पहले दिमागी बुखार, अब बाढ़, नितीश कुमार के सुशासन के दावे Expose हो चुके हैं

(PC : The Indian Express)

11 जुलाई को बिहार में बाढ़ की खबर सुनने के बाद अच्युतानंद मिश्र की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं। क्या मंजर होगा उस बाढ़ का? कितने दिनों तक रहने वाला है? कितनी जान की क्षति होगी? आखिर क्या कारण है बिहार में आने वाले बाढ़ का? क्या इसका कोई स्थायी समाधान नहीं है?

बिहार में इस बार 12 जिले के 67 ब्लॉक बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। लगभग 46 लाख 83 हजार से अधिक लोग इस बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। हालांकि, यह आंकड़ा बिहार के पिछले बाढ़ में हुए नुकसान से कम है। लेकिन बाढ़ आने के कारण अगस्त महीने में होने वाली मूसलाधार बारिश से इस वर्ष यह एक महीने पहले ही आ धमका है। जिससे उत्तरी नदियों जैसे कोसी, गंडक, बागमती, बूढ़ी गंडक का जलस्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया और इस विपदा ने एक महीने पहले ही दस्तक दे दी है। हालांकि, इस असामान्य बारिश का कारण धरती पर बढ़ रहा तापमान है और नासा इस बात को पहले ही स्वीकार कर चुका है।

बिहार राज्य में बाढ़ का प्रकोप ज़्यादातर कोसी नदी के जलस्तर बढ़ने से आता है। कोसी नदी हिमालय से आने वाली एक नदी है जो बिहार से होते हुए गंगा में मिल जाती है। नेपाल में इस नदी के ऊपर एक बैराज बना है जिसे भारत सरकार ने ही बनवाया था और इसमें 56 दरवाजे हैं। इस वर्ष नेपाल और उत्तरी बिहार में भारी बारिश के कारण पानी का जलस्तर खतरे के निशान को पार करने लगा तो नेपाल के अधिकारियों ने सभी के सभी 56 दरवाजे खोल दिया। जिससे कोसी नदी अपने किनारों को तोड़ते हुए बिहार के सुपौल जिले में बेतरतीब और बेलगाम हो सब कुछ तहस नहस करते हुए आगे बढ़ गई। जिस कोसी बैराज से पानी छोड़ा गया वह वर्ष 1958 में बनना शुरू हुआ था और 1964 में बनकर तैयार हुआ था। तब से यही दीवार बिहार को कई बार बाढ़ से बचा चुकी है लेकिन अब यह भी बूढ़ा और कमजोर हो चुका है और इसके संकेत इस बैराज ने वर्ष में 2008 में ही दे दिए थे। इसका मतलब साफ़ है कि कोई नई परियोजना ही बिहार को आने वाले दिनों में बाढ़ से बचा पाएगी।

परन्तु यह सोचने वाली बात है कि नितीश कुमार 2005 से ही बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं पर अभी तक उन्होंने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। 12 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है और इतना समय किसी बड़ी परियोजना को पूरा करने के लिए पर्याप्त होता है। ऐसा तो है नहीं कि बाढ़ पहली बार आई है। वर्ष 1987, 2000, 2002, 2004, 2007, 2008, 2011, 2013, और 2016 में बाढ़ भयंकर रूप से तबाही मचा चुकी है। वर्ष 2008 में तो इससे 50 लाख लोग प्रभावित हुए थे। उस समय कई बाढ़ पीड़ितों को तो बाढ़ के कारण हुए नुकसान का मुआवजा तक नहीं मिला था।  इस बार भी नितीश कुमार ने कोई ठोस कदम न उठाते हुए सिर्फ रुपये देकर हुए नुकसान की भरपाई करना ही जरूरी समझा और सभी प्रभावित परिवारों के बैंक खाते में 6000 रुपये भेजने का ऐलान कर दिया। और तो और बाढ़ के बाद फैलने वाली बिमारियों से निपटने के लिए नितीश सरकार ने कोई ख़ास तैयारी नहीं की है।

हर वक्त विशेष राज्य की मांग करने वाले नितीश ने बिहर की दो सबसे बड़ी और प्रमुख समस्याओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया, और न ही कभी किसी दीर्घकालिक समाधानों के लिए कोई कदम उठाया। हाल ही में हुए एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों में भी यही देखने को मिला। इस बीमारी के कारण 100 से ज्यादा मासूमों की जाना गयी थी लेकिन तब भी नितीश सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया था। हां, पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने का ऐलान किया था। ये उनके गैर-जिम्मेदाराना रवैये को दर्शाता है। उन्हें कोई कार्य करने से ज्यादा केवल भरपाई करने में विश्वास रखते हैं। उन्हें राज्य की जनता की कोई परवाह नहीं है, वो केवल अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में व्यस्त हैं।

बिहार में कोसी नदी फिर से अपना कहर बरपा रही है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस तबाही में भी सरकारें और राजनीतिक दल अपने तुच्छ स्वार्थों से ऊपर उठ नहीं पाए। यहां तक कि मीडिया भी इस खबर को ज्यादा तूल नहीं दे रही और न ही राज्य सरकार इस मुद्दे को लेकर गंभीर नजर आ रही है। ये दुखद है कि बिहार की जनता ने जिस जनप्रतिनिधि को बड़ी उम्मीदों से चुना था वो उनकी परेशानियों को समझने की बजाय हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं।

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