हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 के उन सभी प्रावधानों को निष्क्रिय कर दिया है, जो जम्मू कश्मीर राज्य को विशेषाधिकार का दर्जा देता था। जहां एक ओर इससे देशभर में हर्षोल्लास छा गया, तो वहीं हमारे पड़ोसी देश के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी। अनुच्छेद 370 के हटाये जाने से हमारे पड़ोसी देश के पास भारत में लोगों को भड़काने के लिए कोई साधन ही नहीं बचा, और बौखलाहट में इस मुल्क ने वही बयान दिये, जो हम वर्षों से सुनते आ रहे हैं।
चाहे विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के इस निर्णय के विरोध में पोस्ट किया गया ट्वीट हो, या फिर पाक आर्मी के प्रवक्ता आसिफ गफ़ूर और स्वयं पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के धमकी भरे ट्वीट हो, हमारे पड़ोसी देश ने ये सिद्ध कर दिया है कि केंद्र सरकार के निर्णय से उन्हें कितना आघात पहुंचा है, खासकर इमरान खान को, जिन्होंने तो यहां तक कह दिया कि ‘अनुच्छेद 370 हटाने के लिए भारत को पुलवामा जैसे हमलों के तैयार हो जाना चाहिए।‘
हालांकि, इमरान खान ने यह बातें केवल अपने देश की जनता को खुश करने के लिए कहीं हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भी पता है कि पाकिस्तान की किसी भी हरकत पर भारत न केवल मुंहतोड़ जवाब देगा, बल्कि उसे कहीं का नहीं छोड़ेगा। इस बात की पुष्टि तभी हो गयी थी जब आधिकारिक प्रतिक्रिया देने में पाक प्रशासन ने काफी विलंब किया। जब उन्होंने प्रतिक्रिया दी भी तो वो पिछली प्रतिक्रियाओं के मुक़ाबले काफी लचर और ठंडी थी, जबकि इससे पहले चाहे सर्जिकल स्ट्राइक्स हों, या फिर बालाकोट में आईएएफ़ द्वारा किए गए हवाई हमले हों, पाकिस्तान ने सदैव छाती ठोककर कश्मीर के मुद्दे को हवा देने और भारत पर परमाणु हमले करने की धमकियां दी हैं।
इमरान ने ये बयान इसलिए भी दिये हैं, क्योंकि कश्मीर पाक के लिए न केवल एक संवेदनशील मामला है, अपितु इसी के आधार पर पाक आर्मी ने अपनी जनता को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए बढ़ावा देने का काम किया है। यूं तो इमरान पाक आर्मी द्वारा ही चुने गए हैं, परंतु उन्हें भी पता है कि यदि अनुच्छेद 370 के हटाये जाने पर उन्होंने कोई ‘मुंहतोड़ जवाब’ नहीं दिया, तो उनका भी वही हश्र होगा, जो 1978 में ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो का और 1999 में नवाज़ शरीफ का हुआ था। इन दोनों को पाक आर्मी ने तख्तापलट कर सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था, क्योंकि इन दोनों के ही कार्यकाल में पाक भारत से क्रमश: 1971 और 1999 के युद्द बुरी तरह हार गया था।
यही नहीं, इमरान खान ने पाकिस्तान के नेशनल एसेम्बली की संयुक्त बैठक में ये भी कहा कि यदि आवश्यकता पड़ी, तो भारत से पाक पारंपरिक तरीके से युद्ध भी करेगा, और चाहे कुछ भी हो जाये, परंतु कश्मीर को अपने हाथों से नहीं निकलने देगा। अब यदि इमरान खान को इतिहास का ज्ञान न हो, तो उन्हें बता दें कि उनसे पहले भी पाक ने इस तरह के प्रयास किए हैं, और अपने चारों प्रयासों में पाक को मुंह की ही खाई है। चाहे 1947 का कश्मीर युद्ध हो, या फिर 1965 का भारत पाक युद्ध हो, या फिर 1971 और 1999 के युद्ध ही क्यों न हो, पाकिस्तान ने हर मोर्चे पर हमारे हाथों पराजय का ही सामना किया है। हालांकि, हम इमरान की स्थिति समझ सकते हैं, आखिर उन्हें अपनी जनता को भी तो समझाना होगा।
सच पूछें तो इमरान खान अब इस स्थिति में ही नहीं है कि भारत के विरुद्ध कोई नापाक हरकत करने के बारे में वो या पाक आर्मी सोच भी सके। यदि ऐसा कुछ भी हुआ, तो भारत इस बार अभिनंदन वाले मामले की भांति हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेगा। ऐसे में इमरान खान के लिए यही अच्छा होगा कि वे कश्मीर को भूल जाएँ और हाशिये पर चल रहे अपने मुल्क को संभाले।