कुछ इस तरह सिद्धू ने पिछले तीन सालों में सम्मान, शक्ति, धन, विश्वास और बाकी सबकुछ खो दिया

(PC: Financial Express)

नवजोत सिंह सिद्धू को भला कौन नहीं जानता? 11 साल तक वे भारतीय क्रिकेट टीम के हिस्सा रहे, और यहीं से वो लोकप्रिय बनें। हालांकि, उनकी लोकप्रियता में चार चांद तब लगे जब वर्ष 2004 में उन्होंने भाजपा में शामिल हुए और उसी वर्ष वे भाजपा की टिकट पर अमृतसर से सांसद बने। इसके बाद वह वर्ष 2009 में दोबारा सांसद चुने गए और फिर आया वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव। पीएम मोदी के जबरदस्त चुनाव प्रचार में उनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ जुटती थी और वे लोगों के बीच एक राष्ट्रवादी नेता के तौर पर प्रसिद्ध थे जो सही मायनों में राजनीति का नहीं बल्कि राष्ट्रनीति का अनुसरण करते थे। इसी तरह वर्ष 2016 तक सिद्धू का राजनीतिक करियर अपने चरम पर रहा लेकिन वर्ष 2017 के शुरू होते ही सब कुछ तब बदल गया जब सिद्धू ने जनवरी में ही कांग्रेस में शामिल होने का फैसला लिया। सही मायनों में यहीं से उनके राजनीतिक और नैतिक पतन की शुरुआत हुई।

उनके प्रशंसकों के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था। सिद्धू जैसे नेता, जो सार्वजनिक मंच पर राहुल गांधी की समझ पर सवाल उठा चुके हों, जो कांग्रेस को दिवालिया पार्टी घोषित कर चुके हों, उनका एकाएक कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बन जाना सबको हैरान कर गया। कांग्रेस में जाने के बाद उनका पूरा चरित्र ही बदल गया। जिन ऊर्जावान भाषणों की वजह से उनका नाम हुआ था, फिर समय के साथ अपने विवादित भाषणों की वजह से वे बदनाम होने लगे।

नवजोत सिंह सिद्धू ने सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा किया जब वे इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गए और वहां जाकर उन्होंने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को गले लगाया। उस वक्त भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव की स्थिति जारी थी, और पाकिस्तानी सेना लगातार भारतीय सैनिकों पर हमला कर रही थी। उस वक्त सिद्धू के पाकिस्तान जाने पर पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सवाल भी उठाए थे, लेकिन तब भी सिद्धू पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इतना ही नहीं, वहां जाकर उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें भारत से ज़्यादा प्यार पाकिस्तान में मिलता है। इस वजह से उन्हें देश में लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा था।

इसके अलावा जब भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर को लेकर बातचीत चल रही थी, तो उस वक्त पाकिस्तान की ओर से केंद्र सरकार को शिलान्यास समारोह में शामिल होने के लिए न्यौता मिला था। हालांकि, बिना किसी बुलावे के नवजोत सिंह सिद्धू फिर पाकिस्तान गए और वहां पर जाकर उन्होंने दो बड़े विवादों को जन्म दिया। एक तो उन्होंने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की तारीफ में कसीदे पढे़, तो वहीं सिद्धू ने खालिस्तानी आतंकी गोपाल चावला के साथ भी फोटो खिंचवाई। भारत की ओर से इस कार्यक्रम में केन्द्र सरकार ने केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल और सांसद गुरजीत सिंह औजला को भेजा था। जबकि पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को न सिर्फ ठुकरा दिया बल्कि अपने मंत्रिमंडल के सदस्य नवजोत सिंह सिद्धू को भी पाकिस्तान न जाने की सलाह दी थी। इसके बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू अपने मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अमरिंदर सिंह की बात को ठेंगा दिखाते हुए पाक पहुंच गए थे।

इसके अलावा जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी, तब भी सिद्धू ने पाकिस्तान की भाषा बोलते हुए भारतीय वायुसेना से यह पूछा था कि वो वहां क्या करने गए थे, आतंकियों को मारने या पेड़ उखाड़ने?  सिद्धू के इसी देशविरोधी रवैये की वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनके रिश्ते खराब होना शुरू हुए। इसके अलावा एक अन्य कारण यह भी था कि चुनावों से ठीक पहले सिद्धू ने शहरी एवं स्थानीय निकास मंत्रालय के कामकाज से दूरी बना ली थी। नवजोत सिंह सिद्धू उन दिनों अपनी पत्नी को उनकी मनपसंद लोकसभा सीट से टिकट ना दिये जाने से पार्टी से नाराज चल रहे थे। नवजोत कौर अपने लिए चंडीगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव का टिकट मांग रही थी लेकिन इस सीट से एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता पवन बंसल को टिकट दे दिया गया। इससे पहले यह भी अटकलें लगाई जा रही थी कि उन्हें अमृतसर लोकसभा सीट से टिकट दिया जा सकता है लेकिन वहां से भी कांग्रेस से एक अन्य मौजूदा विधायक गुरजीत सिंह औजला को टिकट दे दिया गया था। इसका विरोध करने के लिए सिद्धू ने अपना सारे कामकाज से दूरी बना ली थी। सिद्धू के इसी रवैये के कारण चुनावों के बाद कैप्टन ने सिद्धू से स्थानीय निकाय मंत्रालय छीनकर उन्हें ऊर्जा मंत्रालय सौंपा था।

लोकसभा चुनावों के बाद सीएम अमरिंदर ने सिद्धू पर स्थानीय निकाय मंत्रालय को सही से ना संभालने का आरोप लगाते हुए कहा था कि उनकी कामचोरी की वजह से ही शहरी लोगों ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि, सिद्धू जहां भी पार्टी के स्टार प्रचारक के तौर पर गए वहां पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। जून में जब कैप्टन ने सिद्धू को शहरी एवं स्थानीय निकाय मंत्री के पद से हटाया था, तो इसके बाद सिद्धू ने सीधा तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाक़ात की थी और उन्हें राज्य की स्थिति के बारे में अवगत कराया था।

नवजोत सिंह सिद्धू बेशक कांग्रेस आलाकमान के नजदीकी रहे हों, लेकिन एक जनता का प्यार ही किसी व्यक्ति को नेता बनाता है। आज जनता के मन में सिद्धू के लिए वह भावना नहीं रह गई है जो आज से 3 वर्षों पहले हुआ करती थी। आलम यह है कि लोगों को सिद्धू के नाम से ही घृणा होने लगी है। इस बात को कांग्रेस पार्टी भी भली-भांति समझती है और इसी वजह से उसने भी अब विवादित सिद्धू परिवार से दूरी बनाना शुरू कर दिया है, और यही कारण है कि हताशा में अब सिद्धू ने पंजाब कैबिनेट से अपने इस्तीफे को सार्वजनिक किया है। सिद्धू ने अपने इस पतन की कहानी स्वयं लिखी है और ये सब उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते हुआ है। इन्हीं महत्वकांक्षाओं के चलते उन्होंने भाजपा छोड़ी थी और आज हालत यह है कि उनको पंजाब कैबिनेट से भी इस्तीफा देना पड़ा है। कुल मिलाकर आज सिद्धू का राजनीतिक करियर खतरे में है और इसके लिए स्वयं सिद्धू ही जिम्मेदार हैं।

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