शोभा डे तो बस शुरुआत है, अब्दुल बासित ने सभी पाक प्रेमी पत्रकारों को एक्सपोज करने की दी धमकी

शोभा डे पाकिस्तान

PC: Loksatta

जबसे  भारत ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधानों को हटाया है तबसे हमारे पड़ोसी देश में आक्रोश अपने चरम सीमा पर है. तो वहीं हमारे देश की कुछ स्यूडो लिबरल संस्थाएं पाकिस्तान के प्रोपगैंडा को हवा देने के लिए पूरी तैयार हैं। हमारे देश के कई पत्रकारों ने तो इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर बेहद बेतुके और भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित किये जिससे वो भारत सरकार के फैसले के खिलाफ आम जनता को भड़का सके।

इसी संबंध में एक नया वीडियो सामने आया है जिसमें पूर्व पाकिस्तानी हाई कमिश्नर अब्दुल बासित बेहद हैरान कर देने वाले खुलासों के साथ सामने आए हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने सभी को चौंकाते हुए ये खुलासा किया कि कैसे पाक सरकार ने कुछ भारतीय पत्रकारों को पाकिस्तान के पक्ष में लिखने के लिए आवेदन किया था –

इस वीडियो में अब्दुल बासित ने विवादित पत्रकार शोभा डे का उल्लेख करते हुए कहा ‘हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि हम कैसे एक ऐसा पत्रकार ढूँढे, जो हमारे पक्ष में कश्मीर के जनमत संग्रह के संबंध में एक लेख लिख सके। फिर हमें एक महिला मिली, जिसका नाम था शोभा डे …’

दरअसल, अब्दुल बासित ने जिस लेख के बारे में उल्लेख किया है, उसे शोभा डे ने वर्ष 2016 में बुरहान वानी के मारे जाने पर टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए लिखा था। इस आर्टिकल में उन्होंने मोदी सरकार को कश्मीर में जनमत संग्रह करने की चुनौती भी दे डाली। शोभा डे के लेख में जहां जहां पाक के पक्ष में लिखा गया है, उसे जम्मू कश्मीर नाऊ नाम की वैबसाइट ने बड़ी कुशलता से चिन्हित करते हुए अपने वैबसाइट पर पोस्ट किया है –

इन चौंकाने वाले खुलासों से भारत के पत्रकारिता के गलियारों में हलचल मचना लाज़मी है, क्योंकि अधिकांश लेफ्ट लिबरल पत्रकारों को हाल फिलहाल कश्मीर के मुद्दे पर अपनी पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता के लिए चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

परंतु अब्दुल बासित ने जिस तरह शोभा डे के लेख का उल्लेख किया है, वो कोई साधारण बात नहीं है। दरअसल, यहाँ शोभा डे निशाने पर नहीं है, यहाँ पर वो पत्रकार भी निशाने पर हैं जिन्होंने शोभा डे के आर्टिकल के जरिये कश्मीर के मुद्दे को लेकर भारत सरकार पर उंगली उठाई है, जो समय समय पर पाक की बोली बोलते नजर आये हैं। इससे पहले ऐसे पत्रकारों का केवल हाफ़िज़ सईद जैसे लोगों ने खुलेआम समर्थन किया है, इसका उदाहरण हमें वर्ष 2016 में देखने को मिला था जब हाफिज सईद ने पत्रकार बरखा दत्त की तारीफ की थी। परंतु ऐसा पहली बार हुआ है कि पाकिस्‍तान के पूर्व राजनयिक अब्‍दुल बासित ने प्रत्यक्ष रूप से ऐसे पत्रकारों की पाक के साथ भागीदारी को सार्वजनिक रूप से स्वीकार रहा है जो अपने ही देश के खिलाफ लिखते हैं। अब्दुल बासित का बयान ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाया है, ऐसे में इस बयान को लेकर कई सवाल उठते हैं. सवाल ये कि क्या अपने बयान के जरिये अब्दुल बासित भारत के उन लिबरल पत्रकारों को ये संकेत देना चाहते हैं कि अनुच्छेद 370 पर पाक सरकार का समर्थन करें अन्यथा उनके कई ऐसे राज सामने आ सकते हैं जिससे उनका भारत में रहना मुश्किल हो सकता है।

इस घटना से स्पष्ट है कि केवल एक या दो भारतीय पत्रकार इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं है, अपितु ऐसे पत्रकारों का एक पूरा नेटवर्क है जो वर्षों से पाक के इशारों पर चलता आया हो. मतलब यह कि ऐसे कई अवसर आये होंगे जब कुछ भारतीय पत्रकार पाक सरकार के इशारों पर अपने ही देश के खिलाफ लिखते आये हैं। ऐसे में यदि पाक प्रशासन ने इन पत्रकारों की असलियत सबके सामने उजागर की, तो न केवल भारतीय प्रशासन इनके विरुद्ध एक्शन लेगा, अपितु इनकी बची खुची साख भी मिट्टी में मिल जाएगी।

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