लोकसभा चुनाव के दौरान कश्मीर घाटी में बड़ा उलट फेर देखने को मिला था। घाटी के तीन लोक सभा क्षेत्र, जिन पर पहले महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी ने कब्जा जमाया था, उन सभी सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस विजेता रही थी। बीजेपी ने भी जम्मू में अच्छा प्रदर्शन किया था। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने राज्य में शांति स्थापित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। अब सबके मन में सवाल यह है कि पूरे देश में अपना परचम लहराने वाली बीजेपी अब कश्मीर में क्या रणनीति अपनाती है। मोदी सरकार ने शुरू से ही जम्मू कश्मीर को प्रथिमिकता दी है। चाहे वहां विकास कार्य करने हो या वहां के युवाओं को देश के अन्य हिस्सो का भ्रमण करा उन्हें देश से जुड़े होने का एहसास दिलाना हो।
लेकिन राजनीति का अंकगणित थोड़ा अलग होता है। लोगों से जुडने के अलावा किसी क्षेत्र का सम्पूर्ण राजनीतिक ज्ञान और जनसंख्या को भी ध्यान में रखना पड़ता है। साथ ही व्यावसायिक क्षेत्र के लोगों में भी विश्वास पैदा करना होता है ताकि वह आतंकियों के डर के बिना अपना व्यवसाय करे और राजनीतिक पार्टियों का समर्थन करे। भाजपा भी इसी प्लान पर काम कर रही है। सरकार में आने के बाद से ही मोदी सरकार ने प्लान पर काम शुरू कर दिया था।
भारतीय जनता पार्टी जम्मू-कश्मीर को लेकर पीडीपी के गठबंधन टूटने के बाद सजग रही है ताकि वहाँ के लोगों का विश्वास बना रहे। मोदी सरकार ने 2015 में ही प्रधानमंत्री डेवलपमेंट पैकेज के तहत 1000 करोड़ रुपये की घोषणा की थी जिसके तहत कई विकास कार्य पूरा होने की प्रक्रिया में चल रहें हैं। इस घोषणा के तहत विकास के कई प्रोजेक्ट जैसे इनफ्रास्ट्रक्चर, डैम और विद्युत परियोजनायें, शिक्षा के क्षेत्र में आईआईटी और आईआईएम की स्थापना, लोगों के लिए घर बनाने की योजना और पर्यटन क्षेत्र के विकास एवं रोजगार के लिए योजनाओं का शुभारंभ किया गया था। जम्मू-कश्मीर शुरू से ही अब्दुल्ला परिवार और मुफ़्ती परिवार की अलगाववादी राजनीति और भ्रष्टाचार से जूझता रहा है और विकास से अछूता रह गया था। इस सरकार ने डाइरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर के जरिए 12500 से भी अधिक परिवारों को लाभ पहुंचाया है।
गृह मंत्री बनने के बाद जब अमित शाह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए थे तब उन्होंने वहाँ की राजनीतिक और सुरक्षा हालात, दोनों का ही जायज़ा लिया था। और पंचायत प्रमुखों से मुलाकात भी की थी। इस सरकार ने पंचायत प्रमुखों से सभी योजनाओं के लिए सीधा संवाद स्थापित किया है जिससे लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंच सके।
जम्मू और कश्मीर में गांवों के विकास के लिए केंद्र सरकार ने 3,700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इस रकम की पहली किश्त जारी भी कर दी गई है। जम्मू और कश्मीर के 40 हजार सरपंच इन पैसों के जरिए सीधे गावों का विकास कार्यों में खर्च कर सकेंगे। आजादी के बाद पहली बार कश्मीर घाटी में सरपंचों के लिए सीधे विकास कार्यों के इस्तेमाल के लिए यह राशि आवंटित की गई है। इस राशि को सीधे सरपंचों तक पहुंचाया जाएगा जिसके बाद वह कश्मीर में गांव के विकास कार्य को आगे बढ़ा सकेंगे। पूरे जम्मू-कश्मीर के आला अधिकारी हर एक गांव का दौरा कर सरपंचों को जोड़ रहे हैं। इसका मतलब स्पष्ट था कि बीजेपी अब जमीनी नेताओं को महत्व दे रही है क्योंकि विधानसभा चुनाव में इन सभी पंचायत प्रमुखों की भूमिका अहम रहने वाली है और चुनाव के दौरान घाटी की शांति बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है जो उसे आने वाले विधानसभा के चुनाव में सीटें दिला सकती है।
मोदी सरकार कश्मीरी पंडितों के लिए भी घरों का निर्माण कर पुनर्वास केंद्र बनवा रही है। अगर चुनाव से पहले उनके कश्मीर लौटने के लिए सरकार महत्वपूर्ण कदम उठाती है तो यह भी भाजपा के पक्ष में ही जाएगा।
इसी प्लान के तहत जब बीजेपी ने 6 जुलाई से सदस्यता अभियान शुरू किया है, तब से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जम्मू कश्मीर पर विशेष ध्यान दे रहा है ताकि राज्य के राजनीति में अगले विधान सभा चुनाव में अपने दम पर सरकार बना सके। खुद शिवराज सिंह चौहान ने इस सदस्यता अभियान की बागडोर अपने हाथों में ले रखी है।
जम्मू कश्मीर राज्य के पिछले चुनाव में जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में पहले से ही बीजेपी अपनी स्थिति मजबूत कर चुकी है। लेकिन अब इन प्रयासों से भाजपा कश्मीर घाटी में भी अपना प्रदर्शन सुधारने में मदद मिलेगी। इससे भाजपा आने वाले चुनावों में बहुमत हासिल कर सकती है और अकेले दम पर राज्य में पहली बार सरकार बना सकती है।