रिव्यु: कहानी नहीं है लेकिन एक्शन से भरपूर है प्रभास की फिल्म ‘साहो’

साहो फिल्म देखने के बाद मैं एक बात तो बिलकुल नहीं समझ पा रहा हूं – क्या सोचकर प्रभास अन्ना ने इस फिल्म को साइन किया था?फिल्म साहो के निर्देशक हैं सुजीत रेड्डी और इसके प्रमुख अभिनेता हैं प्रभास और श्रद्धा कपूर। इनका साथ दिया है जैकी श्रौफ़, अरुण विजय, नील नितिन मुकेश, प्रकाश बेलावाड़ी, मंदिरा बेदी, चंकी पाण्डेय, टीनू आनंद जैसे दिग्गज कलाकारों ने।

कहानी है एक उद्योगपति रॉय के बारे में, जिसकी मुंबई में बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी जाती है। इस घटना के कुछ ही महीनो बाद रॉय के कंपनी की काफी संपत्ति चोरी हो जाती है, जिसपर रॉय के बेटे विश्वांक और रॉय के प्रतिद्वंदी एवं गैंगस्टर देवराज दोनों की ही नज़र है। इस चोरी की जांच के लिए मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच से अमृता नायर के साथ साथ एक अंडरकवर ऑफिसर अशोक चक्रवर्ती [प्रभास] को भी नियुक्त करता है। कैसे दोनों असली चोर का पता लगाते हैं, लेकिन यहां अशोक की भूमिका में एक ट्विस्ट है, यही पूरी कहानी का सार है।

कल्पना कीजिये कि आपको एक बेहद रोमांचकारी एक्शन थ्रिलर बनाने को कहा जाये, जिसके लिए मुख्य अभिनेता अपने करियर के दो वर्ष देने को तैयार है, परंतु जब वो आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज़ होती है,  तो आपकी सभी आशाओं पर पानी फिर जाता है। ऐसे में आपको कैसा लगेगा? साहो कुछ इसी तरह निराश करती है। ये बड़ी बजट की फिल्म है, इसमें एक्शन है, बेहतरीन विजुवल इफैक्ट है, पर मूल कहानी तो एकदम अधपकी और बकवास निकली। इस फिल्म को यदि कोई पूरा देखने में सफल हो गया, तो वो अपने आप से एक बार यही पूछेगा – सच में इस फिल्म में 350 करोड़ लगे थे? सच पूछें, तो फिल्म के इंटरवल तक में ही दर्शक को निराशा मिलेगी।

इस साल की कई बड़े बजट की फिल्मों की तरह साहो भी उसी बीमारी का शिकार बन गयी – अच्छी स्टोरी को छोड़कर इस फिल्म में सब कुछ मिलेगा। जिस फिल्म के लिए प्रभास ने अपने दो वर्ष दिये हों, उसकी इतनी बेकार पटकथा होगी, किसी ने नहीं सोचा होगा। किसी भी जगह गाने को ठूँसना, बेवजह के प्लॉट ट्विस्ट्स, और एक बेढंगा क्लाइमैक्स आपको कई अवसरों पर अपने बाल नोचने को भी मजबूर कर सकता है।

अब फिल्म में अभिनय की बात कर लेते हैं, बाहुबली में अपने अभिनय के कौशल से जिस तरह उन्होंने पूरे देश को अपना दीवाना बनाया था, उनको ऐसी फिल्म देकर मानो निर्माता और निर्देशक दोनों ने ही घोर अन्याय किया है। यदि फिल्म को आप किसी तरह से पूरी देख सकेंगे तो ये केवल प्रभास  की दमदार एक्टिंग के कारण ही होगा।

श्रद्धा कपूर ने प्रभास का साथ देने का प्रयास तो किया है, परंतु अधपके प्लॉट और अपने चरित्र के कमजोर लेखन के कारण वे अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रही है। अकेले चंकी पाण्डेय ने अपने नकारात्मक चरित्र से स्थिति को संभालने का प्रयास किया, परंतु वो भी  बाकी चरित्रों के हास्यास्पद चित्रण का शिकार हो गये।

कुल मिलाकर साहो एक अच्छी कहानी के साथ बेहतरीन हो सकती थी । यदि फिल्म की कहानी दमदार होती, तो यह भारत की पहली ऐसी एक्शन ड्रामा बन सकती थी, जो हॉलीवुड को भी टक्कर दे सके। पर अफसोस, ऐसा कुछ भी न हो सका, और अंत में हमें मिली एक आधी अधूरी, थोड़ी पकाऊ और कुल मिलाकर एक निराशाजनक फिल्म, जो कई प्रशंसकों की उम्मीदों को तोड़ सकता है। मेरी तरफ से साहो को मिलने चाहिए 5 में से 1.5 स्टार।

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