‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’, कुछ ऐसा ही है प्रशांत किशोर का ‘ममता प्रोजेक्ट’

प्रशांत ममता

PC: Zee News

वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनावों में जीत हासिल करने के लिए अभी से अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। ममता बनर्जी अपने प्रचार के लिए अभी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ मिलकर काम कर रही हैं और वे प्रशांत किशोर की कंपनी आइपैक के मार्गदर्शन में ही अपनी चुनावी योजना तैयार कर रही हैं।
प्रशांत किशोर के साथ मिलकर बनाई अपनी रणनीति के अनुसार ममता बनर्जी पूरी तरह अपनी रिब्रांडिंग करने में लगी है, और वे अपनी छवि बदलने पर काम कर रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य में भाजपा को बड़ी बढ़त मिली थी और पार्टी को 18 सीटों पर जीत हासिल हुई। अब ममता बनर्जी अपनी छवि में बदलाव करके वोटर्स के विश्वास को दोबारा हासिल करने की कोशिश में हैं। प्रशांत किशोर चाहते हैं कि आने वाले विधानसभा चुनावों के केंद्र में सिर्फ ममता बनर्जी हों, ना कि टीएमसी, और लोग ममता के नाम पर ही पार्टी को वोट दें।
प्रशांत किशोर का यह मॉडल कोई नया नहीं है, बल्कि वर्ष 2014 में भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर भी वे इसी रणनीति पर काम कर चुके हैं। जिस तरह 2014 के चुनावों में भाजपा को ऐतिहासिक सफलता मिली थी, ठीक उसी तरह ममता और प्रशांत किशोर को आशा है कि वर्ष 2021 के चुनावों में टीएमसी को भी भारी विजय मिले, लेकिन किशोर का यह प्लान बंगाल में पूरी तरह फेल होने वाला है और इसका सबसे बड़ा कारण एक संगठन के तौर पर टीएमसी की कमजोरी होगा।

आज बेशक प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के साथ मिलकर 2014 मॉडल के नतीजों की तरह ही टीएमसी को बड़ी जीत दिलाने की कोशिश करें, लेकिन सच्चाई यह है कि उस वक्त भाजपा और पीएम मोदी की चुनावी परिस्थितियों में और आज ममता बनर्जी और टीएमसी की चुनावी परिस्थितियों में ज़मीन आसमान का फर्क है। ये बात ठीक है कि वर्ष 2014 में भाजपा ने चुनाव को पूरी तरह नरेंद्र मोदी के केन्द्रित रखा था। मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया था और लोगों ने अपने सांसद के लिए नहीं, बल्कि पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए वोट किया और बाद में जीत हासिल करने के बाद वे देश के पीएम बने। आज प्रशांत किशोर भी बंगाल में कुछ इसी तरह के मॉडल पर काम करते नज़र आ रहे हैं, जिसके तहत वे ममता बनर्जी की छवि का पुनरुद्धार करने की कोशिश में हैं।
लेकिन प्रशांत किशोर के लिए सब कुछ इतना भी आसान नहीं रहने वाला।

वर्ष 2014 में भाजपा संगठन के तौर पर बहुत मजबूत थी और पार्टी का कैडर बहुत सक्रिय था। पार्टी की जमीनी कार्यकर्ताओं ने भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के संदेशों को आम लोगों तक पहुंचाने की पूरी कोशिश की, और वे उसमें कामयाब भी रहे। यानि एक तरफ जहां पार्टी के पास मजबूत नेतृत्व था, तो वहीं पार्टी जमीनी स्तर पर काफी मजबूत थी। दूसरी ओर अभी टीएमसी की हालत पर नज़र डाली जाए, तो जमीनी स्तर पर वह काफी कमजोर पड़ चुकी है। इसे मजबूत करने के लिए ही जब प्रशांत किशोर की सलाह पर टीएमसी ने ‘के बोलो दीदी’ नाम से चुनाव अभियान शुरू किया था तो भी वह पूरी तरह फ्लॉप साबित हुआ था। दरअसल, आने वाले विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने रणनीति बनाई थी कि पार्टी के एक हजार नेता अगले सौ दिनों के दौरान पश्चिम बंगाल के 10 हजार गांवों का दौरा कर लोगों के साथ समय बिताएंगे और उनका दुख-दर्द सुनेंगे। अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस अभियान से कुछ लोग तो खुश हैं लेकिन कई लोग नेताओं के दुर्व्यवहार और उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर सवाल पूछ कर मुश्किलें पैदा कर रहे हैं और इन सवालों का जवाब देने में नेताओं पसीने छूट रहे हैं। यह दर्शाता है कि पार्टी जमीनी स्तर पर बेहद कमजोर हो चुकी है और पार्टी के कैडर में कुछ हिंसक मानसिकता वाले लोगों का ही बोलबाला है जो पार्टी के नेता ममता बनर्जी के संदेश को आम लोगों तक पहुंचाने में विफल साबित हो रहे हैं।

प्रशांत किशोर चाहे कैसी भी रणनीति क्यों ना बना लें, वे किसी भी प्लान कर काम क्यों न करलें, लेकिन सच्चाई यह है कि लोग टीएमसी सरकार के तुष्टीकरण और ओछी राजनीति से अब ऊब चुके हैं। अब ममता अपनी रिब्रांडिंग करने की जितनी भी कोशिश क्यों ना कर लें, लेकिन पिछले 10 सालों के दौरान वे अपने द्वारा की गई तुष्टीकरण की राजनीति को किसी से छुपा नहीं सकती। इसी का परिणाम है कि आज उनके सामने राज्य की राजनीति में पूरी तरह महत्वहीन होने का खतरा मंडरा रहा है।

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