एजेंडावादी भारतीय मीडिया के लिए अब गौ-तस्कर सिर्फ ‘कैटल ट्रांस्पोर्टर’ हैं

(PC: Rediff.com)

खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर अपने एजेंडे को बढ़ावा देना आज भारतीय पत्रकारिता का हिस्सा बन चुका है। देश में पत्रकारिता का स्तर इतना गिर चुका है कि कभी आतंकवादी को हेड मास्टर का बेटा कहा जाता है तो कभी आतंकवादी के नाम के साथ ‘जी’ लगा कर उन्हें संबोधित किया जाता है। इसी पत्रकारिता में आज कल एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। बड़े बड़े मीडिया संस्थान और प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा गौ तस्करों को पशु-परिवाहक या कैटल ट्रांस्पोर्टर कह कर संबोधित किया जाने लगा है। ऐसा लग रहा है कि स्मग्लर और ट्रांस्पोर्टर के बीच का अंतर कम किया जा रहा है, या गौ-तस्कर को सिर्फ एक ट्रांस्पोर्टर कह कर अपना एजेंडा आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि उनके काले कारनामों पर पर्दा डाला जा सके।

गौ-तस्करी एक संगीन अपराध है और लेकिन मीडिया में गौ तस्करों के लिए कैटल ट्रांस्पोर्टर जैसे भ्रामक शब्दों का इस्तेमाल कर इस अपराध को छुपाने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश की एक घटना में कुछ गौ-तस्कर बिना किसी वैध परमिट के गायों की तस्करी कर महाराष्ट्र ले जा रहे थे। लगभग 4 बड़े मीडिया समूहों ने इस घटना को रिपोर्ट करते वक्त अपनी हेड-लाइन में गौ-तस्करों के लिए कैटल ट्रांस्पोर्टर शब्द का इस्तेमाल किया। न्यू इंडियन एक्स्प्रेस, न्यूज़ 18, स्कूपव्हूप और स्क्रॉल जैसे मीडिया ग्रुप्स ने अपनी भ्रामक खबरों के माध्यम से लोगों की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की।

खंडवा के एसपी शिव दयाल सिंह ने इस बात की पुष्टि की, कि इन गौ-तस्करों के पास किसी तरह का वैध परमिट नहीं था और ये गैर-कानूनी ढंग से इन पशुओं की तस्करी कर रहे थे।

खबरों में कुछ शब्दों की हेरा-फेरी कर ये मीडिया संगठन अपने एजेंडे से पाठकों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। ये वही मीडिया है, जो अपनी एजेंडे से भरपूर खबरों के माध्यम से गौ रक्षकों को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। गौ-तस्करी को रोकने के लिए अगर कभी गौ-रक्षकों द्वारा थोड़ी हिंसा का प्रयोग कर भी लिया जाता है, तो मीडिया तुरंत एक्टिव होकर गौ-तस्करों को पीड़ित घोषित कर देती है और उनके समर्थन में राष्ट्रीय मीडिया से लेकर अंतराष्ट्रीय मीडिया तक बड़े-बड़े लेख लिखे जाते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ये गौ-तस्कर स्वयं हथियार लेकर चलते हैं और इनके द्वारा गौ-रक्षकों पर खुले-आम गोलीबारी कर दी जाती है। इतना ही नहीं, इन गौ-तस्करों द्वारा पशुओं की चोरी भी की जाती है और चोरी का विरोध करने पर वो हिंसक हो जाते हैं। पिछले कुछ सालों में गौ तस्करों द्वारा हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं लेकिन हर बार मीडिया इन घटनाओं को दबा देती है और ऐसी खबरें जनता तक पहुंचने ही नहीं देती।

इस देश की मीडिया उन्हीं खबरों में दिलचस्पी दिखाती हैं जो उनके राजनीतिक एजेंडे के अनुकूल होता है। ऐसी खबरों को लेकर अक्सर देश की मीडिया अपना दोहरा रुख दिखाती रहती है। वर्ष 2017 में जब पहलू खान पर कुछ तथाकथित गौ-रक्षकों ने हमला कर दिया था, तो मीडिया में कई दिनों तक यह खबर छाई रही थी, लेकिन जब यही गौ-तस्कर पुलिस, गौ-रक्षकों और किसानों पर हमला करते हैं और उनकी हत्या करते हैं, तो देश की यही मीडिया मौन धारण कर लेती है।

हिंसा को कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता, चाहे वह गौ-तस्करों की तरफ से की गई हो या गौ-रक्षकों की ओर से। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि देश की मीडिया इन घटनाओं को जान-बूझकर निष्पक्षता से रिपोर्ट नहीं करती और खबर के सिर्फ एक पहलू को सबके सामने रखा जाता है। गौ-तस्करों को कैटल ट्रांसपोर्टर कहना भी इसी का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह पूरी तरह से पत्रकारिता के मूल सिद्धान्त के विरुद्ध है, और इसे रोकना ही हमारे हित में है। मीडिया को दोनों ही पक्षों की सच्चाई लोगों तक पहुंचानी चाहिए।

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