इन दिनों देश के गृहमंत्री अमित शाह फुल एक्शन में दिख रहे हैं। पहले अनुच्छेद 370, उसके बाद NRC और फिर भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की बात कहने वाले अमित शाह अब ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी में व्यापक सुधार लाने के लिए कदम उठाने वाले हैं। बीपीआर एंड डी (पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो) के 49वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में गृहमंत्री अमित शाह ने इस बात के संकेत दिए हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीआरपीसी और आईपीसी के अंदर जरूरी बदलाव के लिए देशभर में एक परामर्श प्रक्रिया शुरु करने की जरूरत है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल में पुलिस का गठन अंग्रेज़ों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था, परंतु अब भारतीय पुलिस अफसरों का प्रमुख ध्येय जनता की रक्षा करना है। इसके अलावा उन्होंने पुलिस प्रशासन के योगदान को गिनाते हुये कहा कि आज तक देशभर में 34000 से ज़्यादा पुलिसकर्मियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। इसी संबंध में गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर आईपीसी एवं सीआरपीसी में व्यापक सुधार हेतु सुझाव मांगे हैं। यही नहीं, गृह मंत्रालय द्वारा न्यायिक विशेषज्ञों की दो कमेटी की स्थापना भी हुई है।
द हिन्दू से बातचीत के दौरान गृह मंत्रालय से संबन्धित सूत्रों ने बताया, “इस व्यापक बदलाव के पीछे का ध्येय है कि आईपीसी में स्वामी और दास की परंपरा खत्म हो। इस संबंध में आपीसी में अब तक कोई बदलाव नहीं किया गया है।
उन्होंने आगे कहा- ‘कुछ गंभीर अपराधों के लिए बड़ी बेतुकी सज़ा दी जाती है, उदाहरण के लिए आप रोड पर चेन अथवा बैग के छीने जाने को देख ही लीजिये। कुछ मामलों में ये घातक भी हो जाता है परंतु इसका दंड अपराध की सीमा को देखकर नहीं दिया जाता। ये पुलिस की मानसिकता के ऊपर निर्भर करता है और अक्सर इसे लूटपाट अथवा चोरी की श्रेणी में गिना जाता है। हमें दंड का एक मूल आधार निर्धारित करना होगा”।
इससे कुछ महीने पहले भी अमित शाह ने आईपीसी में बदलाव के संकेत दिये थे। अमित शाह के अनुसार पुलिस के अनुसंधान प्रक्रिया में व्यापक बदलाव की सख्त आवश्यकता है। अगस्त में प्रेस से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, “सच बोलें तो अपराध को सिद्ध कराने का दर बहुत ही दयनीय है। इसमें सुधार लाना अत्यंत आवश्यक है और ये तभी संभव है जब जांच के दौरान उचित फोरेंसिक साक्ष्य प्रदान किए जाए”। जब चार्ज शीट के साथ उचित फोरेंसिक साक्ष्य दिये जाएंगे, तो न्यायाधीश और बचाव पक्ष के अधिवक्ता के पास ज़्यादा विकल्प नहीं बचेंगे। इससे अपराध को सिद्ध कराने का दर भी सुधरेगा”। इसके अलावा अमित शाह ने इस बात पर भी ज़ोर दिया था कि पुलिस को किस तरह अपराधियों से अपनी प्रक्रिया के जरिये काफी आगे चलना पड़ेगा। उनके अनुसार, “यह बहुत आवश्यक है कि पुलिस अपराधियों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से चार कदम आगे रहे। यह तभी संभव हो सकता है जब आधुनिकीकरण सही से हो। यह थर्ड डिग्री के प्रयोग के लिए सही समय नहीं है। हमें जांच पड़ताल के लिए वैज्ञानिक उपाय निकालने चाहिए, फोन टैपिंग से सब संभव नहीं होगा। यदि आपको अपराध रोकना है, तो आपको पुराने तौर तरीके छोड़कर नए तकनीक प्रयोग में लाने होंगे।”
अंग्रेज़ों के समय रचित आईपीसी का किस तरह दुरुपयोग किया गया है, ये आप धारा 295ए के दुरुपयोग से देख सकते हैं। 1927 में पारित हुई इस धारा के अनुसार ईश निंदा हेतु किसी धार्मिक आस्था का अपमान करना एक दंडनीय अपराध घोषित कर दिया था। इसी तरह धारा 153 ए के अंतर्गत किन्हीं दो समुदायों में तनाव बढ़ाना भी एक दंडनीय अपराध माना किया गया है। दुष्कर्म और दहेज संबंधी धाराओं के बाद इन्हीं दो धाराओं का देश में सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है।
इसके अलावा आईपीसी ये बताने का कष्ट भी नहीं करता कि आखिर क्या वास्तव में इन दो धाराओं के अंतर्गत अपराध होता है। उदाहरण के लिए दिवंगत नेता कमलेश तिवारी को ही ले लीजिये। उन्हें जेल में सिर्फ इसलिए डाला गया था क्योंकि उन्होंने पैगंबर मुहम्मद के विरुद्ध आपत्तिजनक बयान दिये थे। ब्रिटिश कालीन आईपीसी में इसीलिए व्यापक सुधार अत्यंत आवश्यक है। और अमित शाह के वर्तमान बयान यदि इस बात के सूचक हैं, तो यह निस्संदेह इस दिशा में एक सराहनीय और सार्थक प्रयास है।