कश्मीरी पंडित बने गृह मंत्री अमित शाह की कश्मीर नीति का अहम हिस्सा  

अमित शाह

जब से अमित शाह ने गृह मंत्रालय का पदभार संभाला है, तब से उन्होंने कश्मीर की समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए कमर कस ली है। हाल ही में उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर की राजनीति में व्यापक बदलाव करते हुए वहां पर आरक्षण के क्रियान्वयन को एक नई दिशा दी है। तमाम चुनौतियों के बाद भी अमित शाह अपने विचारों से टस से मस नहीं हुए, और अब उनकी नयी नीति इस बात की पुष्टि करती है कि हमारे नए गृह मंत्री कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं।

हाल ही में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक पर सदन में भाषण देते समय अमित शाह ने धारा 370 पर जब अपना मत दिया, तो सभी सकते में आ गए। उन्होंने एक सांसद के विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा ‘आप कहते हैं कि धारा 370 है, पर आगे अस्थायी लगाना भूल जाते हैं। धारा 370 अस्थायी है।‘

इस बयान पर उन्हें कश्मीरी पंडितों के समूह और शिवसेना, दोनों ने खुलेआम समर्थन दिया। कश्मीरी पंडितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली प्रमुख संस्थाओं में से एक ‘पानून कश्मीर’ ने इस बयान का खुलेआम समर्थन करते हुए कहा है, ‘लोकसभा में गृह मंत्री के विचार न केवल सच है, बल्कि काफी प्रशंसनीय है। हमारा कहना है कि धारा 370 को हटा दिया जाना चाहिए और अब सही समय आ गया है। इस धारा के कारण कश्मीरी मुसलमानों के एक वर्ग में अलगाव की भावना जागृत हुई है, जिसके कारण पाकिस्तान को राज्य में आतंकवाद बढ़ाने के लिए अवसर मिला है।‘

इस बात से ये स्पष्ट है कि कश्मीरी पंडित अब अमित शाह की कश्मीर नीति का केंद्र बिन्दु बन चुके हैं। अपने भाषण में उन्होंने कई बार कश्मीरी पंडितों का उल्लेख किया है। यही नहीं, उन्होंने ऐसे कई निर्णय लिए हैं, जिनसे इस समुदाय को काफी लाभ मिलेगा, जो कश्मीर पर पुरानी सरकारी नीतियों से काफी अलग और बेहतर है।

उदाहरण के लिए अमित शाह ने कश्मीरी पंडितों को वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है। उनके लोकसभा में दिये गए भाषण के अनुसार, ‘हमने लद्दाख में शासन को सशक्त किया और साथ ही साथ हमने कश्मीरी पंडितों के सशक्तिकरण के लिए वित्तीय सहायता का भी निर्णय लिया है।‘ जिस समुदाय को वर्षों तक कई सरकारों ने उपेक्षित रखा, उनको जिस तरह अमित शाह ने सम्मान दिया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।

अमित शाह के इस निर्णय का कश्मीर नीति पर कितना असर पड़ सकता है, इसका उदाहरण शिवसेना की प्रतिक्रिया और आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस नीति से साफ पता चलता है। अक्सर कई मुद्दों पर भाजपा से असहमति जताने वाली शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में अमित शाह के निर्णयों को खुलेआम सराहा है। इनके लेख के अनुसार, ‘चूंकि स्थानीय पार्टियां परिसीमन के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं, इसलिए केंद्र सरकार निरर्थक बातचीत में समय व्यर्थ नहीं करेगी। यदि उन्हें निर्णय लेना है वो खुद स्थिति का आंकलन करते हुए निर्णय लेते हैं। ये नए गृह मंत्री की कार्यशैली से साफ़ झलकता है। यदि शाह ने ठाना है कि जम्मू-कश्मीर को एक हिन्दू मुख्यमंत्री मिले और जम्मू में कश्मीरी पंडित अपने घर वापिस लौटे, तो वे कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की दिशा में सराहनीय काम कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर को एक नई पहचान मिलेगी।“

वास्तव में कश्मीर नीति में कश्मीरी पंडितों को शामिल कर अमित शाह ने अपनी मंशा साफ कर दी है। उनका मकसद किसी प्रकार की चाटुकारिता और कश्मीरियत की गलत धारणाओं को बढ़ावा देना नहीं बल्कि कश्मीर को एक बार फिर स्वर्ग बनाने में अपना योगदान देना है। उन्होंने आतंक मुक्त एवं सांप्रदायिकता मुक्त कश्मीर की ओर एक सार्थक कदम बढ़ाया है।  

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