सावधान! पुरुषों पर यौन उत्पीड़न के झूठे केस दर्ज़ करना अब महंगा पड़ सकता है

(PC: Zee News)

महिलाओं द्वारा पुरुषों पर झूठे यौन उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आज हालत यह है कि आपसी रंजिश के चलते पुरुषों पर झूठे आरोप लगा दिये जाते हैं और समाज में उन्हें बदनाम कर दिया जाता है, और अगर पुरुष बाद में निर्दोष साबित हो भी जाते हैं, तो झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है जिसकी वजह से और ज़्यादा महिलाएं ऐसा करने के लिए प्रेरित होती हैं। हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले ने अब इस धारणा को बदलने की दिशा दी है। एक अप्रत्याशित फैसले में कोर्ट ने ऐसा ही एक झूठा केस दायर करने वाली महिला पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है। इस महिला ने अपने एक वरिष्ठ अधिकारी पर आरोप लगाए थे। वह निर्दोष व्यक्ति वर्ष 2011 से इस मामले में लगातार कोर्ट के चक्कर लगा रहा था।

फैसला सुनाते वक्त जस्टिस जेआर मिड्ढा ने कहा कि महिला द्वारा दायर याचिका में कोई तथ्य नहीं थे और इसलिए केस को रद्द किया जाता है। इसी के साथ कोर्ट ने जुर्माने के तौर पर महिला को चार हफ्तों के अंदर दिल्ली हाईकोर्ट एडवोकेट वेल्फेयर ट्रस्ट को 50 हज़ार रुपये जमा करवाने के निर्देश दिये हैं। महिला ने इंटरनल कम्प्लेंट कमिटी (आईसीसी) के एक फैसले के विरूद्ध दिल्ली हाई कोर्ट में यह याचिका दायर की थी जिसमें उसने उस व्यक्ति के सभी रिटायरमेंट बेनिफिट्स पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी। इसके अलावा उस महिला ने कोर्ट से व्यक्ति के खिलाफ स्वतंत्र विभागीय जांच के आदेश जारी करने की गुहार लगाई थी।

शिकायत पर गठित की गई आइसीसी ने मामले की जांच की थी, इसमें वरिष्ठ अधिकारी ने आरोपों से इनकार किया था। कमेटी ने संदेह का लाभ देते हुए वरिष्ठ अधिकारी और महिला का दूसरे स्थान पर स्थानांतरण कर दिया था। पीठ ने कहा कि शिकायत पत्र में महिला ने कहा था कि घटना के समय कई कर्मचारी मौजूद थे, लेकिन जांच के दौरान वह एक भी व्यक्ति का नाम नहीं दे पाई, जो उस दौरान मौजूद था। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने उन टिप्पणियों के बारे में भी नहीं बताया, जो वरिष्ठ अधिकारी ने उस पर की थीं। ऐसे में महिला द्वारा की गई पूरी शिकायत झूठी प्रतीत होती है।

आईपीसी की धारा 228ए के मुताबिक अगर कोई महिला किसी व्यक्ति पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाती है तो उसकी पहचान को उजागर नहीं किया जाएगा। और यही कारण है कि महिलाएं पुरूषों पर बेबुनियाद आरोप लगा देती हैं और अगर आरोप झूठे सिद्ध भी हो जाए, तो भी महिलाओं को आज़ादी से घूमने की आज़ादी रहती है लेकिन पुरुषों को सारी उम्र समाज की घृणा का शिकार होना पड़ता है। वर्ष 2014 में दिल्ली महिला आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में यौन उत्पीड़न के फ़ाइल होने वाले 53 प्रतिशत केस झूठे होते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है और इस तरह के फैसलों से भविष्य में महिलाओं द्वारा दायर किए जाने वाले यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों की संख्या में भारी कमी आने की उम्मीद है।

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