्रिब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड] पर क्रमश: 1 लाख, 3 लाख एवं 3 लाख रुपये का जुर्माना भी ठोंका है।

बता दें कि जब पिछले साल द क्विंट वेबसाइट के मालिक राघव बहल के नोएडा स्थित घर और दफ्तर पर आयकर विभाग की टीम ने छापा मारा था तब उन्होंने केंद्र सरकार पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। अपना गुस्सा जाहिर करते हुए राघव बहल ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में बहल ने कहा था कि ‘सभी कर ईमानदारी से अदा करने के बावजूद प्रताड़ित किया जा रहा है। जहां तक अपने या अपने उद्योग संबन्धित ऋण चुकाने का सवाल है, वहां पर भी मेरे ऊपर किसी प्रकार का बकाया नहीं है।‘

यही नहीं, राघव बहल ने तो बकायदा प्रशासन की प्रतिबद्धता पर ही गंभीर सवाल खड़े करते हुए आगे कहा था, ‘इस तरह के निर्णय के कारण ही प्रशासन असली अपराधियों तक नहीं पहुंच पाती है। इससे न सिर्फ न्यायालय का समय और साधन दोनों व्यर्थ जाते हैं, बल्कि ऐसे कार्रवाई कानून व्यवस्था की साख पर ही सवाल उठाते हैं।‘

उस समय मुख्यधारा की मीडिया में किसी ने भी इस सच्चाई के बारे में बताना तो दूर, इसपर दो शब्द भी नहीं व्यक्त किए the। पूरे केस को ‘पॉलिटिकल वेण्डेट्टा’ का दर्जा देते हुए उन्होंने राघव बहल को बचाने का हरसंभव प्रयास किया था। केवल न्यूज़लौंडरी नामक मीडिया पोर्टल ने इस विषय पर आयकर विभाग का पक्ष लिया था।

सच पूछें तो लेफ्ट लिबरल मीडिया की कथित नैतिकता केवल कैमरे के सामने ही रहती है। कैमरा के पीछे ये कर चोरी, धन के गबन, यौन शोषण, चाटुकारी जैसे अनगिनत अपराधों में संलिप्त रहते हैं। ये मीडिया मूल रूप से जनता को सही जानकारी एवं निष्पक्ष खबरें मुहैया कराने के लिए बना है। पर जब ये खुद ही ऐसे धंधों में लिप्त हो जिससे दूर रहने के लिए वे आए दिन जनता को ज्ञान बांटता हैं, तो हम उन्हें निष्पक्षता से जनता को सच बताने की आशा कैसे कर सकते हैं?

रोचक बात तो यह है कि अगर इन लोगों के विरुद्ध किसी भी प्रकार का लीगल एक्शन लिया जाता है, तो यह ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की दुहाई देते हैं… इसके विरोध में उतर आते हैं। हमें तो यही नहीं समझ में आता कि जब केंद्र सरकार किसी भी आरोप में घिरती है, तो उन्हें चुटकी बजाते ही न्याय चाहिए, पर जब भी इनकी खुद की वित्तीय धांधली अथवा यौन शोषण संबन्धित गतिविधियों पर उंगली उठाई जाती है, तो यह ‘मीडिया की स्वतन्त्रता’ खतरे में हैं का राग अलापने लगते हैं। आखिर ये नैतिकता का ढोंग कब तक चलेगा?

 

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