नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से मंत्रिमंडल में शामिल सभी सदस्य एक्शन मोड में हैं। विदेश मंत्रालय की बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने के बाद एस जयशंकर ने अपनी पहली पब्लिक मीटिंग में ही पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए खास रणनीति तैयार कर ली है और अब वह उसके नापाक मंसूबों के खिलाफ कड़ा एक्शन लेने को तैयार हैं। इस मीटिंग में उन्होंने बिना पाकिस्तान का नाम लिए कहा कि SAARC में कुछ समस्याएं हैं जिससे सभी जानते भी हैं। उन्होंने यहां पीएम मोदी के शपथ ग्रहण में बिम्सटेक देशों को महत्व दिए जाने के पीछे की वजह की ओर भी इशारा किया।
गौरतलब है कि, पाकिस्तान एक तरफ भारत के साथ शांति बनाए रखने की बात करता है, तो वहीं समय-समय पर वह अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिश भी करता रहता है। ऐसे में अब भारत के नए विदेश मंत्री और कूटनीतिक विशेषज्ञ माने जाने वाले एस जयशंकर ने अपनी पहली ही मीटिंग में बिना नाम लिए इशारों में ही पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कही है।
उन्होंने बिमस्टेक के साथ सुनहरे भविष्य पर कहा कि ‘भारत की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि, वह आर्थिक तौर पर वृद्धि के लिए अपने पड़ोसी देशों को भी साथ लेकर चले। साथ ही उन्होंने कहा कि, एशिया का सबसे बड़े आर्थिक देश होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इन समस्याओं को सुलझाएं।‘ जयशंकर ने आगे कहा कि, ‘क्षेत्रीय कनेक्टिविटी भारत के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता होने जा रही है। क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर हम आपसी सहयोग से एक बेहतर भविष्य की कामना कर सकते हैं।‘ आपको बता दें कि, BIMSTEC 7 देशों का एक संगठन है जिसमें बांग्लादेश, भारत म्यांमार, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं।
एस जयशंकर का राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने पर हमेशा से ज़ोर रहा है। उन्होंने सार्क समिट को लेकर कहा कि, ‘पाकिस्तान की तरफ से सीमा पार आतंकवाद को मिल रहे समर्थन के कारण सार्क सम्मेलन को जारी रखना बहुत कठिन है।‘ उन्होंने कहा कि, ‘अगर हम आतंकवाद के मुद्दे को भी छोड़ दें तो कनेक्टिविटी की समस्या है और व्यापार को लेकर भी काफी समस्या है।‘
भले ही एस जयशंकर बहुपक्षवाद और क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने पर जोर देते हों लेकिन कई मौकों और उन्होंने सार्क की विफलता को स्वीकार भी किया है और ऐसा करने के पीछे जो वजह है वो पाकिस्तान ही है।
साल 2017 में बतौर भारतीय विदेश सचिव एस. जयशंकर ने दिल्ली में रायसीना डायलॉग के दूसरे संस्करण में जो कहा था दोहराते हुए कहा,, भारत बहुपक्षवाद (multilateralism) का समर्थक रहा है। ये बहुलवाद और विविधता की हमारी अपनी घरेलू परंपराओं को दर्शाता है। एक बहुध्रुवीय (multipolar) दुनिया में आने से पहले हम इसकी वांछनीयता और यहां तक कि इसकी अनिवार्यता पर विश्वास करते थे। ये किसी के लिए भी अकल्पनीय था कि ये बड़ी और विविधता से भरी दुनिया एक छोटे से गठबंधन की शक्ति से चल सकती है।
इसके अलावा उन्होंने क्षेत्रीय गठबंधनों के महत्व और पाकिस्तान द्वारा सार्क के लाभों को फिर से प्राप्त करने में विफलता पर कहा था, क्षेत्रीय समूह आज वैश्विक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और इस समूह शक्ति सभी के समक्ष है। भारत सार्क का एक संस्थापक सदस्य है लेकिन ये संगठन जो एक सदस्य की वजह से अप्रभावी बन गया है। ”
भले ही दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के विचार के साथ सार्क को शुरू किया गया था लेकिन पाकिस्तान की नापाक हरकतों ने इस संस्था की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सार्क के अन्य सदस्यों ने कड़ी आलोचना भी की है। हालांकि, सार्क अभी भी क्षेत्रीय समूहन के आधार पर पाकिस्तान और उसके कार्यों को वैधता प्रदान करता है। यही वजह है कि भारत पिछले कुछ वर्षो से बिम्सटेक को बढ़ावा दे रहा है। बिम्सटेक के सदस्य मिलकर क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग के जरिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। स्पष्ट है सार्क की बजाय बिम्सटेक देशों को महत्व दिया जाना पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति का हिस्सा है और इसे कारगार करने के लिए एस जयशंकर ने पूरी तैयारी कर ली है।
गौरतलब है कि एस जयशंकर का पाकिस्तान की करतूतों के खिलाफ रुख साफ़ रहा है। आतंकवाद के मुद्दे को लेकर साल 2017 में जयशंकर पाक को फटकार लगाई थी और कड़े शब्दों में कहा था ‘आतंकवाद का कारख़ाना बंद करो।‘ यह पहली बार नहीं था जब विदेश सचिव रहते हुए उन्होंने पाक को घेरा था, इससे पहले उरी हमले के समय भी पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी थी। वहीं अब जब वो देश के विदेश मंत्री का पदभार संभाल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने पाक को अलग-थलग करने के पूरा मैप भी तैयार कर लिया है। जाहिर है जिस तरह से पिछले कुछ समय में पाकिस्तान सभी बड़े देशों के बीच अपना भरोसा स्थापित करने में असफल रहा है उससे यह साफ है कि अब उसके नापाक मंसूबों की सजा उसको मिल रही है।
वहीं विदेश मंत्री एस जयशंकर जिस रणनीति और कूटनीति को लेकर शुरू से चल रहे थे उसपर अब उन्होंने एक्शन तेज कर दिया है। SAARC से अलग होकर BIMSTEC को बढ़ावा देने से यह साफ है कि अब पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिलकुल अलग होने वाला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की पाकिस्तान का काउंटडाउन शुरू हो चुका है।