हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता को समर्थन देते हुए जी 7 समूह के नेताओं ने एक संयुक्त बयान दिया है। इस बयान के अनुसार, “जी-7 हांगकांग पर 1984 के चीन-ब्रिटेन समझौते के अस्तित्व और महत्व की पुष्टि करता है और हिंसा से बचने का आह्वान करता है।“ ये बयान बियारित्ज शहर में हो रहे जी7 बैठक के समापन के दौरान फ्रेंच भाषा में पढ़ा गया।
हॉन्ग कॉन्ग में बीजिंग समर्थित सरकार द्वारा प्रत्यर्पण विधेयक पारित किया गया था जिसका काफी समय से हॉन्ग कॉन्ग में भारी विरोध चल रहा है।
एक प्रत्यर्पण संबंधी बिल पारित किया गया था, जो हॉन्ग कॉन्ग क्षेत्र की स्वायत्ता पर एक घातक प्रहार के समान है। हॉन्ग कॉन्ग के क्षेत्र में अभी इस निर्णय के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें 15-30 वर्ष के हॉन्ग कॉन्ग के निवासी भाग ले रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन अब एक प्रकार के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में परिवर्तित हो चुका है। इसके कारण पुलिस और नागरिकों में झड़पें अब आम बात हो चुकी है, और विरोध प्रदर्शन शुरू होने से लेकर अब तक 700 से ज़्यादा लोग हिरासत में ले लिए गए हैं। ‘फ्री हॉन्ग कॉन्ग’ और ‘डेमोक्रेसी नाउ’ अब बहुत आम बात हो चुकी है।
हॉन्ग कॉन्ग और चीन का इतिहास काफी भिन्न रहा है, चाहे वो संस्कृति की बात हो, सरकार की बात हो या फिर अर्थशास्त्र की ही बात क्यों न हो। मूल रूप से हॉन्ग कॉन्ग इंग्लैंड की कॉलोनी हुआ करता था, जिसे 1997 में चीन को वापिस सौंपा गया। उसे कुछ ऐसी रियायतें दी गयी जो बाकी चीन के क्षेत्रों में मिलना लगभग असंभव था। इस शहरी द्वीप के कोर्ट एशिया में सबसे स्वतंत्र कोर्टों में से एक है। इस शहरी द्वीप की अपनी न्यायपालिका, अपनी पुलिस फोर्स और अपना प्रशासन है, जो 2047 तक हॉन्ग कॉन्ग के पास चीन से हुए अनुबंध के कारण हमेशा रहेगा। जहां एक ओर चीन को कई कम्यूनिस्ट शासकों का राज झेलना पड़ा, तो वहीं हॉन्ग कॉन्ग को कुछ हद तक स्वायत्ता प्रदान की गयी।
चूंकि हॉन्ग कॉन्ग एक सदी से भी ज़्यादा समय तक इंग्लैंड के अधीन था, इसलिए चीन के मूल स्वरूप से हॉन्ग कॉन्ग काफी भिन्न है। शायद इसीलिए समय समय पर हॉन्ग कॉन्ग में पूर्ण लोकतन्त्र की मांग भी उठती रही है। जब 20वीं सदी के दौरान चीन को गृहयुद्ध, चीनी – जापानी युद्ध और सांस्कृतिक क्रान्ति से दो चार होना पड़ा था, तब हॉन्ग कॉन्ग चीन के मुक़ाबले काफी स्थिर था। 70 के दशक के बाद ही चीन एक साम्यवादी देश से आगे बढ़कर एक के बाद एक आर्थिक सुधारों को गले लगा पाया।
वहीं दूसरी ओर हॉन्ग कॉन्ग कभी भी एक साम्यवादी शासन के अंतर्गत नहीं रहा था और 1950 से 1960 के बीच ही हॉन्ग कॉन्ग एक आर्थिक और औद्योगिक हब में परिवर्तित हो गया। चीन का हिस्सा बनने के बाद भी हॉन्ग कॉन्ग को अपनी पूंजीवादी सत्ता और अलग सरकार एवं अलग कानूनी प्रणाली रखने का अधिकार मिला। हॉन्ग कॉन्ग के पास अपना संविधान, अपना बेसिक लॉ है और विश्व में उद्योग करने के लिए सबसे सुगम स्थल के तौर प्रसिद्ध भी है।
परंतु हॉन्ग कॉन्ग को मिल रही ये सभी सुविधाएं कम्यूनिस्ट शासन वाले चीन की आँखों में खटकती है। चूंकि हॉन्ग कॉन्ग के निवासी एक ही कानून का अनुसरण करते हैं, इसलिए उनके पास अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और वे इसका प्रयोग करने से नहीं कतराते। इसीलिए इनपर नियंत्रण करने के लिए जिन पुस्तक विक्रेताओं ने चीन के अत्याचार के विरुद्ध किताबें बेची थी, उन्हें अचानक से 2015 के बाद गायब ही कर दिया गया। ऐसे में जी7 जैसे शक्तिशाली समूह से समर्थन मिलना हॉन्ग कॉन्ग के लिए निस्संदेह काफी हितकारी होगा, जो उनके मनोबल को भी बढ़ाने में सहायक होगा।