मां-बेटा, कांग्रेस : जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए यहां कोई जगह नहीं

(PC : The Financial Express)

कहते हैं कुछ आदतें छूटे नहीं छूटती। इस बात का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है हमारे देश की ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ कही जाने वाली कांग्रेस  पार्टी। हिपोक्रेसी की सारी सीमाएं लांघते हुये पार्टी ने एक बार फिर सोनिया गांधी को अन्तरिम कांग्रेस  अध्यक्ष बनाया है। यह निर्णय कल शाम को कांग्रेस वर्किंग कमिटी के दूसरे मीटिंग में लिया गया। इससे पहले पार्टी ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि गांधी परिवार अब पार्टी के हाइकमान में दखलंदाज़ी नहीं करेगी।

लोक सभा 2019 के चुनाव में वोटरों ने वंशवाद के ऊपर परिश्रमी उम्मीदवारों को तरजीह दी थी। इसके पश्चात राहुल गांधी ने जनादेश को कथित रूप से स्वीकारते हुये कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने की बात की और कहा कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष ‘गांधी परिवार से नहीं होगा।’

इसी परिप्रेक्ष्य में पिछले ढाई महीनों में कई नाम अध्यक्ष पद के लिए उभरकर सामने आए, फिर चाहे वो अशोक गहलोत हों, या फिर मल्लिकार्जुन खडगे हो, या फिर सचिन पायलट हो या फिर मिलिंद देवड़ा। पर महीनों की चर्चा के बावजूद अध्यक्ष पद के लिए एक भी नाम निश्चित नहीं हुआ। इसके साथ साथ राहुल गांधी भी इस बात पे अड़े थे कि एक गैर गांधी नेता को पार्टी का अध्यक्ष बनना चाहिए, और इस दिशा में उन्होंने पार्टी के सदस्यों के अध्यक्ष पद पर बने रहने के आवेदन को भी ठुकरा दिया।

शायद यही कारण था कि दशकों में पहली बार लगा कि कांग्रेस को एक गैर-गांधी नेता का नेतृत्व देखने को मिले। ये बात सभी को पता थी कि नया अध्यक्ष भी गांधी परिवार का चाटुकार होगा, परंतु इस बात को कोई झुठला नहीं सकता था कि पहली बार गांधी परिवार से अलग एक व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाना था, जो पार्टी के लिए एक बहुत ही क्रांतिकारी कदम था। परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हालांकि कांग्रेस के इतिहास को देखते हुये इस निर्णय पे इतना हैरान होने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

शनिवार शाम को राहुल गांधी का अध्यक्ष पद से इस्तीफा स्वीकारने के बाद सोनिया गांधी को उनके बेटे की जगह चुना गया। ये न सिर्फ बेतुका है, अपितु ये भी सिद्ध करता है कि कैसे गांधी परिवार ने सत्ता के लालच में देश का मखौल बना के रखा है। पार्टी में सभी को पता है कि राहुल गांधी सबसे योग्य नेता नहीं है, परंतु गांधी परिवार के मोह के कारण इन्हे हमेशा नेतृत्व में सबसे आगे रखा गया।

यह गांधी परिवार के प्रति चाटुकारिता का ही परिणाम था कि सीताराम केसरी जैसे वयोवृद्ध नेता को बेहद अपमानजनक तरीके से बाहर निकालकर 1998 में सोनिया गांधी को पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया गया था। आज भी महीनों की चर्चा और गहमा गहमी के बाद भी पार्टी को एक भी ऐसा योग्य उम्मीदवार नहीं दिखा, जो गांधी परिवार की जगह ले सके। 2017 में सोनिया गांधी ने अपनी उम्र को देखते हुये एक रानी की तरह ‘युवराज’ राहुल गांधी को अध्यक्ष पद सौंप दिया। अब जब ‘युवराज’ ने अपनी योग्यता सिद्ध कर दी, तो ‘रानी’ को एक बार फिर से पार्टी की कमान संभालनी पड़ी है। इसलिए चाहे सूरज पश्चिम में उदय हो जाये, पर कांग्रेस  में गांधी परिवार के अलावा किसी को अध्यक्ष पद के लिए चुना जाये, ऐसा नहीं हो सकता।

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