हमारे देश में जब बात अपने चहेते खिलाड़ियों की होती तो कोई पीछे नहीं हटना चाहता है। और खिलाड़ियों की तुलना करने में तो सिर्फ हमारा देश ही नहीं बल्कि बाहरी लोग भी पीछे नहीं रहते। समय समय पर ब्रेडमैन-जैक हाब्स, रिचर्ड्स-डीन जोन्स, गावस्कर-ग्राहम गूच, गावस्कर-बार्डर सचिन-लारा, सचिन- रिकी पोंटिंग जैसे समकालीन खिलाड़ियों की तुलना आम बात है। पर यहां ये समझना मुश्किल है कि विभिन्न युग के खिलाड़ियों की तुलना क्यों की जाती है? वो अपने समय के बेहतरीन खिलाड़ी थे और वर्तमान के खिलाड़ी अपनी जगह बेहतरीन हैं ..लेकिन सोशल मीडिया पर आजकल यही देखने को मिल रहा है। अपने मन से ही लोग ब्रेडमैन-सचिन, ब्रेडमैन-रिचर्ड्स, रिचर्ड्स-सहवाग, सचिन-विराट की तुलना सिर्फ रिकॉर्ड्स के आधार पर करना शुरू कर देते है।
हाल में जो तुलना दो खिलाड़ियों के बीच चल रही है उसने अब एक नया मोड़ ले लिया है। सोशल मीडिया पर पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और वर्तमान खिलाडी महेंद्र सिंह धोनी से करने लगे हैं। यह तुलना तब शुरू हुई जब इस विश्व कप में अफग़ानिस्तान के विरुद्ध धोनी ने बेहद धीमी बल्लेबाजी करते हुए 52 गेंदों पर 28 रन बनाए। भारत यह मैच 11 रनों से जीत गया लेकिन सचिन ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं थोड़ा निराश था। जीत और भी बेहतर हो सकती थी। मैं केदार जाधव और धोनी के बीच साझेदारी से भी खुश नहीं था। यह बहुत धीमी गति से था। अफग़ानिस्तान ने दो बार की विश्व विजेता को 8 विकेट पर 224 रन पर ही रोक दिया।” सचिन तेंदुलकर के इस बयान के बाद धोनी के फैंस भड़क गए और उनके 90 से 100 के बीच के स्ट्राइक रेट को लेकर हमला शुरू कर दिया।
यहां यह बात समझ में ही नहीं आ रही कि कैसे एक खिलाड़ी जिसके नाम विश्व क्रिकेट में बल्लेबाजी के लगभग सभी रिकार्ड्स हैं और जो रंगीन टीवी के दौर का महानतम खिलाड़ी हो…उसकी तुलना भारत के सफल कप्तानों में से एक महेंद्र सिंह के साथ कैसे की जा सकती है जिसने खेलना ही सचिन को देख कर शुरू किया था। यह तुलना बेतुकी है। सचिन तेंदुलकर ने अपनी 352 वनडे इनिंग्स में से 340 में ओपनिंग की हो उसकी तुलना अगर कोई ऐसे बल्लेबाज से करे जिसने अपनी अधिकतर बल्लेबाजी 5वें (83 इनिंग्स) और 6वें (126 इनिंग्स) पर की हो, इससे बेवकूफी ही कहेंगे।
और अगर सचिन जैसे महान खिलाड़ी ने महेंद्र सिंह धोनी को एक सलाह दे भी दी तो इसमें कुछ बुरा भी नहीं है। एक वरिष्ठ खिलाडी होते हुए क्या सचिन तेंदुलकर धोनी को सलाह भी नहीं दे सकते?
जो लोग सचिन के स्ट्राइक रेट को लेकर यह सवाल उठा रहे हैं, उन्हें ये जान लेना चाहिए कि उन्होंने अपने समय में उस पेस बैटरी का सामना किया है जो आज के मुक़ाबले कहीं ज्यादा खतरनाक और तेज़ गेंदबाजों में से एक थे। वसीम अकरम, वकार युनूस, एलेन डोनाल्ड, मैकग्रा, ब्रेट ली, शेन वार्न, और मुरलीधरन जैसे गेंदबाज का सामना करते हुए में टेस्ट में 15921 और वन डे 18426 रन बनाना कितना मुश्किल था, यह सचिन ही बता सकते हैं। यही नहीं सचिन जब बैटिंग करने मैदान में उतरते थे तब गेंदबाजों के लिए गेंदबाजी करना कितना मुश्किल हुआ करता था यह कई बार बड़े बड़े गेंदबाजों ने अपने बयानों में कहा भी है। वकार युनूस ने एक बार कहा था कि ‘वह तो वॉकिंग-स्टिक से भी लेग-ग्लांस लगा सकते हैं।’, वहीं ब्रेट ली ने कहा था कि ‘सचिन जब मैदान में बैटिंग करने उतरते हैं तो उनके खिलाफ गेंदबाजी करना काफी कठिन था। आपने भले ही ऑफ स्टम्प पर एक अच्छी गेंद फेंकी हो पर सचिन सफल करते हुए उसे डीप मिडविकेट पर 4 रन के लिए भेज देंगे। उनका बल्ला इतना भारी है फिर भी उसे वह एक टूथ पीक की तरह घूमाते है।‘
अब सचिन के स्ट्राइक रेट पर सवाल उठाने वालों को बता दें कि एक वैबसाइट के अनुसार 2001 के बाद सचिन ने 20 शतक बनाये और 90-100 के बीच उनका स्ट्राइक रेट 103.60 रहा है।
Cricinfo commentary is only available from 2001 so the stats of last 20 hundreds of Sachin Tendulkar is :
0-90 runs – 95.94
91-100 runs – 103.60
100+ runs – 138.12via @CricCrazyJohns https://t.co/IRq5waiElT
— Cricketopia (@CricketopiaCom) June 25, 2019
सचिन तेंदुलकर अद्भुत हैं। उन्होंने ब्लैक & व्हाइट के दौर में बल्लेबाजी शुरू की थी और रंगीन क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी बनकर सन्यास लिया था। यह 90 के दशक के लोग ही उस माहौल को बता सकते हैं कि जब सचिन तेंदुलकर, सौरव या सहवाग के साथ क्रीज़ पर आते थे तब ऐसा लगता था मानो 100 करोड़ जनता का विश्वास मैदान में उतरा हो। उनके आते ही स्टेडियम में वह गूंज, ‘सचिन सचिन,सचिन सच्चिन…’आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। आखिर वह कैसा व्यक्ति होगा जो अपने कंधो पर करोड़ों जनता की उम्मीदों के साथ मैदान में उतरता था।
1983 के बाद सचिन तेंदुलकर ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने क्रिकेट को भारत में इतना बड़ा बनाया। क्रिकेट उस दौर में इतना आसान नहीं था। एक-एक रन के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। इसके 3 कारण थे। पहला यह कि गेंदबाजों का स्वर्णिम दौर था, दूसरा क्षेत्ररक्षण के नियम बल्लेबाजों के लिए इतने आसान नहीं थे जों आज के दौर में है, और तीसरा उस समय बैट की क्वालिटी आज की तरह नहीं होती थी। टीम के 300 रन भी पहाड़ जैसे लगते थे। आज तो हर दूसरे मैच में 300 रन बन रहे हैं।
वन डे सीरीज़ों के फाइनल्स में 55 का औसत रखने वाले सचिन को फाइनल्स में उनके प्रदर्शन को लेकर ट्रोल करने वालों को यह सोचना चाहिए कि वो किसके बारे में बात कर रहे है। सचिन तेंदुलकर को देख कर ही आज सभी बल्लेबाजों ने बैटिंग सीखी है। खुद एमएस धोनी भी सचिन की इस सलाह को सकारात्मक सलाह की तरह ही मनन करेंगे। यह बात क्रिकेट प्रेमियों को समझना होगा। किसी खिलाड़ी को नीचा दिखा कर दूसरे को महान बताना बेवकूफी है। भारतीय क्रिकेट के लिए दोनों ही रत्न है और दोनों ही महान रहेंगे।