कंगना रनौत की फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ की सटीक समीक्षा

जजमेंटल है क्या कंगना

PC: Jansatta

आज मैंने ‘जजमेंटल है क्या’ देखी। प्रकाश कोवेलामुदी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में मुख्य भूमिका में है कंगना रनौत, राजकुमार राव और उनका साथ दे रहे हैं अमृता पुरी, हुसैन दलाल, ललित बहाल, अमायरा दस्तूर, जिमी शेरगिल, सतीश कौशिक।

कहानी है बॉबी ग्रेवाल बाटलीवाला [कंगना रनौत] के बारे में, जिसके साथ बचपन में हुई एक दुर्घटना के कारण वे मानसिक रूप से काफी परेशान रहती हैं। डॉक्टरों के अनुसार उसे ‘एक्यूट साइकोसिस’ की बीमारी है। अपने जीवनयापन के लिए बॉबी डबिंग आर्टिस्ट का काम करती हैं, और अपने चरित्रों में ऐसा खो जाती है कि अपने चरित्र का ही जीवन जीने लगती है। बॉबी की लाइफ तब नया मोड़ लेती है जब उसके घर में केशव [राजकुमार राव] और रीमा [अमायरा दस्तूर] किराएदार के तौर पर रहने आते हैं।

बॉबी को उनकी पिक्चर परफेक्ट प्रेम कथा पचती नहीं है, और उसे लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है। उसका शक और प्रबल हो जाता है जब एक दुर्घटना में रीमा की मृत्यु हो जाती है। लेकिन चूंकि बॉबी मानसिक रूप से अस्वस्थ है, इसलिए उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करना चाहता। कैसे बॉबी अपनी बात को सिद्ध कर पाती है, और रीमा की मृत्यु के पीछे वास्तविक कारण क्या है, इसी पर पूरा कहानी आधारित है।

इससे पहले कि मैं इस फिल्म के संबंध में अपने विचार आपके समक्ष रखूं, मैं आपको पहले ही बता दूं कि यह फिल्म देखना सबके बस की बात नहीं। इस फिल्म का प्लॉट कई जगह दर्शकों को एकदम आश्चर्यचकित करने में सक्षम है। इस फिल्म का सबसे उत्कृष्ट खूबी है इसकी कसी हुई प्लॉट लाइन, और मानसिक रूप से अस्वस्थ मरीजों के लिए इनका संवेदनशील रवैया। हालांकि, ये परफेक्ट तो नहीं कही जा सकती, पर फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ इस दिशा में एक सार्थक प्रयास अवश्य है।

रही बात अभिनय की, तो ये फिल्म पूरी तरह कंगना और राजकुमार के इर्द गिर्द घुमती है। एक मानसिक रूप से अस्वस्थ लड़की की भूमिका में कंगना ने जो जान डाली है, वो अपने आप में बेहद प्रशंसनीय है। बॉबी की असहजता, उसका अटपटा स्वभाव, इन सभी को कंगना ने बखूबी पर्दे पर उतारा है। वहीं राजकुमार राव ने केशव के तौर पर एक बार फिर सिद्ध किया है कि उनके अभिनय की प्रतिभा इतने बड़े फैन क्यों हैं। क्लाइमैक्स में इनकी अदाकारी आपको झकझोर कर रख देगी।

अमृता पुरी ने भी एक अहम रोल में अपने किरदार के साथ न्याय किया है, हालांकि उनके रोल को थोड़ा और बढ़ाया जा सकता था। यही नहीं, स्वयं पटकथा की रचयिता कनिका ढिल्लों ने एक छोटे परन्तु प्रभावशाली भूमिका में इस फिल्म के एक अहम सीन के लिए एक उचित मंच तैयार कराने में अपना सहयोग दिया है। हुसैन दलाल, सतीश कौशिक और बृजेन्द्र काला जैसे कलाकारों के कई संवाद आपको हंसने के लिए विवश कर देंगे। इस फिल्म के दूसरे हाफ में एक बड़ी ही पवित्र कथा के संदर्भ और उसके क्रियान्वयन को देख आप भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाएंगे।

हालांकि, ये फिल्म भी कुछ खामियों से अछूती नहीं है। जहां फिल्म का फ़र्स्ट हाफ़ काफी रोचक है, वहीं कुछ सीन के कारण क्लाइमैक्स के पहला -दूसरा हाफ़ कुछ खिंचा-खिंचा सा लगता है। सतीश कौशिक और जिमी शेरगिल के पास इस फिल्म में अपनी छाप छोड़ने का एक सुनहरा अवसर था, जो स्क्रिप्ट में इनके लिए कम स्क्रीनटाइम की बलि चढ़ गया। अमायरा दस्तूर की भूमिका में भी ज़्यादा विविधता नहीं थी।

लेकिन इसके बावजूद जजमेंटल है क्या मानसिक बीमारियों से जूझने वाले मनुष्यों के जीवन को चित्रित करता हुआ एक अनोखा और साहसिक प्रयास है। यदि आप फिल्मों में कुछ नया देखना चाहते हैं, और कुछ अलग कहानी की आशा रखते हैं, तो यह फिल्म अवश्य आपके लिए बनी है। मेरी तरफ से जजमेंटल है क्या को मिलने चाहिए 5 में से 3 स्टार।

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