कपिल सिब्बल की वजह से लिबरल पत्रकारों में टकराव, क्या अब बंट जायेगा दो गुटों में ?

न्यूज पोर्टल द वायर को सर्वोच्च न्यायालय से जय शाह मामले में निराशा हाथ लगी। दरअसल, गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल द वायर द्वारा दर्ज स्पेशल लीव पेटिशन को खारिज किया, अपितु वेबसाइट पर मुकदमा चलाये जाने के भी निर्देश दिए। पर इस मामले में एक बात ने सभी को हैरान किया है वो है द वायर की तरफ से पैरवी के लिए चुने गये वकील। ये वकील कोई और नहीं, बल्कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल हैं। ये वही कपिल सिब्बल हैं जिनके खिलाफ जानी-मानी पत्रकार बरखा दत्त ने तिरंगा टीवी में बड़े पैमाने पर छंटनी करने, सैलरी न देने और महिला स्टाफ के साथ बदसलूकी करने के लिए कोर्ट तक जाने की धमकी दी थी।

दरअसल, अंग्रेजी न्यूज़ चैनल तिरंगा टीवी का संचालन 26 जनवरी 2019 को हार्वेस्ट टीवी नाम के साथ प्रारंभ हुआ था। ये चैनल वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल द्वारा प्रमोट और फाइनेंस किया जाता था। इस चैनल को लिबरल पत्रकारिता के लिए एक नए कीर्तिमान के तौर पर देखा जा रहा था, क्योंकि इसी चैनल के साथ बरखा दत्त और करण थापर जैसे चर्चित पत्रकार भी जुड़े थे। चूंकि इस कंपनी को कपिल सिब्बल और उनकी पत्नी प्रोमिला सिब्बल प्रमुख रूप से संचालित कर रहे थे, इसलिए तिरंगा टीवी को कांग्रेस का अघोषित मुखपत्र बनाने की पूरी तैयारी चल रही थी।

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होते ही पासा मानो पलट सा गया। लोकसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बाद तिरंगा टीवी न केवल बंद हुआ बल्कि एक ही झटके में 200 से ज़्यादा पत्रकार और स्टाफ बेरोजगार हो गए। इस स्थिति का वास्तविक अंदाज़ा तब हुआ जब बरखा दत्त ने अपनी चुप्पी तोड़ी और खुलकर कपिल सिब्बल के खिलाफ ट्वीट कर अपनी भड़ास निकाली।

अपने ट्वीट्स के जरिये बरखा दत्त ने कपिल सिब्बल और उनकी पत्नी प्रोमिला द्वारा तिरंगा टीवी के संचालन में उनके स्वार्थी और गैर जिम्मेदाराना रवैये का पूरा कच्चा चिट्ठा ही खोल कर रख दिया। बरखा दत्त ने  अपने ट्वीट में बताया था कि कैसे तिरंगा टीवी नेटवर्क ने बिना किसी आधिकारिक सूचना के अपने कर्मचारियों को निकाला है। कुछ पत्रकारों को तो कुछ महीने पहले ही काम पर लगाया गया था लेकिन उन्हें बिना किसी कारण के हटाया गया। बरखा के ट्वीट्स के अनुसार कपिल सिब्बल ने न केवल इन पत्रकारों का मजाक उड़ाया था बल्कि उन्हें अपने मतलब के लिए इस्तेमाल कर बकाए का भुगतान भी नहीं किया था। बरखा ने इस बात की भी जानकारी दी थी कि कपिल सिब्बल की पत्नी महिला कर्मचारियों को कई आपत्तिजनक शब्द कहकर बुलाती थीं। इस संबंध में उन्होंने महिला आयोग को भी टैग कर आयोग का का ध्यान इस बात पर दिलाया था। इसके अलावा भी बरखा ने ऐसे कई खुलासे किए, जिसने लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम को हिलाकर रख दिया। दुर्भाग्यवश, इस मामले में कोई भी लिबरल पत्रकार बरखा के समर्थन में आगे नहीं आया। और तो और द वायर ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए जय शाह मामले में कपिल सिब्बल को विवाद के बावजूद मामले से नहीं हटाया। स्पष्ट है द वायर ने इस कदम से बरखा दत्त का समर्थन करने का चुनाव नहीं किया है।

माना कपिल सिब्बल इस मामले की पैरवी तिरंगा टीवी विवाद से पहले से कर रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता के उसूलों की बात करने वाला द वायर चाहता तो बरखा दत्त के आरोपों की गंभीरता को समझते हुए उनका साथ देता और कपिल सिब्बल का बहिष्कार कर एक आदर्श स्थापित कर सकता था, लेकिन अपने हित को इस न्यूज़ पोर्टल के मालिकों ने सबसे ऊपर रखा। ये वही द वायर है जो अक्सर मीडिया पर प्रहार करने वालों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने की बात करता है। मीडिया की आजादी का सम्मान करने की बात करता है और खुद ऐसे व्यक्ति का समर्थन कर रहा है जिसने न केवल कई पत्रकारों का अपने हित के लिए इस्तेमाल किया बल्कि उनके बकाय वेतन का भुगतान करना भी उचित नहीं समझा।

बरखा दत्त और द वायर दोनों ही लेफ्ट लिबरल्स के चहेते हैं और दोनों ही लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम में प्रसिद्ध हैं। ऐसे में द वायर ने कपिल सिब्बल को इस मामले से न हटाकर लिबरल पत्रकारों की एकता का मजाक उड़ाया है और उन्हें अपमानित किया है। जिस तरह से द वायर ने कपिल सिब्बल को तिरंगा टीवी जैसे विवाद के बाद भी अपना अधिवक्ता बनाए रखा है, ये कहीं न कहीं इस बात का सूचक है कि वो कपिल सिब्बल द्वारा तिरंगा टीवी के पत्रकारों के साथ किए गए दुर्व्यवहार का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन भी करते हैं।

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