नहीं स्वरा जी!, मुग़लों ने देश को अमीर नहीं बनाया, उन्होंने तो लूट मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी

(PC: Deccan Chronicle)

स्वरा भास्कर, जो ‘आर्मचेयर एक्टिविस्ट, ट्विटर वोर्रीयर, ट्रोल डेस्ट्रोयर, राइट विंग बेटर के नाम से अपने आप को ट्विट्टर पर संबोधित करती है, एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार भी गलत कारणों से। दरअसल, कल शाम उन्होंने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा कि मुग़लों ने भारत को अमीर बनाया और ये एक तथ्य है।

स्वरा भास्कर ने यह दावा इंडिया टुडे द्वारा समर्थित पोर्टल ‘डेली ओ’ पर प्रकाशित राणा सफवी के लेख के हवाले से किया। उस लेख का शीर्षक था ‘नहीं, मुग़लों ने हमें लूटा नहीं था, मुग़लों ने हमें समृद्ध किया’। बता दें कि ‘डेली ओ’ वैबसाइट भ्रामक लेखों को समर्थन देने के लिए विवादों में अक्सर बनी रहती है।

अब यदि उक्त लेख की बात करें, तो इसमें एक विचारधारा को संतुष्ट करने के लिए कुछ भ्रामक दावों के जरिये इस निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास किया गया है कि मुगलों द्वारा भारत की लूट की बात तथ्यों को झुटलाने समान होगी। मजेदार बात तो यह है की उक्त लेख में इस टेबल के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया गया है, कि कैसे भारत मुग़लों के अंतर्गत आर्थिक रूप से काफी समृद्ध था, और कैसे अंग्रेजों ने हमारी आर्थिक संपन्नता हमसे छीन ली। 

ये टेबल आर्थिक इतिहासकार एंगस डीटन के गहन अनुसंधान के माध्यम से बनाई गयी है, जिन्होंने पिछले दो हज़ार वर्षों के आर्थिक आंकड़े को जुटाने का बीड़ा उठाया था। इस टेबल में 1600 AD के दौरान दुनिया की जीडीपी में भारत का शेयर में 22.5% बताया गया है , जब अधिकांश भारत मुग़ल शासन के अधीन था।

लेकिन यदि हम भारत के विश्व जीडीपी में योगदान को पिछले दो हज़ार वर्षों के हिसाब से मुग़ल काल से तुलना करके देखें, तो हम इस स्थिति की बेहतर तरीके से तुलना कर सकते हैं।

1000 AD तक भारत की पर्चेज़िंग पावर पैरिटी के हिसाब से विश्व जीडीपी में योगदान लगभग 40 प्रतिशत था। यह योगदान अफ़गान, तुर्क, खिलजी और लोधी जैसे आक्रांताओं के निरंतर आक्रमणों के कारण 30 प्रतिशत तक गिर गया। इन मुस्लिम आक्रांताओं ने भारतीय मंदिरों से जमकर सम्पदा लूटी।   

किसी भी आक्रांता द्वारा किसी मंदिर की सम्पदा को लूटने का सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है सोमनाथ मंदिर पर गजनवी के सुल्तान महमूद का आक्रमण, जिसमें न केवल उसने मंदिर की सम्पदा लूटी, अपितु उसके पवित्र ज्योतिर्लिंग को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। भारत को आगे चलकर खिलजी, तुग़लक और लोदी वंश के सुल्तानों ने भी जमकर लूटा, जिसके कारण देश का विश्व जीडीपी में योगदान 1500 AD आते आते एक चौथाई कम हो गया।

16वीं सदी के मध्य तक आते आते मुग़लों ने उत्तरी भारत पर अपना कब्जा जमा लिया था। 19वीं सदी में अंग्रेजों के आने तक विश्व जीडीपी में भारत का योगदान 20 प्रतिशत तक आ चुका था। यानि जिस भारत का योगदान मुग़लों से पहले विश्व की अर्थव्यवस्था में 40 प्रतिशत तक था, मुगलों की कृपा से वह योगदान आधा गिरके 20 प्रतिशत तक आ गया था।

ऐसे में राणा साफ़्वी का यह दावे करना कि मुग़लों ने भारत को अमीर बनाया, और उन्होने व्यापार और परिवहन के लिए भूमि एवं जल संबंधी संबन्धित संरचनाओं के विकास करने में अहम भूमिका निभाई है, तथ्यों के आधार पर गलत और बेतुके सिद्ध होते हैं। मुगलों के समय आर्थिक सम्पदा न सिर्फ एक वर्ग विशेष तक सीमित थी, अपितु आधे से ज़्यादा राजस्व केवल शाही परिवार और उनके खास दरबारियों में बांटा जाता था। इसी कारण जब स्वरा भास्कर ने इस लेख का हवाला देते हुये अपना ट्वीट पोस्ट किया, तो लोगों ने उनके ऐसे बचकाने ट्वीट की खिल्ली उड़ाने में ज़्यादा समय नहीं लगाया

https://twitter.com/SwamiGeetika/status/1150225582254260225?s=20

https://twitter.com/AdiShankaraa/status/1150333435182907392?s=20

https://twitter.com/theskindoctor13/status/1150064667080814592?s=20

https://twitter.com/srikanthbjp_/status/1150063803167457280?s=20

स्वरा भास्कर पर सोशल मीडिया के विभिन्न यूज़र्स ने न केवल अर्थशास्त्र में कच्चे होने का तंज़ कसा है, अपितु कुछ लोगों ने ये भी कयास लगाए हैं की कहीं स्वरा भास्कर के इन ट्विट्स का स्रोत जेएनयू का व्हाट्सएप्प ग्रुप तो नहीं हैं!

सच पूछें, तो मुगलों द्वारा भारत की जीडीपी को नुकसान पहुंचाये जाने के बाद, अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत के विश्व जीडीपी के योगदान में और गिरावट दर्ज हुई और भारत के एक स्वतंत्र लोकतान्त्रिक गणराज्य बनने तक विश्व जीडीपी में उसका योगदान वर्ष 1950 में महज़ 10% ही रह गया।

रोचक बात तो यह है कि स्वरा भास्कर ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक और समाजशास्त्र में जेएनयू से परास्नातक किया है। ऐसे में इनके द्वारा आर्थिक इतिहास की ऐसी अनदेखी और भ्रामक दावों को इनका बढ़ावा देना, देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में सामाजिक विज्ञान के पढ़ाई के स्तर के बारे में काफी कुछ बयां करता है। 

Exit mobile version