वायनाड में बाढ़ का कहर लेकिन राहुल गांधी के पास समय नहीं वहां जाकर लोगों से मिलने का

PC: BBC

हाल ही में अत्यधिक बारिश के कारण पहले, गुजरात, फिर महाराष्ट्र, कर्नाटक, और अब केरल में भी बाढ़ आ चुकी है। केरल में बाढ़ के कारण अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है। मलप्पुरम जिले के निलंबूर क्षेत्र में बाढ़ के कारण भूस्खलन भी हुआ है, जिसके कारण 40 से ज़्यादा लोग इस क्षेत्र में फंस गए थे। वर्तमान रिपोर्ट्स के अनुसार  अब तक 22165 लोगों को भारतीय सेना एवं एनडीआरएफ़ की विभिन्न टीमों ने सकुशल सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा दिया है। वहीं शुक्रवार को आईएमडी ने राज्य के नौ जिलों में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। इनमें दुक्की, थ्रिस्सूर, पलक्कड़, मलप्पुरम, कोझिकोड, वायनाड़ इत्यादि शामिल है।  

इस बाढ़ की चपेट में वायनाड भी आया है, जहां ऐसे ही एक और भूस्खलन के कारण कई लोग फंसे हुये थे, जिसमें से अब तक 100 से ज़्यादा लोगों को एनडीआरएफ़ ने सुरक्षित बाहर निकाल लिया है। ये भूस्खलन करीब 2 किमी तक हुआ था। ज्ञात हो कि ये वही वायनाड है, जहां से काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा था और इसे जीता भी था।

अब ऐसे में देश की जनता यह जानने को इच्छुक है कि इस स्थिति में आखिर राहुल गांधी ने वायनाड़ के लिए क्या व्यवस्था करवाई है। हाल ही में इस स्थिति के बारे में राहुल ने ट्वीट में पोस्ट करते हुये कहा, “मेरे लोक सभा क्षेत्र वायनाड के लोग अभी बाढ़ से जूझ रहे हैं। वे सदा मेरे जहन में रहते हैं। मैं वायनाड़ के लिए निकलने वाला था, पर मेरे अफसरों ने सलाह दी थी कि मेरी उपस्थिति से वहाँ राहत कार्यों में बाधा पड़ सकती है। उनके ओके की मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ”।

जी हाँ, आपने ठीक सुना। कभी किसी से नहीं डरने वाले और नरेंद्र मोदी को प्रेस कॉन्फ्रेंस अथवा वाद विवाद के लिए चुनौती देने की हुंकार भरने वाले राहुल गांधी आज वायनाड़ जाने के लिए अपने अफसरों के स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यही नहीं, राहुल गांधी ने तो अब वायनाड़ में सहायता के लिए स्वयं पीएम मोदी से सहायता मांगी है –

इस घटना से साफ सिद्ध होता है कि राहुल गांधी के हिपोक्रिसी का कोई जवाब नहीं। भले ही उन्होने ट्वीट कर खेद जताया हो, लेकिन उन्हें इतनी ही चिंता होती तो अपने क्षेत्र में राहत कार्य का जायजा लेने जरुर जाते या वहां के लोगों से उनका हाल जानने की कोशिश करते। बेतुके बहाने देकर अपने दायित्वों से मुंह मोड़ना कहां की समझदारी है?

जब ये अमेठी से सांसद थे, तब भी उन्होने अमेठी के विकास में कोई योगदान नहीं दिया। अमेठी में किसी भी प्रकार की त्रासदी होती थी, राहुल गांधी सदैव गायब रहते थे। चुनाव से कुछ दिन पहले अमेठी क्षेत्र में एक गाँव में आग लग गयी थी, और राहुल गांधी ने उस क्षेत्र का दौरा करना तो दूर की बात, सान्त्व्ना से जुड़ा एक ट्वीट तक नहीं पोस्ट किया। वहीं राहुले के प्रतिद्वंदी के रूप में खड़ी भाजपा नेता स्मृति ईरानी न केवल घटनास्थल पर पहुंची, परंतु आग बुझाने और राहत कार्यों में भी अपना हाथ बंटाया। शायद यही कारण है कि जो अमेठी एक समय तक काँग्रेस का अभेद्य दुर्ग था, वो आखिरकार 2019 में धराशायी हो गया, जब लोकसभा चुनावों में स्मृति ईरानी ने लगभग 55000 वोटों से राहुल गांधी को मात दी।

जब वे सभी तरफ से सोशल मीडिया पर घिरने लगे और लोगों ने उनसे सवाल किये तो वे पहले बेतुके बहाने देते नजर आये और फिर आखिर में उन्होने कहा कि रविवार को वायनाड जायेंगे और हालातों का जायजा लेंगे। सूत्रों के अनुसार तो राहुल बाबा फिलहाल वायनाड़ का दौरा करने की तैयारी कर रहे हैं, परंतु उनके ट्वीट्स और उनके वर्तमान व्यवहार को देखते हुये उनकी कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।

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