‘ममता के बोलो’ अभियान में नेताओं के छूट रहे पसीने, जनता के सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे TMC नेता

ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल

PC: asianetnews

हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोगों को खुद से जोड़ने के लिए एक नया कैंपेन शुरू किया था। ‘दीदी के बोलो’ यानी ‘दीदी से बात करो’ कैंपेन के अंतर्गत राज्य में किसी भी प्रकार की समस्या के निवारण के लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर एवं वेबसाइट की सुविधा दी गयी है, जिसमें जनता की समस्त समस्याएँ सीधे ममता दीदी को रिपोर्ट जाती हैं। कार्यक्रम के तहत तृणमूल कांग्रेस के जनसंपर्क अभियान में पार्टी के नेता और मंत्री गांवों में जा तो रहे हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें आम जनता के कई सवालों का जवाब देना पड़ता है। जनता जब तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का दुर्व्यवहार और उन पर लगे भ्रष्टाचार के बारे में सवाल पूछती है तो पार्टी के नेताओं के पसीने छूट जाते हैं।

दरअसल, आने वाले विधानसभा चुनाव में टीएमसी के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने रणनीति बनाई थी कि पार्टी के एक हजार नेता अगले सौ दिनों के दौरान पश्चिम बंगाल के 10 हजार गांवों का दौरा कर लोगों के साथ समय बिताएंगे और उनका दुख-दर्द सुनेंगे। अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस अभियान से कुछ लोग तो खुश हैं लेकिन कई लोग कट मनी, स्थानीय नेताओं के अक्खड़ रवैये, दुर्व्यवहार और उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर सवाल पूछ कर मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। इन सवालों का जवाब देने में पसीने छूट रहे हैं।

आखिर जनता सवाल क्यों न करे? ममता बेनर्जी ने बीते सालों में जो राजनीति की हैं उसी का यह परिणाम है। पिछले एक साल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज में पश्चिम बंगाल में हर तरह की ओछी राजनीति देखने को मिली है, चाहे दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन पर रोक लगानी हो, या फिर बसीरहाट, धूलागढ़ में हुए सांप्रदायिक घटनाओं पर चुप्पी साधना, या फिर राम नवमी के अवसर पर पंडालों में तोड़-फोड़ हो या ‘जय श्री राम’ के नारों पर रोक लगाना ही क्यों न हो, सरकार हर मोर्चे पर फेल रही है।

साल 2018 में हुए पंचायत चुनाव के नतीजे आने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौर शुरू हो गया था जो अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है, आम चुनाव के बाद भी छिटपुट मामले आ रहे हैं। टीएमसी की बंगाल में इतनी गुंडागर्दी बढ़ गई है कि कोई भी पार्टी या नेता अगर उसके सामने चुनाव में खड़े होने की हिम्मत दिखाता है तो पहले उन्हें पैसों से खरीदने की कोशिश की जाती है। अगर इससे भी बात नहीं बनती तो उनके घर को आग लगा दी जाती है या फिर हत्या करवा दी जाती है, अगर चुनाव में कोई प्रतिद्वंदी होगा ही नहीं तो मुक़ाबला किससे होगा, यानी ममता बनर्जी राज्य में लोकतंत्र खत्म करना चाहती हैं।

इस बात से ममता सरकार की पोल खुल चुकी है कि राज्य में उनकी स्थिति बेहद कमजोर हो गई है। लोग टीएमसी सरकार के तुष्टीकरण और ओछी राजनीति से अब ऊब चुके हैं तथा अब सीधे सवाल कर रहे है। यही वजह है कि इस बार लोकसभा चुनावों में राज्य की 42 में से केवल 22 सीटें ही जीत पायी थी और आगामी विधानसभा में भी टीएमसी कमजोर नजर आ रही है। इसी कारण पश्चिम बंगाल के लोग टीएमसी के नेताओं को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।

Exit mobile version