दुनिया के सबसे एजेंडावादी मीडिया संगठन बीबीसी ने एक बार फिर वही किया जिसके लिए वह जाना जाता है। उसने फिर एक बार भारत को बदनाम करने के लिए एक लंबा चौड़ा लेख लिखा जिसमें उसने मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए भगवान राम के सहारे भारत को एक मुस्लिम विरोधी राष्ट्र घोषित करने की कोशिश की।
दरअसल, 10 जुलाई को लेखक गीता पांडेय ने बीबीसी के लिए एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था ‘जय श्री राम: एक हिन्दू नारा जो हत्या का कारण बन चुका है’। इस लेख के माध्यम से गीता पांडेय ने यह दिखाने की कोशिश की, कि भारत में जय श्री राम के नारे लगाकर अब मुस्लिमों की हत्याएं की जा रही है और उनसे जबरन जय श्री राम का नारा लगवाया जा रहा है’। भारत में करोड़ो हिन्दू अनुयायी प्रतिदिन जय श्री राम का नारा लगाकर भगवान राम के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं, लेकिन बीबीसी द्वारा इस नारे को हिंसा और हत्या जैसे जघन्य अपराधों से जोड़कर दिखाना बेहद शर्मनाक है।
बीबीसी के इस लेख में सच्चाई और तथ्य तो बेशक अधूरे थे, लेकिन इस लेख में एजेंडे की कोई कमी नहीं थी। गीता पांडेय ने बेहद चतुराई से अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने लेख में तबरेज अंसारी, फैजल उस्मान खान, हाफिज़ मोहम्मद शाहरुख हलदर जैसे नामों को अंकित किया और लिखा कि इन लोगों पर इनके पहनावे और दाढ़ी की वजह से हमला किया गया और इनकी हत्या तक कर दी गई।
हालांकि, इस लेख में कहीं भी लस्सी विक्रेता भरत यादव का नाम नहीं मिला, जिसे समुदाय विशेष के लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला था। इसके साथ ही इस लेख में कहीं भी 55 वर्षीय गंगाराम का ज़िक्र नहीं मिला जिसे तथाकथित पीड़ित समुदाय के लोगों ने उसके घर में घुसकर उसे मौत के घाट उतार दिया था। गंगाराम के हत्यारों पर उनकी 13 वर्षीय बेटी को अगवा करने का आरोप था। हालांकि, बीबीसी के लेख में ऐसे पीड़ित हिंदुओं के नामों के अंकित ना होने से किसी को कोई हैरानी भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये घटनाएं बीबीसी के एजेंडे से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती।
बीबीसी को शुरू से ही हिंदुओं और हिंदुस्तान से परेशानी रही है। बीबीसी को भारतीयों के राष्ट्रवाद से परेशानी है। बीबीसी को भारत में दक्षिण पंथी सरकार से परेशानी है। बीबीसी को पीएम मोदी से परेशानी है और अब बीबीसी को भगवान राम से भी परेशानी होने लगी है। बीबीसी की इन सभी परेशानियों के केंद्र में विश्व में बढ़ता भारत का वर्चस्व है।
वास्तव में बीबीसी के लिए इस बात को पचा पाना मुश्किल है कि जिस देश पर अंग्रेजों ने 200 साल तक राज किया और जिस देश को लूटकर लगातार अपने खजाने भरे, आज वो देश हर क्षेत्र में उनसे आगे कैसे निकल सकता है? अपनी इसी हताशा में अब यह एजेंडावादी मीडिया संगठन हिंदुओं और हिन्दू धर्म को निशाना बना रहा है और इसी कड़ी में उसने जय श्री राम के नारे को हिंसा से जोड़कर दिखाया है।
बीबीसी के इस लेख से यह तो स्पष्ट है कि उसे भारत की संस्कृति और भारत में नारों के महत्व के संबंध में कोई ज्ञान नहीं है। दशकों से भारतीय सेना के जवान युद्ध-घोषों के माध्यम से अपना हौसला बढ़ाते आए हैं और देश की सीमाओं की रक्षा करते आए हैं। उदाहरण के तौर पर भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट का युद्ध घोष ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ है।
ऐसे ही गोरखा राइफल्स के लिए युद्ध घोष ‘जय महाकाली, आयो गोरखाली’ है और बिहार रेजीमेंट के लिए युद्ध घोष ‘जय बजरंगबली है’। हालांकि, लेख को पढ़ने से यही स्पष्ट होता है कि बीबीसी को शायद ‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे से ही लगाव है जिसका उद्घोष कर कुछ लोग मंदिरों तक पर हमला बोल देते हैं।
भीड़ द्वारा हिंसा या मॉब लिंचिंग एक अपराध है और इसकी निंदा की जानी चाहिए। हालांकि, कुछ घटनाओं को आधार बनाकर सभी हिंदुओं को कटघरे में खड़ा करना और जय श्री नाम के नारे का अपमान करना कहां तक उचित है? हिंसक प्रवृत्ति के लोगों का धर्म उजागर करके फिर उसी धर्म को निशाना बनाना पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
हमें अच्छा लगता अगर बीबीसी जय श्री राम को निशाना बनाने की बजाय हिंसक लोगों की मानसिकता पर चोट करता। हालांकि, हम भारतीयों पर बीबीसी के ऐसे एजेंडावादी लेखों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और जय श्री राम के नारे के लिए हमारे दिलों में हमेशा की तरह श्रद्धाभाव रहेगा।
जय श्री राम!