पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने दिए संकेत, अब उन्हें भारतीय टीम का कोच बना देना चाहिए

सौरव गांगुली, कोच

PC : Hindustan

शुक्रवार को भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने कहा था कि वे भारतीय टीम का कोच बनना चाहते हैं लेकिन अभी नहीं। भारतीय टीम का वेस्टइंडीज दौरे के बाद मौजूदा कोच रवि शास्त्री का कार्यकाल ख़त्म होने जा रहा है। बीसीसीआई ने विश्वकप में भारत का अभियान खत्म होने के बाद ही नए कोच के लिए आवेदन लेना करना शुरू कर दिया था। इन सबके बीच कयास लगाया जा रहा था कि पूर्व कप्तान सौरव गांगुली या राहुल द्रविड़ कोच के लिए आवेदन कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो मुख्य कोच के पद पर सौरव गांगुली सबसे उपयुक्त उम्मीदवार होंगे।

गौरतलब है कि भारत 2013 के बाद से अभी तक कोई भी आईसीसी टूर्नामेंट नहीं जीत सका है। जिस तरह से टीम में दो गुट होने की खबरें आ रही हैं उससे तो यही लगता है कि टीम को एक ऐसा कोच चाहिए जो टीम को एकजुट कर सके। किसी भी टीम में कोच की भूमिका कप्तान के बाद सबसे अधिक मानी जाती है। कोच बल्लेबाज, गेंदबाज और मैनेजमेंट के बीच समन्वय बना कर और कप्तान को साथ लेकर चलता है। ऐसे में भारतीय टीम को एक ऐसे कोच की जरूरत है जो खिलाड़ियों, कप्तान और मैनेजमेंट सहित बीसीसीआई को भी एकजुट कर सके। अगर ऐसे किसी सक्षम व्यक्ति के बारे में विचार करें तो सिर्फ एक ही नाम आता है और वो है ‘दादा’ यानि ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’।

सौरव गांगुली ही थे जिन्होंने भारतीय टीम में विश्वास दिलाया कि टीम विश्व विजेता बन सकती है। दादा ने भारतीय क्रिकेट और कप्तानी, दोनों के ही मायने बदल दिए थे। जो भारतीय क्रिकेट टीम मैच बचाने के लिए खेलती थी, उसे सौरव गांगुली ने न केवल मैच, बल्कि सीरीज जीतना भी सिखाया। 90 के दशक की अपराजित और अजेय ऑस्ट्रेलिया के आँखों में आँख डालकर कड़ी टक्कर और मात देने वाले सौरव गांगुली ने कप्तान रहते जिस तरह से टीम को एकजुट किया था वह सिर्फ प्रसंशनीय ही नहीं है बल्कि आज के युवा कप्तानों को उनसे सीखने की जरूरत है।

फिक्सिंग की चोट खाई भारतीय टीम वर्ष 2001 में बिखरने के कगार पर थी, उस समय गांगुली को कप्तानी सौंपी गयी। टीम चयन के दौरान क्षेत्रवाद का भी खूब बोलबाला था। इन हालातों में भी सौरव गांगुली ने उस समय जौहरी का काम किया और वीरेंद्र सेहवाग, युवराज सिंह, जहीर खान, हरभजन सिंह, आशीष नेहरा, गौतम गंभीर, एमएस धोनी जैसे मैच जिताने वाले नायाब खिलाड़ियों को मौका दिया। इन युवाओं को तराश कर उनमें खुल कर खेलने का विश्वास भर दिया।

इन सभी खिलाड़ियों ने आगे चल कर दादा के वर्ष 2003 के अधूरे सपने को 2011 के आईसीसी विश्वकप जीत कर पूरा किया। दादा एक खिलाड़ी के तौर पर अपने विरोधियों से कहीं आगे हैं और उन्हें ऐसे ही “गॉड ऑफ साइड”(God of Off Side) नहीं कहा जाता है। लंबे लंबे छ्क्को के लिए मशहूर दादा एकदिवसीय मैच के महान बल्लेबाजों में से एक माने जाते हैं। अपने दौर के सबसे सफल कप्तानों में से एक रहे सौरव गांगुली ने 21 टेस्ट मैचों में जीत दिलाई थी। विदेशों में तो टेस्ट मैच जीतना उन्हीं ने सिखाया था। अपनी टीम के लिए कुछ भी कर गुजरने का जोश रखने वाले सौरव गांगुली के लिए टीम अनुशासन भी उतना ही महत्वपूर्ण था जितना अभ्यास सत्र, तभी उनकी टीम का कोई भी खिलाड़ी कभी किसी विवाद में नहीं पड़ा।

रिटायरमेंट के बाद दादा बीसीसीआई के क्रिकेट एड्वाइजरी कमेटी और टेक्निकल कमेटी के चेयरमैन भी रह चुके हैं। बतौर बंगाल क्रिकेट एशोसिएसन के अध्यक्ष की भूमिका में उन्होंने राज्य में नए प्रतिभाओं को खोजने का काम भी किया है। इन्हीं कारणों से उन्हें खेल की बारीकियों के साथ एड्मिनिसट्रेशन का भी दांव पेंच बखूबी आता है। सौरव गांगुली आईपीएल के दौरान दिल्ली के प्रमुख कोच की भूमिका पर भी रहे हैं। उनके नेतृत्व में आखरी पायदान पर रहने वाली दिल्ली कैपिटलस इस बार सेमीफ़ाइनल में पहुंचने में कामयाब रही थी।

आज बीसीसीआई जिस हालात में है उसी हालात में भारतीय टीम का अनुशासन भी है। जैसे बीसीसीआई को एक मजबूत बोर्ड अध्यक्ष की जरूरत है वैसे ही भारतीय टीम को एक टीम मैन, अनुशासनप्रिय और एक बेहतरीन मैनेजमेंट स्किल वाला कोच चाहिए जो फिर से इस टीम को क्रिकेट के सभी प्रारूपों में न सिर्फ द्विपक्षीय सीरीज बल्कि आईसीसी टूर्नामेंट्स भी जीतने का जज्बा भर सके। साथ ही पूरे भारत से मैच जिताऊ खिलाड़ी चुन कर लाए। इन सभी मानकों पर सिर्फ और सिर्फ सौरव गांगुली ही खरे उतरते हैं। अब जब दबे शब्दों में उन्होंने संकेत दे ही दिया है तो अब देखना है कि भारतीय टीम के कोच का चुनाव करने वाली क्रिकेट एड्वाइजारी कमेटी क्या फैसला लेती है।

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