आसान कर्ज़, बढ़िया सुविधा और कम खर्चा, बैंकों के विलय से बैंकों के साथ-साथ कस्टमर्स को भी होगा फायदा

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PC: hindustantimes

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल यानि शुक्रवार को सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के विलय से संबन्धित बड़ा ऐलान किया। वित्त मंत्री ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के 10 छोटे बैंकों का विलय करके 4 बड़े बैंक बनाए जाएंगे। विलय के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कुल संख्या 12 रह जाएगी, जो कि वर्ष 2017 में 27 थी। केंद्र सरकार का पूरा फोकस छोटे-छोटे बैंकों का विलय कर ऑपरेशनल कॉस्ट को कम करना है, और बैंकों की सुविधा को विश्व स्तरीय बनाना है। इससे पहले वर्ष 2017 में सरकार एसबीआई के अलग-अलग सहयोगी बैंकों का विलय कर चुकी है, और इसी तरह सरकार वर्ष 2018 में बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया और देना बैंक का विलय भी कर चुकी है। सरकार का मानना है कि बैंकों के विलय से कस्टमर की रीच बढ़ेगी, बैंक की क्षमता बढ़ेगी, निवेश तेज होगा और ग्राहकों को किसी तरह की असुविधा भी नहीं होगी

निर्मला सीतारमण की घोषणा के मुताबिक पीएनबी यानि पंजाब नेशनल बैंक में ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक का विलय होगा। इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक का भी अलग से विलय होगा। इसके अलावा सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में विलय होगा और यूनियन बैंक में आंध्र व कॉर्पोरेशन बैंक को मिला दिया जाएगा। यानि 10 छोटे बैंकों को मिलाकर 4 छोटे बैंक बनाए जाएंगे और ये बैंक होंगे पीएनबी, केनरा बैंक, यूनियन बैंक और इंडियन बैंक।

जानकारों का मानना है कि कमजोर बैंकों का अगर मजबूत बैंकों में विलय होता है तो ग्राहकों के लिए फायदे का सौदा होता है। मजबूत बैंक खाताधारकों के लिए लंबी अवधि में जमा पर ज्यादा आकर्षक ब्याज दे सकते हैं, और कर्ज की दरें भी कम कर सकते हैं। बैंकों का विशाल होना न सिर्फ अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है, बल्कि इससे उनके व्यावसायिक लागत में भी कमी आती है। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा था कि इससे बैंक और मज़बूत होंगे और उनकी कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी। विलय के कारणों को बताते हुए उन्होंने कहा था कि बैंकों की कर्ज देने की स्थिति कमजोर होने से कंपनियों का निवेश प्रभावित हो रहा है, जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है।

यहां आपको यह समझ लेना चाहिए कि बैंक जितना ज्यादा बड़ा और मजबूत होगा, उसकी कार्यक्षमता उतनी ही बढ़ेगी। उदाहरण के तौर पर विलय के बाद पीएनबी का कुल व्यवसाय 17.94 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा और वह दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक होगा। इसके बाद पीएनबी के पास पहले के मुक़ाबले ज़्यादा शाखाएँ होंगी, और अगर जिन क्षेत्रों में विलय होने वाले बैंकों की एक से ज़्यादा शाखाएँ होंगी, तो फिर वहां से अतिरिक्त शाखाओं को बंद कर दिया जाएगा और इससे बैंक का ऑपरेशनल कॉस्ट कम हो जाएगा। यहां सरकार ने यह साफ किया है कि विलय के बाद किसी भी कर्मचारी की नौकरी नहीं जाएगी और कर्मचारियों की संख्या पहले जितनी ही रहेगी।

अभी बैंकों के सामने सबसे बड़ा संकट एनपीए यानि नॉन परफोर्मिंग एसेट का है। बैंकिंग सेक्टर के कुल नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा सरकारी बैंकों का है। बैकिंग सेक्टर में पिछले वित्त वर्ष में करीब 8 लाख करोड़ रुपये का एनपीए था, जो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार अब 7.90 लाख करोड़ रुपये रह गया है। NPA संकट को देखते हुए कमजोर बैंकों के विलय का मतलब यह भी है कि बैंकों की तादाद कम होगी, और वे पूंजीगत आधार पर बेहतर होंगे और उनकी निगरानी में आसानी होगी। इसी के साथ-साथ अभी अलग-अलग बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों का वेतन अलग-अलग है, और किसी एक बैंक के कर्मचारी को किसी दूसरे बड़े बैंक के कर्मचारी के समान काम करने के बावजूद भी समान वेतन नहीं मिलता है। अब विलय के बाद चूंकि कई बैंकों का विलय एक बैंक में हो जाएगा, ऐसे में अब सभी कर्मचारियों का वेतन एक समान हो जाएगा।

बैंकिंग सेक्टर एक ऐसा सेक्टर है जिसका आम जनता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में सरकार के लिए यह जरूरी होता है कि इस सेक्टर को अच्छे ढंग से चलाये रखने के लिए वह समय-समय पर जरूरी कदम उठाए। वित्त मंत्री द्वारा बैंकों के विलय की दिशा में उठाया गया यह कदम भी इसी बात का प्रमाण है कि सरकार देश के बैंकिंग सिस्टम को और बेहतर करने के लिए प्रतिबद्ध है और भविष्य में भी सरकार जनहित में ऐसे ही बड़े कदम उठाती रहेगी।

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