पीएम मोदी ने संस्कृत दिवस पर दी संस्कृत में बधाई, देवभाषा के पुनरूद्धार के दिए संकेत

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PC: Unique Times

गुरुवार का दिन भारत के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण दिन रहा। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि किसी एक तारीख को एक साथ 2 त्यौहार का संगम हो। 15 अगस्त यानी कल गुरुवार को स्वतन्त्रता दिवस और रक्षाबंधन एकसाथ पड़ा। श्रावणी पूर्णिमा को ही रक्षाबंधन मनाया जाता है लेकिन इस दिन एक और दिवस मनाया जाता है और वह है संस्कृत दिवस। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को संस्कृत भाषा में शुभकामानाएं दीं।

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट में कहा, “सभी देशवासियों को संस्कृत दिवस के अवसर पर मेरी कोटिशः शुभकमनाएं। हमें गर्व है कि विश्व की सभी भाषाओं में संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा है जो हमारी विरासत का प्रतीक है। यह ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति व संस्कार की भाषा है।” 

प्रधानमंत्री ने एक अन्य ट्वीट में कहा, “संस्कृत भाषा को जिन महात्माओं, ऋषियों, मुनियों और ज्ञानियों ने अपनी तपस्या से सींचा और उसे सबसे वैज्ञानिक भाषा बनाया उन सबको इस अवसर पर नमन करता हूं। साथ ही, उन सभी भाषाविदों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं जो संस्कृत भाषा की विकास के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।”

बता दें कि वर्ष 1969 में भारत सरकार की मानव संसाधन मंत्रालय के आदेश से केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश जारी किया गया था। तब से संपूर्ण भारत में श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस मनाया जाता है। इस दिन को इसीलिए चुना गया था क्योंकि इसी दिन प्राचीन भारत में नया शिक्षण सत्र शुरू होता था। इसी दिन वेद पाठ का आरंभ होता था तथा इसी दिन छात्र शास्त्रों का अध्ययन प्रारंभ किया करते थे। प्रधानमंत्री का इस तरह से संस्कृत में ट्वीट करना दिखाता है कि वह अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह नहीं हैं जो अपनी संस्कृति और इतिहास की धरोहर से मुंह मोड़ लें। प्रधानमंत्री मोदी ने गर्व के साथ भारतभूमि और सनातन धर्म के साथ संस्कृत को अपनाया है। हमारे देश में सेकुलेरिज़्म के नाम पर अपने इतिहास और संस्कृति की अवहेलना कूल माना जाता है। प्रधानमंत्री का इस तरह से अपनी संस्कृति और संस्कृत भाषा को बढ़ावा देना लिबरल गैंग के गले नहीं उतर रहा है। इन लेफ्ट लिब्रल्स को कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं पसंद है, जो सरेआम सनातन धर्म की संस्कृति एवं उसकी परम्पराओं को खुलकर गले लगाए। लेकिन हर बार इन सब से ऊपर उठ कर प्रधानमंत्री मोदी ने देश की विरासत, अपने धर्म और अपनी भाषा को सेकुलरिज़्म के नाम पर सांप्रदायिकता फैलाने वालों के खिलाफ हथियार बनाया है।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने खुले तौर पर अपने धर्म और संस्कृति के बारे में चर्चा की हो। वर्ष 2104 में जब उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र के रूप में वाराणसी की घोषणा की थी उस दौरान भी यही लेफ्ट लिबरल्स ऐसे ही सवाल उठाए थे। तब से वह हर बार महादेव और माँ गंगा की पूजा-अर्चना करते रहे हैं। चाहे वह कुम्भ में स्नान करना हो या केदारनाथ की गुफा में ध्यान करना हो, पीएम मोदी ने हर बार अपने सनातनी धर्म को निभाया है। चारधाम यात्रा, शंकराचार्य प्रकटोत्सव, नर्मदा सेवा यात्रा और मंजूनाथ स्वामी के दर्शन से पता चलता है कि उन्हें अपने हिन्दू होने का कितना गर्व है और वह इसे अन्य नेताओं की तरह तुष्टीकरण की राजनीति के लिए उपयोग नहीं करते।

भारत के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आज भारत की विरासत को विश्व अपना रहा है लेकिन भारत में ही लोग विरोध करते रहे हैं। संस्कृत भाषा को चीन समेत 40 देशों और दुनियाभर की 254 यूनिवर्सिटीज में पढ़ाया जा रहा है और इस पर शोध किया जा रहा है। सिद्ध हो चुका है कि यह सभी भारतीय भाषाओं की जननी है और यहां तक कि दक्षिण-पूर्वी एशिया की भाषाओं में भी इसका प्रभाव है। संस्कृत में 45 लाख पांडुलिपियां हैं लेकिन बदकिस्मती से सिर्फ 25,000 ही प्रकाशित हुई हैं।

संस्कृत दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा संस्कृत में बधाई देना यह दिखाता है कि वह भारत की संस्कृति और संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा को बढ़ावा देना चाहते हैं। उन्होंने अपने संदेश के माध्यम से संस्कृत को लोकप्रिय बनाने की मांग की है। मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और इस प्राचीन भाषा को पुनर्जीवित करने और आज के युवाओं के बीच इसे लोकप्रिय बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं।

मानव संसाधन मंत्रालय से जुड़ी स्वायत्त संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) अब देववाणी संस्कृत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में लगी हुई है। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में यह कहा था कि वो भारत मे बोली जाने वाली सभी भाषाओं और बोलियों की वर्तमान स्थिति को जानने और अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यबल का गठन करेगी भारतीय भाषाओं और बोलियों के पुनरुद्धार और संवर्धन के लिए सभी संभव प्रयास करेगी। भाजपा की मेनिफेस्टो मे यह भी कहा गया था कि संस्कृत भाषा का स्कूली स्तर पर संस्कृत की शिक्षा का विस्तार करने करेगी। मौजूदा सरकार ने संस्कृत में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए शोधार्थियों व विद्वानों के लिए पाणिनी फेलोशिप देने की शुरुआत करने का वादा किया है। इससे स्कॉलर्स को और आगे बढ़ने में मदद मिलेगी साथ ही जिस वित्तीय सहायता की उनको जरूरत थी वो अब मिल पाएगी। सरकार 100 पाणिनी फेलोशिप देकर इसकी शुरुआत करेगी। अब भाषाओं की जननी संस्कृत को और अधिक लोगों तक पहुंचाए जाने की जरूरत है और प्रधानमंत्री ने इसका संकेत दे दिया है।

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