हाल ही में ‘दंगल’ फेम अभिनेत्री जायरा वसीम ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट डाली, जिसमें उन्होंने घोषणा की कि वे धार्मिक कारणों से बॉलीवुड को अलविदा कहने का मन बना चुकी है। उनकी इंस्टाग्राम पर प्रकाशित पोस्ट के अनुसार उनका वर्तमान पेशा उनके धर्म के आड़े आ रहा है, और इससे पहले की बात और बिगड़ जाये, उन्होंने अभिनय से सन्यास लेना ही उचित समझा।
जायरा वसीम ‘दंगल’ एवं ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में अपने अभिनय के लिए काफी चर्चित रही हैं। उन्हें ‘दंगल’ में गीता फोगाट के बचपन का किरदार निभाने के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समिति ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से सुशोभित किया था। उनके वर्तमान निर्णय के अनुसार शोनाली बोस द्वारा निर्देशित ‘द स्काई इस पिंक’ इनकी अंतिम फिल्म हो सकती है।
जहां उमर अब्दुल्लाह और सबा नक़वी जैसे छद्म बुद्धिजीवी जायरा के कथित रूप से व्यक्तिगत निर्णय का सम्मान करने की बात कह रहे हैं, तो वहीं रवीना टण्डन और तसलीमा नसरीन समेत अधिकांश लोग जायरा के इस निर्णय से काफी क्रोधित भी हैं। ज़ायरा के आलोचकों के अनुसार उन्होंने इस्लामिक रूढ़ियों के समक्ष घुटने टेक दिये, जिससे समाज में एक गलत संदेश जाएगा। परंतु इस समय जिस व्यक्ति की चुप्पी काफी लोगों को अजीब भी लग रही है और कई लोगों को खटक रही है, वो है जायरा वसीम को फिल्म उद्योग में लाने वाले अभिनेता आमिर खान की चुप्पी।
ये आमिर खान ही थे, जिन्होंने जायरा का परिचय बॉलीवुड से कराया था। ‘दंगल’ में गीता फोगाट के बचपन के किरदार से ज़ायरा ने दर्शकों में अपने अभिनय की जो धाक जमाई थी, उसके पीछे आमिर खान का ही हाथ था। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाते हुए ज़ायरा वसीम को अद्वैत चन्दन की फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में एक और अवसर दिया, जिसमें ज़ायरा ने बेहतरीन भूमिका भी निभाई।
ऐसे में जब इस्लामिक रूढ़ियों के दबाव में आकर ज़ायरा वसीम अभिनय से नाता तोड़ने लगे, तो जिस व्यक्ति ने उन्हें बॉलीवुड में एक पहचान बनाने का अवसर दिया, उसे लोकप्रियता दिलाई, उसका यूं चुप्पी साधना न ज़ायरा के लिए अच्छा है, और न ही स्वयं आमिर खान के लिए। आमिर खान को इस स्थिति में ज़ायरा के इस निर्णय पर बिलकुल भी चुप्पी नहीं साधनी चाहिए।
उन्हें ज़ायरा को समझाना चाहिए कि उनके अभिनय से उनके धर्म को किसी प्रकार का खतरा नहीं है । बॉलीवुड में वहीदा रहमान, सायरा बानो, मधुबाला, तब्बू इत्यादि जैसे कई अभिनेत्रियाँ रही है, जो मुस्लिम होने के बावजूद अभिनय में काफी सफल रही हैं, और उनकी धार्मिक रीतियां कभी उनके काम के आड़े नहीं आई हैं।
हालांकि, यदि आमिर खान की ऐसी स्थिति में उनकी पहले की प्रतिक्रिया पर नजर डालें तो उनसे इस तरह की उम्मीद करना निरर्थक होगा कि वो जायरा से इस मुद्दे पर बात करेंगे। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती से केवल बातचीत करने के लिए इस्लामिक कट्टरपंथियों ने जायरा वसीम को खूब खरी खोटी सुनाई थी, यहां तक कि अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया था, तब आमिर ने उनसे मोर्चा लेने की बजाए एक बड़े ही बचकाने ट्वीट में जायरा वसीम को अकेले छोडने की याचना करते हुए नजर आये थे।
जायरा वसीम का धार्मिक कारणों से बॉलीवुड छोड़ना कई लोगों को अखर सकता है, लेकिन ये आमिर खान के लिए उनका सही मार्गदर्शन करने का बेहतरीन अवसर है। यदि यहां वे जायरा वसीम को अपना निर्णय में बदलाव करवाने में सफल रहते हैं, तो वे निस्संदेह भारतीय समाज के लिए एक अनोखी मिसाल पेश कर सकते हैं, वरना उनमें और उन छद्म बुद्धिजीवियों में कोई अंतर नहीं होगा, जो हिंदुओं के विरुद्ध किसी भी बात पर मोर्चा खोलने के लिए तैयार बैठे रहते हैं, लेकिन बाकी कट्टरपंथियों के अत्याचारों पर चुप्पी साधने में सबसे आगे रहते हैं।