देश के करदाताओं को सरकार से बड़ी राहत मिलने वाली है। प्रत्यक्ष कर सुधारों पर सरकार द्वारा गठित एक पैनल ने वित्त मंत्रालय को कर भुगतान की प्रक्रिया को सरल बनाने और नए कर शासन के लिए कुछ बुनियादी बदलावों का सुझाव दिया है। इस उच्चस्तरीय कार्यबल के सुझावों को अगर सरकार द्वारा मान लिया जाता है तो 5 लाख से 10 लाख रुपये सालाना कमाने वालों के लिए टैक्स स्लैब 10 फीसद तक किया जा सकता है।
इस मामले से संबंधित रिपोर्ट्स के अनुसार, ‘5 लाख तक की आय वालों पर कोई टैक्स नहीं लगाया जाएगा। 5 से 10 लाख रुपये तक की आय वालों पर 10% की दर से टैक्स लगाया जाएगा। इस तरह से एक व्यक्ति साल भर में लगभग 37,500 रुपये तक की बचत कर सकता है। वर्तमान में 5 लाख से 10 लाख तक की आय वालों को 20% टैक्स देना पड़ रहा है।‘
यदि सरकार द्वारा गठित पैनल के सुझावों को सरकार मानती है तो 10 लाख से 20 लाख रुपये तक की सालाना आय पर लगने वाला टैक्स 20% हो जायेगा जो अभी 30% है। वहीं 20 लाख से दो करोड़ रुपये तक सालाना कमाने वाले लोगों पर 30 प्रतिशत टैक्स जबकि 2 करोड़ से अधिक आय वालों पर 35% का टैक्स लगेगा।
इस निर्णय से मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग को बड़ी राहत मिलेगी जिन्होंने बीते कुछ महीनों से अपने खर्चों में भारी कटौती की है। भारतीय अर्थव्यवस्था में आई गिरावट का एक मुख्य कारण मध्यम वर्ग के खर्चों में कटौती भी है। ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट सेक्टर में आंशिक मंदी का प्रमुख कारण खपत में गिरावट है। ऐसे में टैक्स रेट में किये जाने वाले इस बदलाव से उपभोक्ताओं को अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा जो अर्थव्यवस्था के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।
यदि प्रस्ताव लागू किया जाता है, तो टैक्स स्लैब दर तीन (5%, 20%, और 30%) से बदलकर पाँच (5%, 10%, 20%, 30% और 35%) तक कर दी जाएगी। इसके लिए सरकार ने प्रत्यक्ष कर प्रणाली को खत्म करने हेतु केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के सदस्य अखिलेश रंजन के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है।
भारत सरकार देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए कॉर्पोरेट टैक्स को 25 प्रतिशत पर लाने का विचार कर रही है। वर्तमान में भारत में बिना सब्सिडी के काम करने वाली विदेशी कंपनियों पर 40% का टैक्स लगता है जबकि घरेलू कंपनियां जिनका सालाना टर्नओवर 400 करोड़ से ज्यादा है उनपर 30% का टैक्स लगता है। अन्य देशों की तुलना में भारत का कॉर्पोरेट टैक्स सबसे ज्यादा है जो 25-40 प्रतिशत के बीच में है। एक विकासशील देश के रूप में, भारत को जरूरत है आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने की ताकि वो बाजार में अपनी पकड़ को मजबूत कर सके लेकिन ज्यादा टैक्स रेट का इसपर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की गति में पिछली तिमाहियों से आ रही गिरावट को रोकने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ कई बैठकें कीं। उद्योगपति हो, या ऑटोमोबाइल सेक्टर के बिजनेस लीडर्स हो, या कैपिटल मार्केट के प्रतिनीधि हो, या फिर दक्षिणपंथी अर्थशास्त्री हो, इन सभी के साथ निर्मला सीतारमण ने बैठक की और इनकी समस्याओं को सुना। ये वो लोग हैं जो मोदी सरकार का समर्थन करते हैं लेकिन मंदी और व्यापार में उतार-चढ़ाव के कारण थोड़े चिंतित थे। ऐसे में हमें पूरी आशा है कि मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित कर सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था को एक बार फिर से पटरी पर ले आएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी आएगी।