चिदंबरम के बाद रांकपा अध्यक्ष शरद पवार की बारी, कोर्ट ने दिया FIR दर्ज करने का आदेश

शरद पवार

PC: rationalperusal

पूर्व गृहमंत्री वित्तमंत्री पी चिदम्बरम के बाद अब लग रहा है एक और भ्रष्ट नेता की पोल खुलने वाली है। बंबई हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र के कद्दावर नेता और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार को झटका देते हुए महाराष्ट्र पुलिस को एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में 1,000 करोड़ रुपये के घोटाले के मामले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार समेत 70 अन्य लोगों के खिलाफ पांच दिन के अंदर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं। जस्टिस एस. सी. धर्माधिकारी और जस्टिस एस. के. शिंदे की बेंच ने प्रथमदृष्टया साक्ष्यों के आधार पर आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के अधिकारियों को संबंधित कानून के तहत कार्रवाई करने को कहा। शरद पवार पर राज्य के शीर्ष सहकारी बैंक को 2007 से 2011 के बीच 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने का आरोप है। इस मामले में उन्होंने कथित तौर पर चीनी मिल को कम दरों पर कर्ज दिया था और डिफॉल्टर की संपत्तियों को कौड़ियों के भाव बेच दिया था। शरद पवार के ऊपर आरोप है कि इन संपत्तियों को बेचने, सस्ते लोन देने और उनका पुनर्भुगतान नहीं होने से बैंक को 2007 से 2011 के बीच 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान करवाया। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन वित्त मंत्री अजित पवार उस समय बैंक के डायरेक्टर थे।

शरद पवार पर अपने अधिकारों का गलत प्रयोग करते हुए लवासा प्रोजेक्ट के लिए निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने का भी आरोप लगा था। इस कंपनी में पवार की बेटी सुप्रिया सुले की भी हिस्सेदारी थी। शरद पवार ने अपने भतीजे अजीत पवार के साथ मिलकर 348 एकड़ जमीन 2002 में निजी कंपनी लेक सिटी कारपोरेशन यानी लवासा कारपोरेशन को मात्र 23 हजार रुपये महीने की दर पर 30 साल की लीज पर दिला दी थी। अजीत पवार तब महाराष्ट्र सरकार में सिंचाई मंत्री और महाराष्ट्र कृष्णा वैली डेवलपमेंट कारपोरेशन के चेयरमैन भी थे। यह जमीन इसी कारपोरेशन की है। यह जमीन सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए आवंटित कर दी गई थी। लवासा कारपोरेशन में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और दामाद सदानंद सुले के करीब 21 फीसदी शेयर थे। लेकिन उन्होंने 2006 में अपनी हिस्सेदारी बेच दी। 2008 में एक्सिस बैंक ने लवासा कारपोरेशन को दस हजार करोड़ रुपये की कंपनी माना था। इस हिसाब से सुप्रिया को शेयरों की बिक्री से करीब 240 करोड़ रुपये मिले होंगे, लेकिन 2009 के चुनाव में दायर हलफनामे में सुप्रिया ने शेयरों की बिक्री से हुई इस आमदनी को छिपाया और उन्होंने अपनी संपत्ति मात्र 15 करोड़ रुपये ही बताई थी।

3. शरद पवार पर फर्जी स्टाम्प घोटाला करने वाले अब्दुल करीम तेलगी से भी साँठगांठ का आरोप लगा था। साल 2007 में बेंगलुरू की एक कोर्ट ने 20 हजार करोड़ रुपयों के फर्जी स्टांप पेपर घोटाले में अब्दुल करीम तेलगी को दोषी करार दिया गया था। स्टांप पेपर घोटाला 1993 से 2002 के बीच हुआ था। आरोप यह था कि तेलगी जाली स्टांप्स को हैवी डिस्काउंट पर बेचता था। देशभर में उसके कई एजेंट्स थे जो कमीशन पर काम करते थे। 2001 में तेलगी की गिरफ्तारी के बाद कुछ और लोग भी पकड़े गए। जांच के दौरान कुछ नेताओं में शरद पवार तथा अन्य पुलिस अफसरों के नाम भी सामने आए थे।

3. यूपीए शासन के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री के पद पर रहते हुए शरद पवार पर गेहूं के आयात में 12,00 करोड़ रुपये के घोटाले का भी आरोप लगा। पवार पर घरेलू बाजार में गेंहू की बनावटी किल्लत पैदा करने का आरोप लगा था। एक दूसरे मामले में पवार परिवार का सिटी कॉर्पोरेशन नामक कंपनी में हिस्सा था जिसने पुणे वॉरियर्स के लिए आइपीएल में विवादास्पद बोली लगाई थी। इसके अलावा शरद पवार का नाम कुख्यात आतंकी 1993 मुंबई हमले के मास्टर माइंड दाऊद इब्राहम से भी जुड़ा है। वोहरा कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बात स्वीकारी भी थी।

इतने घोटालों के बाद भी शरद पवार हमेशा ही यह अपने स्ट्रॉन्ग पोलिटिकल लिंक्स के बदौलत जेल जाने से बच जाते हैं। पवार की यह अजीब खूबी है कि वे जिस चीज में हाथ लगाते हैं उसमें अक्सर घोटाला हो ही जाता था। अब जब कोर्ट ने इस बार एफ़आईआर करने का आदेश दे दिया है तथा सत्ता में भी अब उनके सपोर्ट में कांग्रेस नहीं है तो इस बार उनका बचना नामुमकिन लग रहा है।

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