अगर भारत अफ़ग़ानिस्तान में US की मदद करे, तो POK लेने में भारत की मदद करेगा US?

(PC : Mint )

जब से भारत ने जम्मू-कश्मीर राज्य से विशेषाधिकार छीनने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला लिया है, तभी से पाकिस्तान पूरी तरह बौखलाया हुआ है। पाकिस्तान पूरी दुनिया में कश्मीर मुद्दे को प्रकाशित करने का भरसक प्रयास कर रहा है, लेकिन उसे भारत की ओर से भी यह साफ कह दिया गया है कि अब पाकिस्तान के साथ बात सिर्फ पीओके के मुद्दे पर ही होगी और उसे कश्मीर पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है।जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद अब भारत सरकार का फोकस पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर यानि पीओके को वापस भारत मिलाने पर है। इसी कड़ी में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी शनिवार को एक ट्वीट कर यह दावा किया कि यदि भारत अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना को निकालने में अमेरिका की मदद करने का फैसला लेता है तो अमेरिका भी पीओके को वापस भारत में मिलाने में भारत का साथ दे सकता है।

दरअसल, डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन पहले ही अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना को निकालने की बात कह चुका है। बता दें कि वर्ष 2001 में तालिबान को खत्म करने की मंशा से अमेरिकी सेना अफ़ग़ानिस्तान में घुसी थी और पिछले 18 सालों के दौरान अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर बेहद भारी मात्रा में पैसा खर्च किया है। हालांकि, उसके बावजूद तालिबान का प्रभुत्व अफ़ग़ानिस्तान में कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। यही कारण है कि अब अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से हमेशा के लिए बाहर होना चाहता है। हालांकि, इसके लिए उसे एक ऐसे साथी की ज़रूरत है, जो अमेरिका के भरोसे के लायक भी हो, और जो अमेरिका के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के हालातों को नियंत्रण करने की क्षमता भी रखता हो। गौर किया जाए तो दक्षिण एशिया में ऐसा एकमात्र देश भारत ही है, जो सैन्य और आर्थिक मोर्चे पर इतना सक्षम हो।

अब स्वामी के दावों के मुताबिक अगर भारत तालिबान के विरूद्ध जंग में अफ़ग़ानिस्तान में अपने सैनिकों को भेजता है, तो बदले में अमेरिका पीओके को वापस भारत में मिलाने के फैसले का समर्थन कर सकता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष में लोब्बिंग भी कर सकता है। यानि अफ़ग़ानिस्तान में सेना भेजने के बदले में पीओके के मुद्दे पर अमेरिका कूटनीतिक स्तर पर भारत का साथ दे सकता है।

इतना ही नहीं, अगर ऐसा सच होता है, तो अनुच्छेद 370 के झटके के बाद पाकिस्तान के लिए यह सबसे बड़ा और असहनीय झटका साबित होगा। अभी पाकिस्तान की यह पूरी मंशा है कि अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से निकलने के बाद वह इस पूरे इलाके का चौधरी बन जाये, और दक्षिण एशिया में उसकी हैसियत बढ़े। हालांकि, अमेरिका यह बात भली-भांति जानता है कि पाकिस्तान ना तो आर्थिक तौर पर इसके लिए सक्षम है और ना ही सैन्य तौर पर।

वहीं भारत अगर अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सेना भेजता है, तो अफ़ग़ानिस्तान के लोगों और सरकार में भारत के प्रति सम्मान और बढ़ेगा और इस देश में भारत को अपने आर्थिक हितों की परियोजनाओं को सफल बनाने में काफी हद तक मदद मिल सकेगी। इतना ही नहीं, अभी अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की जो थोड़ी-बहुत मदद कर भी रहा है, वह अफ़ग़ानिस्तान मुद्दे की वजह से ही कर रहा है। अगर अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाल की दिशा में भारत एक सक्रिय भूमिका निभाता है, तो अमेरिका को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की मदद करने पर मजबूर होना ही पड़ेगा फिर चाहे वह पीओके को भारत में मिलाने जैसे संवेदनशील मुद्दा ही क्यों ना हो।

सुब्रमण्यम स्वामी का यह ट्वीट ऐसे समय में आया है जब कुछ दिनों पहले ही तालिबान ने भारत से भी शांति वार्ता में हिस्सा लेने की गुजारिश की है। ऐसे में सभी को इस बात पर हैरानी हुई थी कि भला तालिबान का शांति वार्ता में भारत को निमंत्रण देने का क्या कारण हो सकता है? सुब्रमण्यम स्वामी के इस ट्वीट के बाद स्थिति स्पष्ट होती दिखाई दे रही है कि भारत अब अफ़ग़ानिस्तान में कोई सक्रिय भूमिका निभा सकता है और अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाल की प्रक्रिया में अहम साझेदार बन सकता है।

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