जिस व्यक्ति पर उसके क्रिकेट के कार्यकाल में लगे थे गंभीर आरोप, वही बनेगा एचसीए का बॉस

मुहम्मद अजहरुद्दीन क्रिकेट

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हाल ही में पूर्व क्रिकेटर मुहम्मद अजहरुद्दीन को हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मुहम्मद अजहरुद्दीन को इस पोस्ट के लिए हुई वोटिंग में 173 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी प्रकाश चंद जैन को केवल 73 वोट मिले।

दरअसल, मुहम्मद अजहरुद्दीन को हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बने हुए एक दिन भी नहीं हुआ कि मैच फिक्सिंग का भूत उन्हें सताने एक बार फिर घेरने के लिए तैयार हो गया है। सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने उनके मैच फिक्सिंग से संबंधित इतिहास को याद दिलाते हुए उन्हें निशाने पर लिया और बीसीसीआई एवं एचसीए की इस निर्णय के लिए निंदा भी की।

अब सवाल ये है कि मुहम्मद अजहरुद्दीन का मैच फिक्सिंग से क्या नाता रहा है? और उन्हें इसके लिए हर वक्त आलोचना क्यों झेलनी पड़ती है? आइये एक दृष्टि डालते हैं मुहम्मद अजहरुद्दीन के करियर पर। 1984 में इंग्लैंड के विरुद्ध डेब्यू करने वाले मुहम्मद अजहरुद्दीन ने अपने पहले 3 टेस्ट मैचों में लगातार शतक जड़े थे, जिसकी आज भी कोई बराबरी नहीं कर पाया है। इसके अलावा गेंदबाजी को लेकर उनका कलात्मक प्रयोग आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है। 99 टेस्ट और 334 वनडे खेलने वाले मुहम्मद अज़हरुद्दीन 1989 से लेकर 2000 तक भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे थे।

हालांकि, वे व्यक्तिगत रूप से जितने योग्य थे, उनके नेतृत्व में वो योग्यता नहीं झलकती थी। अज़हरुद्दीन के नेतृत्व में भारत ने 1992-1999 तक तीन क्रिकेट वर्ल्ड कप भी खेले थे, जिसमें से केवल 1996 के वर्ल्ड कप में ही भारतीय टीम सेमीफ़ाइनल तक पहुंच पायी थी। भारतीय क्रिकेट का जो बुरा दौर देश ने 1990 के दशक में देखा था, उन सब के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुहम्मद अजहरुद्दीन भी भागीदार रहे थे।

गुटबाजी हो, या वंशवाद, या फिर फिक्सिंग कल्चर को बढ़ावा देना ही क्यों न हो, अजहरुद्दीन के कार्यकाल में क्रिकेट को छोड़कर सब देखने को मिला। इसके लिए काफी हद तक स्वयं अजहरुद्दीन भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे, क्योंकि उन्होंने भारतीय क्रिकेट की डूबती नैया को पार लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

फिर आया वर्ष 2000। दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन कैप्टन हैंसी क्रोनिए द्वारा मैच फिक्सिंग स्कैंडल का खुलासा होने पर मुहम्मद अजहरुद्दीन का भी नाम उछलकर सामने आया, क्योंकि हैंसी ने उन्हें बुकीज़ से मिलवाने का आरोप भी लगाया था। इसके पश्चात सीबीआई के इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट के आधार पर आईसीसी और बीसीसीआई ने उनपर क्रिकेट खेलने या उससे जुड़ी किसी भी गतिविधि पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया। रिपोर्ट में कहा गया था, ‘अजहरुद्दीन के विरुद्ध मिले साक्ष्य इस बात को प्रमाणित करते हैं कि वे बुकी / पंटर से क्रिकेट मैच फिक्स करने के लिए पैसे लिया करते थे, और अंडरवर्ल्ड ने भी उनसे मैच फिक्सिंग के लिए बात की थी’। कहते हैं कि अजहरुद्दीन को अनीस इब्राहिम, छोटा शकील और शरद शेट्टी जैसे लोग ‘भाई’ मानते थे।

हालांकि, इस प्रतिबंध को 2012 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने हटा दिया, जिसके बाद मीडिया में इस मामले को लेकर कई सवाल भी उठाए गए थे। उनके ऊपर 2016 में एक मूवी भी बनाई गयी थी, जिसका नाम था ‘अज़हर’, और जिसमें प्रमुख भूमिका में थे इमरान हाशमी, प्राची देसाई, नर्गिस फाखरी। इसमें तथ्यों के साथ जिस तरह का खिलवाड़ किया गया, उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।

इसी मूवी के प्रोमोशन के दौरान अजहरुद्दीन से एक रिपोर्टर ने मैच फिक्सिंग स्कैंडल से संबन्धित एक प्रश्न पूछा, जिसका जवाब दिये बिना ही अजहरुद्दीन उस इवेंट से चले गए। ऐसे में ये हमारे लिए शर्म की बात है कि जिस व्यक्ति पर मैच फिक्सिंग के संगीन आरोप लग चुके हों, वो अब एक क्षेत्र के क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर अपनी ताकत दिखाएगा। एक प्रशासक के रूप में वे कितने सफल रहे हैं, इसका अंदाज़ा हम उनके बतौर कांग्रेस स सांसद के कार्यकाल से ही देख सकते हैं, जहां उन्होंने मुरादाबाद से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता था, परंतु चुनाव के बाद उन्होंने एक बार भी मुरादाबाद की सुध नहीं ली।

अब मुहम्मद अजहरुद्दीन वास्तव में दोषी थे या नहीं, ये तो ईश्वर ही जाने, परंतु उन्हें हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनाने से ये सिद्ध हो गया है कि हमारे क्रिकेट के वर्तमान प्रशासकों को क्रिकेट की कितनी चिंता है। आईसीसी विश्व कप में भारत के सेमीफ़ाइनल में बाहर होने के बावजूद रवि शास्त्री को न केवल कोच के पद बरकरार रखा गया, बल्कि उनके साथ अनुबंध की समय सीमा भी बढ़ा दी गयी।

यदि बीसीसीआई या एचसीए को वाकई में क्रिकेट की चिंता होती, तो वे वीवीएस लक्ष्मण, या फिर जवागल श्रीनाथ जैसे व्यक्ति को अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त करते। परंतु यहां व्यक्तिगत हित को सर्वोपरि रख कर हमारे क्रिकेट के अधिकारियों ने समाज को न केवल एक गलत संदेश भेजा है, अपितु भारत में क्रिकेट के भविष्य पर भी एक गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।

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