‘द ताशकंद फ़ाइल्स’ की अप्रत्याशित सफलता के बाद अब निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री का अगला प्रोजेक्ट जहां कुछ लोगों को हैरान कर सकता है, वहीं कुछ खास लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवी इससे काफी हद तक जलभुन भी सकते हैं। अब विवेक अग्निहोत्री अपना सारा ध्यान कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्य पर केन्द्रित करेंगे, जिसका शीर्षक ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ हो सकता है..ये नाम भविष्य में बदला भी जा सकता है।
Ok friends, its official.
My next film is an investigation on Kashmiri Pundit issue. pic.twitter.com/tzbE6nPkC9
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) June 3, 2019
मुंबई मिरर मैगज़ीन को दिये एक इंटरव्यू में विवेक रंजन अग्निहोत्री ने कहा, ‘मैं काफी समय से कश्मीर मुद्दे पर फिल्म बनाना चाहता था, और मेरी मौजूदा सफलता के बाद मुझे इतना आत्मविश्वास मिला है कि मैं इस संवेदनशील मुद्दे को सफलतापूर्वक संभाल सकूंगा। छोटे-छोटे बच्चे गोलियों से भून दिये गए, महिलाओं के साथ अमानवीय तरह से बलात्कार हुआ, और कई लोगों को रातों-रात अपने घर छोड़ने का फैसला सुनाया गया। ये फिल्म दुनिया के सबसे भयानक मानव त्रासदियों में से एक पर आधारित एक सच्ची, निष्पक्ष इन्वेस्टीगेशन होगी।‘
बता दें कि कश्मीर घाटी से कश्मीरी हिंदुओं का पलायन भारत की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है, जहां बदकिस्मती से पीड़ितों को अभी भी तक न्याय नहीं मिला है। आतंकियों, अलगाववादियों और कुटिल राजनेताओं ने मिलकर जो जुल्म कश्मीरी पंडितों के साथ किये वो बेहद शर्मनाक है जिसपर लेफ्ट लिबरल बात भी नहीं करना चाहते। कश्मीरी पंडितों की त्रासदी किसी एक परिवार की नहीं थी बल्कि ये एक सामूहिक त्रासदी थी. कश्मीरी पंडित हिंसा, आतंकी हमले और हत्याओं के माहौल में जी रहे थे वहीं महिलाओं के साथ अभद्रता और बलात्कार जैसी घटनाएं आम हो गयी थीं। उस समय सुरक्षाकर्मी तो थे लेकिन इतने नहीं कि वो कश्मीरी पंडितों की जान और सामान की सुरक्षा कर सकें. लाखों कश्मीरी हिन्दू, खासकर कश्मीरी पंडितों ने 19 जनवरी 1990 की रात अपना घर बार मजबूरन छोड़ना पड़ा था।
कश्मीरी पंडितों के उस समय के दर्द को बयां करने के लिए शब्द भी कम पड़ेंगे। विडम्बना तो इस बात की है कि इस कश्मीरी पंडितों के साथ हिंसा, बलात्कार हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देने वालों में से एक भी भी आरोपी आज तक पकड़ा नहीं गया..सज़ा देना तो बहुत दूर की बात है। जब विवेक अग्निहोत्री यह समझा रहे थे कि वो कैसे इस फिल्म को धरातल पर लायेंगे तब उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि हमारे देश की सेनाओं को भी इस विषय में निष्पक्ष रूप से नहीं चित्रित किया गया है।
उनके अनुसार, ‘मैं कश्मीर में कई कार्यकर्ताओं से संपर्क में भी हूं और कई बड़े राजनेताओं से भी मैंने बात की है। कितनी विडम्बना की बात है, कि कश्मीर पर बनी अधिकांश फिल्मों में आर्मी को हमेशा नकारात्मक रूप में दिखाया है, और आतंकवाद को सही साबित करने का नापाक प्रयास किया गया है। यह बहुत ही गलत विचारधारा है, जो सिर्फ प्रोपगैंडा पर आधारित है। मैं इस मिथक को इस फिल्म के माध्यम से तोड़ना चाहता हूँ।‘
‘चॉक्लेट’, ‘गोल’, ‘हेट स्टोरी’ जैसी फिल्में बना चुके विवेक अग्निहोत्री ने ‘बुद्धा इन अ ट्रैफिक जैम’ से अपने तेवर बदले। चूंकि इस फिल्म में नक्सलियों पर कोई रहम नहीं किया गया, और उनके शहरी बुद्धिजीवियों के साथ सांठ-गांठ भी बिना किसी लाग लपेट के प्रदर्शित किया गया, इसलिए विवेक अग्निहोत्री को आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। पर इसके बावजूद, जब फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई और सफल भी रही, तो विवेक अग्निहोत्री ने अपना ध्यान ‘द ताशकंद फ़ाइल्स’ पर लगाया।
लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु पर आधारित इस फिल्म के लिए विवेक अग्निहोत्री को लेफ्ट लिबरल गैंग के तानों और प्रपंचों का सामना करना पड़ा। बात तो यहां तक भी आ गयी कि जाने माने क्रिटिक्स ने इस फिल्म को अपनी समीक्षा तक देने से मना कर दिया। इन्हीं क्रिटिक्स को धुर अलगाववादी समर्थक और आर्मी विरोधी ‘हैदर’ किसी मास्टरपीस से कम नहीं लगी होगी।
आलोचनाओं के बावजूद ‘द ताशकंद फ़ाइल्स’ ने न सिर्फ सीमित स्क्रीन के साथ ‘एवेंजर्स:एंडगेम’, ‘कलंक’, ‘दे दे प्यार दे’ जैसी बड़ी बजट की फिल्मों का सामना किया, बल्कि आज भी सफलतापूर्वक देश के कई सिनेमाघरों में प्रदर्शित की जा रही है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इस संवेदनशील विषय को विवेक अग्निहोत्री से अच्छा शायद ही कोई पर्दे पर उतार सकता है। हम आशा करते हैं कि विवेक अग्निहोत्री इस विषय के साथ न्याय करेंगे और जिस न्याय से कई कश्मीरी पंडितों को वंचित रखा गया है, उस न्याय के लिए एक मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास करेंगे।