हाल के दिनों में कांग्रेस पार्टी में एक नया यू-टर्न देखने को मिला था। शशि थरूर और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने मोदी सरकार की तारीफ करना शुरू किया था। इसमें सबसे पहले नाम आया था जयराम रमेश का जिन्होंने कहा था कि ‘यह वक्त है कि हम मोदी सरकार के काम और 2014 से 2019 के बीच उन्होंने जो किया, उसके महत्व को समझें, जिसके कारण वह सत्ता में लौटे। उनके काम की वजह से ही 30 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्ता में उनकी वापसी कराई है’। इसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ों के पूल बांधे थे। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ‘यह जानकर खुशी हुई कि जी-7 सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि कश्मीर सहित भारत पाकिस्तान के बीच सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं।‘
ऐसे ही कांग्रेस के सबसे बुद्धिजीवी नेता और केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने भी यही लाइन पकड़ी और पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि ‘अगर पीएम मोदी द्वारा कोई अच्छा काम किया जाता है तो उनकी सराहना की जानी चाहिए।‘ शशि थरूर के इस बयान के बाद कांग्रेस में अफरा तफरी मच गयी। कांग्रेस की केरल इकाई ने अपने वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद शशि थरूर को नोटिस भेज दिया तथा प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करने पर सफाई मांगी।
हालांकि, यह सोचने वाली बात है कि कांग्रेस पार्टी ने अभी तक थरूर के अलावा किसी और नेता से प्रधानमंत्री की तारीफ करने को लेकर सफाई क्यों नहीं मांगी?
गौर करें तो शशि थरूर को नोटिस भेजने की कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक वजह स्पष्ट नज़र आती है कि शशि थरूर ही वो नेता है जो कांग्रेस में गांधी परिवार को चुनौती दे सकते हैं।
भारत में उनकी फैन फॉलोइंग भी बहुत ज्यादा है और उनमें नेतृत्व करने की क्षमता भी है। जयराम रमेश और मनु सिंघवी जैसे नेता उस स्तर के नहीं है और न ही उतने प्रासंगिक है जो गांधी परिवार को चुनौती दे सकें इसलिए उन्हें कोइ नोटिस नहीं भेजा गया जबकि शशि थरूर को तुरंत ही कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया।
शशि थरूर देश में विपक्ष के उन नेताओं में से हैं जिन्हें मोदी समर्थक भी अपना समर्थन देते है। वह बुद्धिजीवी होने के साथ-साथ देश में भी बहुत लोकप्रिय नेता हैं। उनकी अंग्रेजी और उनकी किताबों के भारत में करोड़ो फैंस हैं। साथ ही उन्होंने कई बार अंग्रेज़ो को भी लताड़ लगाई है, कभी अपने बयानों से कभी “द एरा ऑफ डार्कनेस” जैसी किताबों से जिसकी वजह से उन्हें राष्ट्रवादी नेता के रूप में भी देखा जाता है। इसके अलावा वह सफल राजनेता भी हैं जो तीन बार तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट जीत चुके हैं और इनमें से दो बार तो मोदी लहर के बीच जीत दर्ज की है।
कांग्रेस शुरू से ही थरूर जैसे नेता से डरती रही है। इसकी सिर्फ एक ही वजह है और वह यह की किसी भी बड़े जन नेता से गांधी परिवार का महत्व कम हो जाएगा। इस वर्ष के लोकसभा चुनावों में हार के बाद जब कांग्रेस लोकसभा में एक मजबूत नेता की खोज में थी तब यह कयास लगाए जा रहे थे कि थरूर को ही लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनाया जाएगा लेकिन कांग्रेस ने उन्हें दरकिनार कर दिया। थरूर ने चुनाव में हार के बाद एक टीवी इंटरव्यू में कहा था, “अगर पेशकश की गई, तो लोकसभा में कांग्रेस पार्टी का नेता पद संभालने को तैयार हूं।” गांधी परिवार के चाटुकारों को यह डर था कि कहीं वह गांधी परिवार के लिए चुनौती न बन जाए।
इसके बाद जब राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तब पार्टी में युवा नेता की तलाश की जा रही थी उस समय भी शशि थरूर यही उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें अध्यक्ष पद ऑफर किया जा सकता है लेकिन पार्टी में सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया और थरूर ने इस फैसले का स्वागत किया। हालांकि, जब प्रियंका गांधी या मोती लाल वोरा जैसे नाम अध्यक्ष पद के लिए सामने आ रहे थे तब शशि थरूर मौन धारण किये हुए थे। शशि थरूर खुद इस पद पर आसीन होना चाहते थे लेकिन कांग्रेस पार्टी में यहां भी उन्हें कोई महत्व नहीं दिया परन्तु शशि थरूर ने अच्छे नेता का उदहारण देते हुए पार्टी के फैसले को स्वीकार किया। सच बोला जाए तो कांग्रेस शशि थरूर से डरती है क्योंकि सिर्फ वही इकलौते नेता हैं जो गांधी परिवार की वर्चस्वता को चुनौती दे कर अप्रासंगिक बना सकते है।