राहुल गांधी के कश्मीर देर से जाने और सुस्त प्रतिक्रिया देने के क्या मायने हैं?

राहुल गांधी

PC: Intoday

राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी में जबसे सक्रिय हुए पार्टी के अन्य नेताओं में नई उम्मीदें जाग उठी थीं। फिर वर्ष 2017 में उन्हें कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस वर्ष 2019 के आम चुनाव के लिए तैयारियों में जुटी हुई थी और कांग्रेस को उम्मीद थी कि राहुल गांधी कुछ करिश्मा दिखाएंगे लेकिन हुआ ठीक इस उम्मीद के उलटा। कांग्रेस को एक दो राज्यों में छोड़ कर सभी राज्यों जबरदस्त हार मिली। लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर दिया। इसके बाद राहुल गांधी ने देर से ही सही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से राहुल गांधी ने जिस तरह से भारतीय राजनीति से दूरी बनाई है उससे यह साफ पता चल रहा है कि वह हार के बाद से पूरी तरह से टूट चुके है। इसका नमूना भी देखने को मिला जब हाल ही में उन्होंने अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर में संचार को पुनः बहाल करने का विरोध करने के लिए कश्मीर का दौरा करने का फैसला लिया और फिर जब वहाँ ड्रामा करने के बाद खाली हाथ वापस लौटा दिए गए तब बस उन्होंने सिर्फ ट्वीट कर अपना विरोध जताया। उनके बर्ताव से ऐसा लग रहा है मानो उन्हें अब राजनीति से अब मतलब ही नहीं है।

दरअसल, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता कश्मीर का दौरे के लिए श्रीनगर एयरपोर्ट पहुंचे थे। प्रशासन के अधिकारियों ने नेताओं को इसकी अनुमति नहीं दी विपक्षी नेताओं को श्रीनगर हवाई अड्डे से ही वापस भेज दिया गया था। जिसके बाद राहुल गांधी ने बस ट्वीट कर लिखा कि जम्मू कश्मीर के लोगों की स्वतंत्रता और नागरिक आजादी पर अंकुश लगाए हुए 20 दिन हो गए हैं। इसके बाद दिल्ली आने के बाद फिर से वह गायब हो गए।

राहुल गांधी का विपक्षी नेताओं के साथ श्रीनगर जाना ही कई सवाल खड़ा करता है। पहला यह कि यह फैसला राहुल गांधी ने अनुच्छेद 370 हटने के इतने दिन बाद क्यों लिया? दूसरा आखिर जब सदन में इस पर बहस चल रही थी तब वह कहां गायब थे? तीसरा उन्होंने अनुच्छेद 370 हटने के तुरंत बाद कोई भी देशव्यापी विरोध करने का कदम क्यों नहीं उठाया? चौथा जब उन्हें वापस भेजा गया तो इन्होंने बस ट्वीट कर ही अपना विरोध दर्शाया, कई बड़ा कदम क्यों नहीं उठाया?

एक राष्ट्रीय मुद्दे पर एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी के बड़े नेता से इस तरह की बेरुखी और उपेक्षा की उम्मीद नहीं की गयी थी। देर से आना और सुस्त प्रतिक्रिया देना और फिर वापस लौट जाना इस टाइमिंग पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने बस एक कोरम पूरा करने के लिए कश्मीर जाने की योजना बनाई। राहुल गांधी के इस तरह से जम्मू कश्मीर पर विपक्षी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा होने के बाद भी अपना विरोध सिर्फ ट्वीट तक सीमित रखना दिखाता है कि वह लोकसभा के चुनावों में हार से टूट चुके है और अब उन्हें भारत की राजनीति से कोई मतलब नहीं है।

गौरतलब है कि राहुल गांधी वर्ष 2014 से ही कांग्रेस के पोस्टर बॉय बने हुए हैं तथा विपक्ष का नेतृत्व कर रहे है और तब से कांग्रेस को सभी मोर्चे पर हार का ही सामना करना पड़ा। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान और ज्यादा राजनीति में सक्रियता दिखाई और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। फिर भी जनता ने कांग्रेस को नकार दिया और कांग्रेस के सिंधिया, खड्गे समेत पार्टी के सभी बड़े नेता चुनाव हार गए। यहाँ तक राहुल गांधी अपनी पुश्तैनी सीट अमेठी को स्मृति ईरानी के हाथों गवां बैठे। राहुल गांधी इस हार को पचा नहीं पाये और विदेश छुट्टियां मनाने चले गए। बजट सत्र के दौरान भी वह नदारद ही दिखे जिससे यह साफ प्रतीत होता है कि राहुल गांधी एक के बाद एक हार से निराश हैं और अब कोई भी राजनीतिक घटना उनके लिए पहले की तरह महत्वपूर्ण नहीं है। ऐसा लग रहा है कि अब उन्हें एहसास हो चुका है कि अब उनका राजनीतिक कैरियर खत्म हो चुका है। अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के 20 दिनों बाद राहुल गांधी का सुस्ती और देरी उनकी रुचि को दिखाता है। राहुल गांधी ने यह फैसला क्यों और किस मकसद से लिया यह तो वही जाने लेकिन एक बात साफ है कि उनका यह कदम विपक्ष के एक प्रमुख नेता के तौर पर काफी देर से आया और एक अनचाहे मन से आया था।

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