इस साल के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों के लिए घोषणा करते हुए ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग को बढ़ावा देने की बात कही थी। मोदी सरकार पहले ही यह साफ कर चुकी है कि उसका लक्ष्य वर्ष 2021 तक किसानों की आय को दोगुना करने का है। ऐसे में सरकार ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग की मदद से इस लक्ष्य को हासिल कर सकती है। ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग के नाम से ही स्पष्ट है कि इस प्रकार की खेती में इनपुट कोस्ट ज़ीरो होती है, दूसरी तरफ इस तरीके को अपनाने से पैदावार पर भी कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है, जिसका सीधा मतलब यह है कि किसानों की आय में बढ़ोतरी करने का यह अच्छा तरीका साबित हो सकता है। भारत में यह कोई नया कान्सैप्ट नहीं है बल्कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य पहले ही ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं।
ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग में किसानों को किसी प्रकार के कैमिकल या उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है, बल्कि इनकी जगह प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। ये प्राकृतिक संसाधन सस्ते होने के साथ-साथ ज्यादा प्रभावशाली भी होते हैं। ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग मुख्यतः चार स्तंभो पर आधारित होती है। ये चार स्तम्भ हैं: जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन और व्हापासा।
जीवामृत: जीवामृत की मदद से जमीन को पोषक तत्व मिलते हैं और ये एक उत्प्रेरक एजेंट यानि catalytic agent के रूप में कार्य करता है, जिसकी वजह से मिट्टी में छोटे जीवों की गतिविधि बढ़ जाती हैं और फसलों की पैदावार अच्छे से होती हैI इसके अलावा जीवामृत की मदद से पेड़ और पौधों को कवक और जीवाणु संयंत्र रोग होने से भी बचाया जा सकता हैI
बीजामृत: इस उपचार का इस्तेमाल नए पौधे के बीज रोपण के दौरान किया जाता है और बीजामृत की मदद से नए पौधो की जड़ों को कवक, मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी और बीजों की बीमारियों से बचाया जाता है I बीजामृत को बनाने के लिए गाय का गोबर, एक शक्तिशाली प्राकृतिक कवकनाश, गाय मूत्र, एंटी-बैक्टीरिया तरल, नींबू और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता हैI
आच्छादन: मिट्टी की नमी का संरक्षण करने के लिए और उसकी प्रजनन क्षमता को बनाए रखने के लिए मल्चिंग यानि आच्छादन का सहारा लिया जाता हैI मल्च प्रक्रिया के अंदर मिट्टी की सतह पर कई तरह के मटेरियल लगाए जाते है, ताकि खेती के दौरान मिट्टी को गुणवत्ता को नुकसान ना पहुचें I मल्चिंग तीन प्रकार की होती है जो कि मिट्टी मल्च, स्ट्रा मल्च और लाइव मल्च हैI
व्हापासा: पौधों को बढने के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है और पौधे व्हापासा यानी भाप की मदद से भी बढ़ सकते है I व्हापासा वह दशा होती है जिसमें हवा अणु हैं और पानी के अणु मिट्टी में मौजूद होते है और इन दोनों अणु की मदद से पौधों का विकास होता हैंI
भारत में सुभाष पालेकर को ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग का जनक माना जाता है। इस पद्धति की खोज के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। पालेकर के मुताबिक पौधों के भरपूर विकास के लिए पर्याप्त संख्या में प्राकृतिक संसाधन मौजूद होते हैं और हमें किसी प्रकार के कैमिकल की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रकार खेती का यह तरीका पूरी तरह इको-फ्रेंडली होता है, यानि पर्यावरण पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
अगर इस फ़ार्मिंग को सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर प्रोमोट किया जाता है, तो इसका सबसे बड़ा फायदा गरीब किसानों को होगा। ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग के लिए बहुत कम मात्रा में पानी की जरूरत होती है, ऐसे में अगर कभी किसानों को पानी की कमी से जूझना पड़े, तो भी इसका फसलों की पैदावार पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। हालांकि, इसके लिए सरकार को बड़े पैमाने पर जागरूक अभियान चलाना होगा। अभी अधिकतर किसानों को खेती की इस पद्धति के बारे में जानकारी नहीं है, और जिनको जानकारी है भी, वे किसान भी पारंपरिक खेती के तरीकों को छोड़कर इस नई पद्धति को अपनाने में असहज महसूस करते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि खेती की नई तकनीक किसानों और विशेषकर गरीब किसानों को सबसे ज़्यादा फायदा पहुंचाने वाली है। अगर किसानों की आय बढ़ती है, तो इससे गरीब किसानों और उनके परिवारजनों के जीवन स्तर का उत्थान हो सकेगा।
मोदी सरकार शुरू से ही किसानों के हित में कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध रही है। इसी वर्ष केंद्र सरकार ने किसानों के खाते में प्रतिवर्ष 6 हज़ार रुपये जमा करने हेतु प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को लॉन्च किया था। अगर सरकार ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग को भी बढ़ावा देती है तो इससे किसानो की जेब पर कम बोझ पड़ेगा और किसानो की आय में बढ़ोतरी होगी। किसानों का भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान रहा है और ऐसे में किसानों के उत्थान के बिना भारत को आर्थिक शक्ति नहीं बनाया जा सकता। मोदी सरकार के रुख से यह स्पष्ट है कि सरकार अन्नदाता किसानों को देश के विकास में परस्पर भागीदार बनाना चाहती है।