लोकसभा में जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) बिल पास, खत्म हुआ कांग्रेस का वर्चस्व

जलियांवाला बाग कांग्रेस अध्यक्ष

PC: News Track

जलियांवाला बाग स्मारक ट्रस्ट से कांग्रेस अध्यक्ष को सदस्य के तौर पर हटाने वाला बिल शुक्रवार को लोकसभा में पास हो गया। इस दौरान कांग्रेस ने इस बिल का जमकर विरोध किया और विरोधस्वरूप सदन से वॉक आउट भी किया। बाद में इस संशोधन बिल को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इससे पहले कांग्रेस ने सरकार पर आजादी का इतिहास बदलने का आरोप लगाते हुए बिल में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, हालांकि इस प्रस्ताव को 30 के मुकाबले 214 मतों से खारिज कर दिया गया। बिल के प्रावधानों के मुताबिक, लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता के पास जलियांवाला बाग स्मारक ट्रस्ट का सदस्य बनने का अधिकार होगा। हालांकि, अभी यह पद खाली रहेगा, क्योंकि लोकसभा में किसी भी विपक्षी पार्टी को कुल लोकसभा सीटों की 10 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल नहीं हैं।

इस बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना चाहती है, और आज़ादी के आंदोलन में कांग्रेस के योगदान को मिटाना चाहती है। टीएमसी और डीएमके ने भी कांग्रेस का साथ दिया, और सरकार पर इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे नेताओं के बलिदान को नकारने का आरोप लगाया। हालांकि, सरकार की ओर से संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने कहा ऊधम सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने का यही सही तरीका है।

कांग्रेस की तथाकथित राष्ट्रभक्ति की पोल खोलते हुए केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने भी कांग्रेस पर हमला बोला। हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि देश में 1984 में सिखों के खिलाफ दंगे भी कांग्रेस ने ही कराए थे। उन्होंने कहा ‘कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री के करीबी रिश्तेदार ने तो जलियांवाला बाग नरसंहार कराने वाले जनरल डायर की तारीफ भी की। यह भी इतिहास है और इसे आप नहीं बदल सकते’।

बता दें कि जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक के ट्रस्ट के अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते हैं। अभी इसके ट्रस्टियों में कांग्रेस अध्यक्ष, संस्कृति मंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, पंजाब के राज्यपाल, पंजाब के मुख्यमंत्री सदस्य होते हैं। जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को कर्नल आर. डायर की अगुवाई में ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे हजारों लोगों पर गोलियां चलाई थीं जिनमें बड़ी सख्या में लोग मारे गए थे। इसी घटना की याद में जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम के तहत 1951 में स्मारक की स्थापना की गई थी, और इसी अधिनियम में कांग्रेस के अध्यक्ष को इस स्मारक के ट्रस्ट का सदस्य बनाने का प्रावधान जोड़ा गया था। हालांकि, इसके बाद से कांग्रेस ने इस स्मारक के विकास के लिए कोई बड़े कदम नहीं उठाए। इसी को प्रकाशित करते हुए हरसिमरत कौर बादल ने सदन में कहा कि ‘पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी रिश्तेदार ने जलियांवाला बाग ह्त्याकांड में शामिल जनरल डायर की इस करतूत को ‘सही’ ठहराया था।

दरअसल, यहां बादल अमरिंदर सिंह के दादा महाराजा भूपिंदर सिंह की बात कर रही थीं जिन्होंने अपनी गद्दी बचाने के लिए अंग्रेजों से साथ हाथ मिला लिया था। उन्हें अपनी जनता से ज़्यादा अपनी संपत्ति से प्यार था। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि देश में वे ही सबसे पहले व्यक्ति थे जिनके पास अपना खुद का एयरक्राफ्ट था। स्पष्ट है कि कांग्रेस ने सिर्फ राजनीति करने के लिए अपने अध्यक्ष को जलियांवाला बाग स्मारक ट्रस्ट के सदस्य बनाने के प्रावधान को अधिनियम में जोड़ा था और उनकी मंशा सिर्फ वोटबैंक को लुभाने की थी। भाजपा सरकार का इस अधिनियम से कांग्रेस अध्यक्ष से जुड़े प्रावधान को हटाना एक अच्छा कदम है, और यह बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।

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