‘कश्मीर हिंदू बहुल होता तो अनुच्छेद 370 नहीं हटता’ कहने वाले चिदंबरम को एक बार इतिहास में झाँक लेना चाहिए

कश्मीर कांग्रेस

PC: ndtv

जम्मू-कश्मीर राज्य से विशेष दर्जा छीनने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला लेकर केंद्र सरकार ने दशकों से अनसुलझी कश्मीर समस्या को सुलझाने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। हालांकि, पिछली सरकारें अपने वोट बैंक के लालच में ऐसा करने में नाकाम रही थीं। कांग्रेस ने भारत के हितों को नकारते हुए घाटी के मुस्लिमों को अपने वोटबैंक के रूप में भुनाया और कुछ अलगाववादियों के हितों को सभी कश्मीरियों के हितों के तौर पर प्रदर्शित करने की ओछी राजनीति कई सालों तक चलती रही। हालांकि, अब जब मोदी सरकार ने इस साहसिक कदम को उठाकर देशहित के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उदाहरण पेश किया है तो अब कांग्रेस अपनी धर्म-आधारित राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है। इसी कड़ी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम ने अपनी घटिया राजनीति का प्रमाण देते हुए यह बयान दिया कि अगर जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल ना होकर हिन्दू-बहुल होता, तो भाजपा कभी भी राज्य से अनुच्छेद 370 नहीं हटाती।

दरअसल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को समाप्त करने के लिए रविवार को भाजपा की आलोचना की और कहा कि ‘यदि जम्मू कश्मीर हिंदू बहुल राज्य होता तो भगवा पार्टी इस राज्य का विशेष दर्जा ”नहीं” छीनती।‘ उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने अपनी ताकत से अनुच्छेद को समाप्त किया। उन्होंने कहा कि ‘जम्मू कश्मीर अस्थिर है और अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां इस अशांत स्थिति को कवर कर रही हैं लेकिन भारतीय मीडिया घराने ऐसा नहीं कर रहे हैं।‘

पी. चिदम्बरम के इस बयान से साफ है कि कश्मीर मामले पर कांग्रेस पार्टी भारत के साथ नहीं बल्कि पाकिस्तान के साथ खड़ी है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मुद्दा कोई धार्मिक मुद्दा नहीं बल्कि देश हित से जुड़ा मुद्दा है, लेकिन पाकिस्तान के बाद अब पी. चिदम्बरम ने कश्मीर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।

हम पी. चिदम्बरम को याद दिला दें कि सदियों तक कश्मीर एक हिन्दू-बहुल इलाका रहा है। हालांकि, वर्ष 1947 आते आते इस क्षेत्र कि आबादी में मुस्लिमों का वर्चस्व काफी बढ़ गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि इस इलाके पर कई विदेशी इस्लामिक आक्रांताओं ने हमला किया और स्थानीय संस्कृति को खत्म करने की पूरी कोशिश की। महाराजा हरि सिंह ने जब 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (आईओए) विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, तो इस विलय पत्र में राज्य के लिए कोई विशेष अधिकार देने की बात नहीं लिखी हुई थी। यह एक वही विलय पत्र था जिसके जरिये आज़ादी के बाद भारत में मौजूद अन्य रियासतों का भारत में विलय हुआ था।

हालांकि, कश्मीर मुद्दे को सही से ना संभालने की वजह से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे बड़ी समस्या बना दिया। क्षेत्र की मुस्लिम बहुल आबादी ने नेहरू के करीबी माने जाने वाले शेख अब्दुल्ला पर अपना भरोसा जताया। इसके बाद वर्ष 1950 में संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया जिसके बाद जम्मू-कश्मीर को कई विशेष अधिकार मिले। कई राजनीतिक पंडित आज भी इस बात को मानते हैं कि नेहरू और अब्दुल्ला के बीच गहरी दोस्ती की वजह से ही अब्दुल्ला कश्मीर के लिए यह विशेष अनुच्छेद भारत के संविधान में जोड़ने में कामयाब हो पाये थे। हालांकि, ये भी एक सच है कि यदि उस समय कश्मीर में हिंदू बहुल होते तो ये अनुच्छेद कभी अस्तित्व में ही नहीं आता।  

स्पष्ट है कि अगर राज्य की डेमोग्राफी में कोई बदलाव ना होता, और राज्य का इस्तेमाल अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए नहीं किया गया होता, तो अनुच्छेद 370 की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। अब चूंकि, अनुच्छेद 370 कश्मीर से हट चुका है, तो जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों ने इसका स्वागत किया है। लेह, जम्मू और श्रीनगर के लोगों ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने वाले फैसले का समर्थन किया और वो इसका जश्न मना रहे हैं। वहीं कश्मीर के जो इलाके पहले आतंकवाद से जूझ रहे थे और जहां पत्थरबाज़ी होती थी, वहां पर सुरक्षाबाल अभी भी तैनात हैं।

हालांकि, कांग्रेस के नेताओं को कश्मीरियों के हितों की नहीं, बल्कि अपनी राजनीति की चिंता है। ऐसे नेताओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके बयानों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। ये नेता अपने गैर-जिम्मेदाराना बयानों की वजह से पाकिस्तान की मदद ही कर रहे हैं। पी. चिदम्बरम और कांग्रेस के अन्य नेताओं को अपने देशविरोधी बयान के लिए आज ही माफी मांगनी चाहिए, और उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला हिन्दू-मुस्लिम को देखकर नहीं, बल्कि देशहित को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

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