मोदी सरकार द्वारा J&K को तीन की बजाय दो भागों में बांटने के पीछे असली कारण ये रहा

लद्दाख मोदी सरकार

PC: India Today

बीते सोमवार को ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 के उन सभी प्रावधानों को निष्क्रिय कर दिया है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेषाधिकार दिये गये थे। अनुच्छेद 370 हटाने के अलावा उन्होंने यह भी घोषणा की कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख क्षेत्र को अलग किया जाएगा। इन दोनों क्षेत्रों को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा जिसके तहत जम्मू-कश्मीर की अपनी विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी। इस कदम से केंद्र की मोदी सरकार ने कश्मीर को भारत से पूर्ण रूप से एकीकृत कर दिया है जिसकी शुरुआत 72 वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर रियासत के विलय पत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।

केंद्रीय गृह मंत्री की इस घोषणा के बाद पूरे देश में हर्ष का माहौल है, लद्दाख में तो लोग जश्न मना रहे है। लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली कुछ राजनीतिक पार्टियां इस बार भी सरकार के इस कदम का विरोध करती नज़र आई। कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, एनसीपी, पीडीपी, एनसी और जेडीयू जैसी पार्टियों ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक का विरोध किया है। वहीं इस बिल के दोनों सदनों में पारित होने के बाद भारत में केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 7 से बढ़कर अब 9 हो गयी है।

बता दें कि वर्ष 1956 में जब राज्य पुनर्गठन पर सदन में चर्चा हो रही थी तब राज्य पुनर्गठन कमिशन ने यह सुझाव दिया था कि कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण देश के विशेष इलाक़ों को किसी राज्य का हिस्सा नहीं बनाकर सीधे केंद्र सरकार के अधीन रखा जाए । यह विशेष इलाके क़ानूनी तौर पर भारत का हिस्सा होते हैं लेकिन इसलिए किसी पड़ोसी राज्य का हिस्सा नहीं बन सकते। जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से इतने छोटे होते हैं कि उन्हें अलग राज्य का दर्जा देना मुश्किल होता है। उन्हें केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता है। कुछ प्रदेशों को सांस्कृतिक कारणों से भी केंद्र शासित प्रदेशों का दर्जा दिया जाता है और वहाँ की ख़ास सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए उन्हें केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता है। कुल मिलाकर भारत के किसी भी क्षेत्र को विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक व प्रशासनिक कारणों की वजह से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जाता है

अगर हम इसे जम्मू-कश्मीर से जोड़ कर देखे तो यह समझ में आता है कि यह राज्य मुख्यत: तीन हिस्सों में बंटा है,जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। यह तीनों ही क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत भिन्न है लेकिन जम्मू-कश्मीर के प्रभुत्व के कारण लद्दाख को वो पहचान नहीं मिल सकी जिसका वो हकदार है। ऐसी स्थिति में लद्दाख को अलग करना आवश्यक हो जाता है और यह मांग वहां के नागरिक आज़ादी के बाद से ही कर रहे थे।

पिछले कुछ महीनों में केंद्र सरकार जैसे फैसले ले रही थी और कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती कर रही थी उससे यही कयास लगाए जा रहे थे कि जम्मू-कश्मीर राज्य को तीन हिस्सों में बांटा जाएगा। लेकिन एक बार फिर से मोदी सरकार ने सभी को चौंकाते हुए एक बहुत ही गहन विचार के बाद इस राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला लिया। एक तरफ जहां लद्दाख को बिना विधान सभा का केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया  तो वहीं दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर दोनों क्षेत्रों को साथ रखते हुए विधानसभा के साथ केंद्र-शासित प्रदेश बनाया गया।

इन तीनों ही क्षेत्रों की आबादी में अलग-अलग समुदाए बहुसंख्यक है। एक तरफ जहां लद्दाख में बौद्ध धर्मावलंबी बहुसंख्यक है तो जम्मू क्षेत्र में हिंदुओं की संख्या ज्यादा है, वहीं कश्मीर घाटी में मुस्लिम समुदाए बहुसंख्यक है। अगर इस राज्य को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला लिया जाता तो इस फैसले को सांप्रदायिक बता कर घर्म के आधार पर देश बांटने के आरोप लगाए जाते। मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए इन दोनों ही क्षेत्रों को साथ रखने का फैसला किया और दशकों से मांग कर रहे लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जिससे वह बहुत खुश भी हुए। और यह वहां के लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग शेरिंग नामग्याल के भाषण में भी देखा जा सकता है।  

अगर इन क्षेत्रों को तीन हिस्सों में बांटा जाता तो सबसे ज्यादा नुकसान कश्मीर को उठाना पड़ता। यह घाटी क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाका है और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक़ ने 1988  में भारत के खिलाफ ‘ऑपरेशन टोपाक’ नाम से ‘वॉर विद लो इंटेंसिटी’ की योजना बनाई थी जिसके तहत अनुच्छेद 370 को आधार बनाकर कश्मीरी युवाओं को भड़काने की कोशिश की गयी थी। इसके साथ ही अलगाववादी नेता घाटी के युवाओं में भारत के खिलाफ जहर भरने का काम करते हैं। यह घाटी अगर अलग बांट दी जाती तो पाकिस्तान के लिए यह कार्य और आसान हो जाता जिससे भारत कश्मीर से और दूर हो जाता। अब ऐसा संभव नहीं है क्योंकि अधिकतर अलगाववादी नेता गिरफ्तार हो चुके है और अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर भारत का अभिन्न अंग बन चुका है।

मोदी सरकार ने राज्य को तीन हिस्सों की बजाय 2 हिस्सों में बांट कर राजनीतिक व कूटनीतिक कुशलता का परिचय दिया है। इससे घाटी पर केंद्र की मजबूत पकड़ बनी रहेगी और केंद्र शासित प्रदेश होने की वजह से वहां की पुलिस भी केंद्र को ही रिपोर्ट करेगी जिससे अलगाववाद पर नियंत्रण करना आसान रहेगा। साथ ही दोनों क्षेत्रों को समान रूप से संसाधन मिलेंगे जिससे दोनों का ही न सिर्फ विकास होगा बल्कि दोनों क्षेत्रों के लोग भी आपस में मिलकर रहेंगे।       

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