जेएनयू के अधिकारियों ने कैंपस की दीवारों से पोस्टर हटाने का शुरू किया अभियान

जेएनयू कैंपेन

विवादित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है, परंतु इस बार सही कारणों से। विश्वविद्यालय के सफाई अभियान में एक कदम आगे बढ़ाते हुए विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने कैम्पस की दीवारों पर चिपके हर प्रकार के पोस्टर को हटाने का निर्णय लिया गया है। ये विद्यार्थियों के एक वर्ग के लिए असहाय सिद्ध हुआ है, और उन्होंने मंगलवार एवं बुधवार को इसके विरूद्ध पोस्टर चिपकाओ अभियान चलाने का निर्णय लिया है।

जेएनयू के अधिकारियों ने यह निर्णय दिल्ली डिफेसमेंट ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट 2007 के तहत एक कार्यकारी परिषद के फैसले का हवाला देते हुए लिया है। प्रशासन ने छात्रों को केवल तय किए गए बोर्डों पर ही अपने पोस्टर या बैनर लगाने का निर्देश दिया है।

जेएनयू की दीवारें कार्ल मार्क्स, व्लादिमीर लेनिन, नेल्सन मंडेला, बीआर अंबेडकर की पोस्टर्स और पेंटिंग्स से भरी हुई है। ये दीवारें कैम्पस में स्थित विभिन्न राजनीतिक गुटों के संदेश प्रसारित करती हैं और साथ ही साथ विद्यार्थियों के रोज़मर्रा की मांगों के बारे में भी जानकारी देती है। इन पोस्टर्स से वर्तमान गतिविधियों एवं विश्वभर के स्वतन्त्रता आंदोलनों के बारे में भी पता चलता है। पर चूंकि अधिकांश पोस्टरों में वामपंथी विचारधारा का प्रचार होता है, इसलिए कुछ पोस्टर देशविरोधी गतिविधियों को भी बढ़ावा देते देते हैं।

कुछ विद्यार्थियों के अनुसार, प्रशासन ने अभी से ही पोस्टर हटाने प्रारम्भ कर दिये हैं, और ये काम स्कूल ऑफ सोशल साइंसेस एवं स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के दोनों भवनों से प्रारम्भ किया गया है। इस निर्णय से व्यथित होकर कुछ विद्यार्थियों ने इसके विरूद्ध मोर्चा खोलने का आवाहन किया है। विद्यार्थी संघ की पूर्व महासचिव सतरुपा चक्रवर्ती के अनुसार, इस निर्णय से जेएनयू अपनी ‘पहचान’ गंवा बैठेगा

उन्होंने आगे कहा, “जेएनयू में हमने कक्षाओं में सिद्धांतों को बहुत बाद में पढ़ा। हमारी असली शिक्षा तब प्रारम्भ हुई जब हमने विश्वविद्यालय में प्रवेश किया और उसकी दीवारों का अध्ययन किया। इसी के माध्यम से हमने कई मुद्दों पर चर्चा और वाद विवाद भी किया। ऐसे ही यहां पर कई विद्यार्थियों की पीढ़ियाँ नेताओं, विद्वानों, शिक्षाविदों एवं नौकरशाहों के रूप में उभर कर सामने आए। लेकिन अब नए विद्यार्थियों को ऐसा कोई सुअवसर नहीं मिलेगा।“

इसी के कारण जेएनयू के इन वामपंथी विद्यार्थियों ने मंगलवार और बुधवार को 1019 एकड़ में फैले कैम्पस में पोस्टर चिपकाओ अभियान चलाने का आह्वान किया है।

हालांकि स्वच्छ जेएनयू के निर्देशक पीके जोशी ने शनिवार को जेएनयू छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) के इस विशालकाय पोस्टर चिपकाओ अभियान के विरूद्ध चेतावनी जारी करते हुए कहा, ‘ये विश्वविद्यालय प्रशासन के संज्ञान में आया है कि कुछ विद्यार्थी कैम्पस में जुलूस निकालकर भवनों पर पोस्टर चिपकाना चाहते हैं। विश्वविद्यालय के कैम्पस के सभी निवासियों को सूचित किया जाता है कि 10 जून और 1 जुलाई को जारी सर्कुलरों के अनुसार ऐसा करना दिल्ली डिफेसमेंट ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट 2007 के नियमों का उल्लंघन होगा,और जेएनयू के आधिकारिक परिषद ने 13 मार्च 2018 को बैठक में इसपर फैसला लेंगे। ऐसे में यदि कोई भी व्यक्ति हमारे निर्देशों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है, तो उसपर इस अधिनियम एवं विश्वविद्यालय के नियमों के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी।‘

अनुभव प्राप्त करने के नाम पर जेएनयू कैम्पस में ऐसे पोस्टर्स और पेंटिंग्स भरे पड़े हैं, जो केवल एक विचारधारा का समर्थन करते हैं। ये पोस्टर्स राजनीतिक रूप सिंह नैरेटिव और आधारित पोस्टर परिसर में विद्यार्थियों की प्रारम्भ से ही कंडिशनिंग की जाने लगती है। नए विद्यार्थियों अथवा फ्रेशर्स को अपनी खुद की विचारधारा का अनुसरण करने का अवसर नहीं मिलता और ये पोस्टर वामपंथी विचारधारा को ज़बरदस्ती ठूँसने का मध्याम बनता चला जाता है। हालांकि, प्रशासन के नए निर्णय से अब विद्यार्थियों को अपने पसंद की विचारधारा चुनने की पूरी स्वतन्त्रता मिलेगी और वे संतुलित शिक्षा के माध्यम से अपने विचार खुलकर रखने में समर्थ हो पाएंगे।  

 

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