बॉलीवुड की वो 5 फिल्में जो Oscar Award 2020 के लिए ‘गली ब्वॉय’ की जगह भेजी जा सकती थी

ऑस्कर

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इस बार ऑस्कर फिल्म नॉमिनेशन के लिए भारतीय फिल्मों जबरदस्त चुनौती देखने को मिली। कहा जा रहा है कि मानकों के आधार पर रिलीज फिल्मों में से कई बेहतरीन फिल्में देखने को मिलीं। परंतु सभी को दरकिनार करते हुए जोया अख्तर की फिल्म गली ब्वॉय ने ऑस्कर फिल्म अवार्ड्स में आधिकारिक एंट्री कर ली है। गली ब्वॉय के चुने जाने से कुछ लोग सहमत हैं वहीं कुछ ने तो ज्यूरी कमेटी को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।

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कई लोगों का मानना है कि ज्यूरी कमेटी की अध्यक्ष अपर्णा सेन ने योग्यता को परे रखते हुए ऑस्कर के लिए फिल्म चयन करने में अपने एजेंडे को सर्वोपरी रखा। सोशल मीडिया पर काफी संख्या में लोगों ने ज्यूरी कमेटी की आलोचना की, उनके अनुसार ‘गली बॉय’ के अलावा भी ऐसी कई उत्कृष्ट फिल्में थीं, जिन्हें ऑस्कर के लिए नामांकित किया जा सकता था। यूं तो सुझावों के हिसाब से लिस्ट काफी लंबी है, परंतु कुछ ऐसी फिल्में अवश्य रही हैं, जिन्हें निस्संदेह ‘गली बॉय’ से ऊपर प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी।

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श्रीराम राघवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में आयुष्मान खुराना एवं तब्बू मुख्य भूमिका में हैं। इस फिल्म में आयुष्मान एक ऐसे नेत्रहीन पियानिस्ट का रोल निभा रहे हैं, जो किन्हीं कारणों से एक हत्या का गवाह बन जाता है। अब वो कैसे अपने आप को इस विवादित मामले से बाहर निकालता है। इसी के इर्द-गिर्द कहानी घूमती है। यह फिल्म हिंदी सिनेमा की उन फिल्मों में से एक है जिसे आने वाली पीढ़ी याद रखेगी। यह फिल्म उन गिनी चुनी फिल्मों में से एक है जिसे इतिहास में याद किया जाएगा। यह फिल्म आज भी सोशल मीडिया और यूट्यूब पर चर्चा का विषय बना हुआ है। इस फिल्म के लिए आयुष्मान खुराना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय अवॉर्ड दिया जा चुका है।

इसके बावजूद भी अंधाधुन को भारत की ओर से ऑस्कर के सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म हेतु नामांकन के लिए न भेजना ऐसी सार्थक फिल्मों का अपमान है। इसी तरह 2013 में रिलीज हुई ‘द लंचबॉक्स’ की भी काफी सराहना हुई लेकिन उस समय भी हमारी फिल्म फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया की ज्यूरी कमेटी ने इसे ऑस्कर के योग्य नहीं समझा था। बाद में यही फिल्म बाफ्टा फिल्म पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म में नामांकित हुई और मामूली अंतर से पुरस्कार जीतने से चूक गयी।

जिस दिन आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘अंधाधुन’ पूरे देश रिलीज हुई थी उसी दिन तमिलनाडु में रातचासन [Ratsasan] भी पर्दे पर आई थी। रातचासन का शाब्दिक अर्थ है राक्षस, और इस फिल्म में मुख्य भूमिका में थे विष्णु विशाल, अमाला पॉल और सरवानन। ये कहानी एक ऐसे पुलिस अफसर के इर्द गिर्द घूमती है जो अपने पिता के मरने के बाद मजबूरी में पुलिस जॉइन करता है, और जिसे कई बच्चियों के अचानक गायब हो जाने का केस मिलता है।

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यह फिल्म अंधाधुन की भांति ही रोचक और झकझोरने पर विवश कर देने वाली फिल्म है। हमारे क्षेत्रीय फिल्म उद्योग में इन दिनों काफी सार्थक फिल्में बनने लगी हैं। जो बिना किसी की भावना को आहत किए अपनी बात सामने रखने में पूरी तरह सक्षम हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश रातचासन को भी ऑस्कर के लिए नॉमिनेट नहीं किया गया।

उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक, इस साल की सबसे बड़ी फिल्म कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दरअसल, यह फिल्म इस साल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी है। इस फिल्म को अनदेखा करने से साफ पता चलता है कि ज्यूरी मेंबर्स कैसे अपने एजेंडे को सर्वोपरी रखते हैं और फिल्म की योग्यता, कहानी, निर्देशन सभी को नकार देते हैं। आदित्य धर द्वारा निर्देशित यह फिल्म 2016 में हुये उरी में आतंकी हमले और उसके बाद भारतीय सेना के पैरा स्पेशल फोर्सेज़ द्वारा एलओसी पार आतंकी ठिकानों पर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक्स पर आधारित फिल्म है।

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यूं तो बॉलीवुड ने भारत-पाक के सम्बन्धों पर आधारित काफी फिल्में बनाई हैं, परंतु उरी उन सबसे अलग थी। इस फिल्म में न तो ज़बरदस्ती ठूँसा गया ड्रामा है, और न ही अनावश्यक फिल्मी सीक्वेंस। इसमें भारतीय सेना के शौर्य को बिना किसी लाग लपेट के दिखाया गया है, और चूंकि इस फिल्म में भारतीय सेना का के शौर्य को दिखाया गया है, और इस फिल्म में साफ पता चलता है कि कैसे भारतीय सेना पीएम मोदी के शासन में खुलकर, पाकिस्तान के घर में घुसकर वॉर कर रही है। इसलिए ये लिबरल्स के गले नहीं उतरा, और उन्होंने फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले ही इसे निशाने पर लिया।

हालांकि उरी द सर्जिकल स्ट्राइक घरेलू स्तर पर रिकॉर्डतोड़ सफलता प्राप्त की। कई राज्यों ने तो इसे टैक्स फ्री कर दिया था। दर्शकों की मांग पर करीब महीने भर इस फिल्म को सिनेमाघरों में दिखाया गया। इस फिल्म की लोकप्रियता को देखते हुए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की चयन करने वाली ज्यूरी ने इसे चार अवार्ड्स से सम्मानित किया। उरी के लिए विकी कौशल को बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला। दूसरा अवार्ड बेस्ट डायरेक्शन के लिए आदित्य धार को मिला। बेस्ट साउंड डिजाइन और बेस्ट बैकग्राउंड म्यूजिक का भी अवार्ड इसी फिल्म को मिला। इसके बावजूद भी ऑस्कर के लिए चयन करने वाली ज्यूरी ने इस फिल्म को नकार दिया।

अनुराग सिंह द्वारा निर्देशित इस फिल्म को भी ऑस्कर के लिए न भेजना समझ से परे है। यह फिल्म सारागढ़ी के उस युद्ध पर आधारित है, जहां 36वीं सिख रेजीमेंट के केवल 21 सिपाहियों ने 10000 से ज़्यादा अफगान क़बीलों का बहादुरी से मुक़ाबला किया, और अंतिम सांस तक अपने पोस्ट की रक्षा करते रहे।

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ये केवल एक पोस्ट की रक्षा की बात नहीं थी, बल्कि हमारे देश के शौर्य और सम्मान के लिए लड़े गए एक धर्मयुद्ध की बात थी। वो भी ऐसे समय, जब हमारे ऊपर अंग्रेज़ों का शासन था। इस युद्ध को आज भी विश्व के कई सैन्य इतिहासकार सबसे भीषण युद्धों में से एक मानते हैं। जिस तरह से अक्षय कुमार ने हवलदार इशर सिंह के किरदार को पर्दे पर निभाया है, वह भी अपने आप में एक उदाहरण है। परंतु इसे अनदेखा कर ‘गली बॉय’ को भारत का प्रतीक मानना कहाँ की समझदारी है। क्या हमारे देसी हीरोज़ से हॉलीवुड नहीं इम्प्रेस होगा।

इस फिल्म पर कई लोग अपनी नाक भौं-सिकोड़ सकते हैं, परंतु इस फिल्म का ऑस्कर के लिए न चुना जाना हमारे फिल्म फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा नियुक्त ज्यूरी कमेटी की अक्षमता को अच्छी तरह से उजागर करता है। ऑस्कर के इतिहास को देखते हुये हम ये दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री की रहस्यमयी मृत्यु के बारे में बनाई गयी एक इंवेस्टिगेशन ड्रामा ऑस्कर की ज्यूरी को काफी हद तक प्रभावित कर सकती थी। भले ही हमें सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म का पुरस्कार नहीं मिलता, परंतु इस तरह की फिल्म एक नामांकन तो दिला ही सकती थी। हालांकि इसे भी अन्य फिल्मों की तरह अनदेखा कर दिया गया और ‘गली बॉय’ अपने एजेंडा के तहत ऊपर रखा गया।

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इसके अलावा ‘महानती’, ‘केजीएफ़’, ‘बधाई हो’ जैसी फिल्में भी प्रदर्शित हुई थीं, जिससे भारत की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और निखर सकती थी, परंतु उन्हे अनदेखा कर ‘गली बॉय’ जैसी औसत फिल्म को चुनकर फिल्म फ़ैडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा नियुक्त ज्यूरी कमेटी ने सिद्ध किया है कि यदि व्यक्तिगत एजेंडा को सर्वोपरि रखा गया, तो भारतीय सिनेमा कभी प्रगति नहीं कर पाएगा।

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