संदीप रेड्डी वंगा ने कबीर सिंह की आलोचना करने वाले लेफ्ट लिबरल क्रिटिक्स की उड़ाई धज्जियां

संदीप रेड्डी वंगा कबीर सिंह

(PC: masala.com)

हाल ही में रिलीज़ हुई शाहिद कपूर की फिल्म ‘कबीर सिंह’ ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रखा  है। संदीप रेड्डी वंगा द्वारा निर्देशित और उन्हीं की तेलुगू हिट ‘अर्जुन रेड्डी’ के हिन्दी संस्करण ‘कबीर सिंह’ को दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है, जिसमें अधिकतर शो अभी भी हाउसफुल चल रहे हैं। प्रसिद्ध फिल्म ट्रेड एनलिस्ट तरण आदर्श के अनुसार कबीर सिंह ने अब तक केवल भारत में ही 235.72 करोड़ रुपयों से ज़्यादा कमा लिए हैं और आधिकारिक रूप से ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर बन चुकी है।  

हालांकि, सभी इस फिल्म से प्रसन्न नहीं थे। कई लेफ्ट लिबरल समीक्षक, विशेषकर अति नारीवादियों ने इस फिल्म की चौतरफा आलोचना की। इस फिल्म को कथित रूप से ‘विषैले पुरुषवाद’ एवं अन्य कुरीतियों को बढ़ावा देने के लिए काफी लताड़ा। अब इन आलोचकों को निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा ने कड़ा जवाब दिया है और इनके कथित पुरुषवाद को बढ़ावा देने वाले तर्कों की धज्जियां उड़ा दी है।  फ़िल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने न सिर्फ ‘कबीर सिंह’ की आलोचना करने वालों को लताड़ा बल्कि ऐसे पक्षपाती समीक्षकों के दोहरे मापदण्डों को उजागर करते हुये उनकी खूब भर्त्सना भी की। 

इंटरव्यू के दौरान जब अनुपमा ने उनसे पूछा की उनका ‘झूठी समीक्षा’ से क्या अर्थ है, तो संदीप ने बेबाक जवाब दिया कि ‘मुझे यहतब लगता  है, जब आप किसी से प्यार करते हो, जब आप किसी महिला के प्रति या फिर इसी तरह किसी पुरुष के प्रति आकर्षित हो, तो इसमें काफी सच्चाई होती है झूठ जैसा कुछ नहीं। यदि आपको एक दूसरे को थप्पड़ मारने की स्वतंत्रता नहीं है, तो मुझे समझ नहीं आता कि आखिर किसी रिश्ते में रह क्या जाता है।‘ उन्होंने ‘कबीर सिंह’ एवं ‘अर्जुन रेड्डी’ में समीक्षा का अंतर समझाते हुए आगे कहा “तेलुगू फिल्म के मामले में वे कई मानकों के अंतर्गत समीक्षा कर रहे, पर यहां केवल अति नारिवाद के चश्मे से समीक्षा की जा रही है।‘

उन्होंने फिर राजीव मसंद जैसे समीक्षकों के दोहरे मापदंडों को उजागर करते हुए उन्होंने ऐसी फिल्मो को सकारात्मक रेटिंग देने की आलोचना की जो अच्छी रेटिंग के लायक नहीं है लेकिन अच्छी फिल्म को खराब रेटिंग देने की भी आलोचना की.

संदीप के अनुसार, ‘एक मोटा आदमी है, जिसके ‘साल्ट एंड पेप्पर’ शैली के बाल है। उसने मेरी फिल्म को दो स्टार दिये और जनता ने 200 करोड़ से ज़्यादा रुपये दिये, तो मुझे उनके तरीके बिलकुल भी नहीं समझ में आए। इन लोगों को विवरण और मानहानि में अंतर तो समझ में ही नहीं आता, और तब भी अपने आप को समीक्षक कहने की हिमाकत करते हैं। ऐसे लोग फिल्म उद्योग के लिए पायरेसी से भी ज़्यादा खतरनाक है।‘    

अब यहां संदीप झूठ तो बिलकुल नहीं बोल रहे थे , क्योंकि राजीव मसंद अपने पक्षपाती समीक्षा के लिए काफी बदनाम हैं। उन्हें फिल्म उरी 3 स्टार के भी योग्य नहीं लगी, परंतु उन्होंने संजू जैसी फिल्म को 3.5 और आर्टिक्ल 15 जैसी भ्रामक फिल्म को 4 स्टार दे दिये। यह अपने आप में बड़ी रोचक बात है कि  उन्हें संजु में नारी विरोध नहीं दिखा, परंतु कबीर सिंह में उन्हें भर भर के नारी विरोध दिखा।  

परंतु संदीप यहीं पर नहीं रुके। उनका अगला निशाना थी विवादित लेफ्ट लिबरल समीक्षक सुचारिता त्यागी, जो अनुपमा के ही चैनल फिल्म कंपेनियन में सह समीक्षक भी हैं। उन्होने सुचारिता को उनके घटिया समीक्षा के लिए काफी लताड़ा, जहां उन्होने कबीर सिंह को ‘किडनैपिंग’ और ‘रेप कल्चर’ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।

उन्होंने दुष्कर्म पीड़िताओं के साथ बतौर फिजियोथेरेपी इंटेर्न के तौर पर अपने अनुभव को साझा किया ऐसे समीक्षकों को दुष्कर्म का मज़ाक उड़ाने के लिए आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा, ‘ऐसे लोगों को शायद इसकी स्पेलिंग भी नहीं आती होगी। इन्हीं फिल्मों की वजह से ये चर्चा में आते हैं, और विनम्र भाषा में कहूं तो ये हमारे उद्योगों के लिए परजीवी समान है।‘ शायद उन्होंने सुचारिता द्वारा फिल्म उरी की समीक्षा को नहीं देखा होगा, जहां उन्होंने उस छोटी बच्ची के मार्मिक दृश्य को ‘manipulative’ बताने का प्रयास किया था। 

संदीप ने तो संजू फिल्म की भी खुलेआम आलोचना की जो इसलिए भी काफी हास्यास्पद था, क्योंकि अनुपमा चोपड़ा के पति, विधु विनोद चोपड़ा खुद इस फिल्म का प्रोड्यूसर थे। ऐसे में लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवी इस साक्षात्कार से आहत न हो, ये तो हो ही नहीं सकता था। उन्होंने संदीप को कुछ इस तरह लताड़ा –  

https://twitter.com/Su4ita/status/1147405748416028672

परंतु संदीप भी कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने टाइम्स नाऊ को दिए अपने साक्षात्कार में कहा, ‘आप जाइए, फिल्म देख कर आइये और फिल्म का आनंद लीजिये। अगर आपको फिल्म नहीं अच्छी लगती है तो ठीक है। परंतु आपने मुझे गलत समझा। यहाँ मैंने शारीरिक शोषण को बढ़ावा नहीं दिया है। जब आप एक दूसरे के बेहद निकट हो, तो आप एक दूसरे के साथ अपना अच्छा बुरा सब साझा कर सकते हैं। ये एक प्रेमी जोड़े के बीच अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के बारे में है। ये महिला के लिए भी उपरयुक्त है और पुरुष के लिए भी। मैंने दोनों पक्षों की बात सामने रखी, परंतु वे लोग [लेफ्ट लिबरल] इसे गलत तरह से पेशक कर रहे हैं।‘ इसीलिए शायद लोगों ने बिना किसी संकोच संदीप रेड्डी वंगा के समर्थन में ट्विट्टर पर ‘वी सपोर्ट संदीप रेड्डी वंगा’ नामक अभियान भी चलाये।   

ऐसे समय में, जब लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवी सभी रचनात्मक लोगों को ‘राजनैतिक शिष्टाचार’ को ज़बरदस्ती निभाने के लिए बाध्य करते हैं। वहां पर संदीप रेड्डी वंगा जैसे लोग ताज़ी हवा के झोंके समान प्रतीत होते हैं, जो सत्य के साथ खड़े होने में कोई संकोच नहीं करते, चाहे सामने वाले जितना मुंह फुलाए। आदित्य धार के बाद संदीप रेड्डी वंगा दूसरे ऐसे निर्देशक हैं, जिन्होंने लेफ्ट लिबरल समीक्षकों को अपनी सफलता से खुलेआम चुनौती देकर भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया है। 

 

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